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________________ जिज्ञासा-समाधान पं. रतनलाल बैनाड़ा प्रश्नकर्ता- श्री बसन्तकुमार जी प्रतिष्ठाचार्य शिवाड़। समाधान - कर्मकाण्ड गाथा 821 के अनुसार प्रश्न- केवली के कितने प्राण होते हैं? दस क्यों | सयोगकेवली नामक 13वें गणस्थान में निम्नलिखित भाव नहीं होते? पाये जाते हैंसमाधान- धवला पु. 2 गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा 1. औपशमिक भाव - कोई नहीं। 701 के आधार से केवली के निम्नप्रकार प्राण होते हैं। 2. क्षायोपशमिक भाव - कोई नहीं। 1. सामान्य केवली-4 (वचनबल, कायबल, आयु, 3. क्षायिक भाव - 9 (क्षायिक ज्ञान, क्षायिक श्वासोच्छवास) दर्शन, क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र, तथा क्षायिक 2. समुद्घातगत केवली दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य) अ. दण्ड समुद्घात - 3 (कायबल, आयु, 4. औदयिक भाव- 3 (मनुष्यगति, असिद्धत्व, श्वासोच्छवास) शुक्ल लेश्या) ब. कपाट समुद्घात - 2 (कायबल, आयु) 5. पारिणामिक भाव- 2 (भव्यत्व, जीवत्व) स. प्रतर समुद्घात - 1 (आयु) उपर्युक्त चार्ट के अनुसार सयोगकेवली गुणस्थान द. लोकपूरण - 1 (आयु) में तीन औदयिक भाव होते हैं। मनुष्यगति नामकर्म का 3. अयोग केवली- एकप्राण, (आयु) | उदय होने से एक औदयिक भाव होता है। चार अघातिया दस प्राणों से कम प्राणों के होने का कारण कर्मों के विद्यमान रहने और सिद्ध अवस्था अभी प्राप्त 1. पाँच इन्द्रिय प्राण और मनोबल प्राण सामान्य | न करने के कारण असिद्धत्व रहता है, तथा ईर्यापथ केवली के क्यों नहीं होते? क्योंकि पाँच इन्द्रियप्राण तो | आश्रव एवं योगों की प्रवृत्ति होने के कारण शुक्ललेश्या इन्द्रियावरण तथा वीर्यान्तराय के क्षयोपशम से होते हैं | होने से तीसरा औदयिक भाव होता है, इस प्रकार कुल तथा मनोबलप्राण नोइन्द्रियावरण के क्षयोपशम से होता | तीन औदयिक भाव पाये जाते हैं। अयोगकेवली अवस्था है। केवली भगवान् के ज्ञानावरण एवं अन्तराय के क्षयोपशम | में योगों की प्रवृत्ति का अभाव हो जाने से मात्र दो ही का अभाव हो जाने के कारण ये 6 प्राण नहीं होते। औदयिक भाव पाये जाते हैं, शुक्ललेश्या का अभाव हो उनके इन्द्रियाँ एवं द्रव्यमन तो होता है, परन्तु इनके माध्यम | जाता है। से ज्ञान अब नहीं किया जाता। उनके केवली अवस्था प्रश्नकर्ता - मनोजकुमार जैन देहली। में परोक्ष ज्ञान न होकर मात्र प्रत्यक्ष केवलज्ञान होता है। प्रश्न- क्या हम आचार्य उपाध्याय एवं साधु 2. कपाट समुद्घात में श्वासोच्छ्वास प्राण नहीं | परमेष्ठी को भगवान् कह सकते हैं? होता है। क्योंकि मिश्रकाययोग में श्वासोच्छ्वास प्राण का समाधान - 1. श्री धवला पुस्तक 13 पृष्ठ 346 सद्भाव नहीं पाया जाता है। पर भगवान् का लक्षण इस प्रकार कहा है- 'ज्ञानधर्ममाहा3. प्रतर एवं लोकपूरण समुद्घात में कायबल प्राण | त्म्यानि भगः, सोऽस्यास्तीति भगवान्।' । नहीं होता, क्योंकि इसमें कार्मण काययोग होता है। और अर्थ - ज्ञान, धर्म के माहात्म्यों का नाम भग है, कार्मण काययोग में अपर्याप्त अवस्था होने के कारण | वह जिनके है, वह भगवान् कहलाते हैं। शरीर नामकर्म के उदयजनियत नोकर्मों का ग्रहण नहीं 2. मूलाचार गाथा 1006 में इस प्रकार कहा हैहोता। भिक्कं वक्कं हिययं सोधिय जो चरदि णिच्च सो साह। 4. अयोगकेवली के शरीरनामकर्म का अनुदय तथा एसो सुट्ठिद साहू भणिओ जिण सासणे भयवं। 1006॥ उपर्युक्त प्रकार से नौ प्राणों का अभाव होने के कारण अर्थ- जो आहार, वचन और हृदय का शोधन एकमात्र आयुप्राण ही पाया जाता है। करके नित्य ही आचरण करते हैं, वे ही साधु हैं। जिन प्रश्न- केवली के औदयिक भाव कितने हैं, और | शासन में सुस्थित साधु भगवान् कहे गये हैं। क्यों? 3. संस्कृत के सर्वमान्य आप्टे शब्दकोष में भगवत् - फरवरी 2008 जिनभाषित 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524325
Book TitleJinabhashita 2008 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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