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25 वर्ष से कम आयु के हैं। भारत में लगभग चालीस | पीड़ितों के लिए कार्य कर रही है। पीड़ित व्यक्ति अपना लाख एच० आई० वी० संक्रमित लोग हैं। गरीबी, | सुख दुख बाँट सके, जिन्दगी नरक न बने, डाक्टरी सहायता बेरोजगारी, नशाखोरी, रक्तदान, यौनकर्मी, ट्रक-ड्राइवर, | व दवा उपलब्ध कराना और रोगी सार्थक जीवन जी स्वछन्द यौन संबंधों में विश्वास रखने वाले, चिकित्सा | सके आदि उद्देश्यों की पूर्ति ये संस्थायें करती हैं। सुविधाओं का अभाव, पीड़ित माता पिता आदि एड्स आज लोगों (विशेषकर युवा-किशोरों) को अध्ययन, फैलाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
नौकरी एवं अन्य कारणों से घर से बाहर रहना पड़ता एडस की रोकथाम के लिये विज्ञापनों पर पानी | है। वे आज के वातावरण में किसी गलत रास्ते पर की तरह पैसा बहाया जा रहा है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों | न चल पड़ें या किसी बीमारी की चपेट में न आ जायें ने भारत के बाजारों को कंडोम. गर्भनिरोधकों एवं सेक्स | इसका पूरा ध्यान रखना आवश सामग्रियों से पाट दिया है। यही कारण है कि अविवाहित | दें, स्वयं संस्कारित हों और बच्चों को भी संस्कारित युवाओं में इनका खूब प्रयोग होने लगा है। 'कण्डोम | करें। बच्चों को विवेकी बनायें, ताकि वे उचित अनुचित साथ लेकर चलो' संदेश देते विज्ञापन जहाँ बच्चों में | का निर्णय ले सकें। युवा होते बच्चों की गतिविधियों उत्सुकता बढ़ा रहे हैं, वहीं युवा-किशोरों को भ्रमित कर | पर नजर रखें, उनकी मित्रमण्डली पर ध्यान दें। यौन रहे हैं। इससे यौन विकृतियाँ ही बढ़ेगी। देखा जाये तो | जिज्ञासाएँ शांत करने में माता-पिता मित्रवत् भूमिका निभायें, एक तरह से देश की सुसंस्कृति को विकृति में बदलने | अपने फेमिली डॉक्टर की भी मदद ले सकते हैं। संबंधित का षड्यंत्र सा रचा जा रहा है। एड्स के प्रति हौवा | सारगर्भित साहित्य भी पढ़ने दें। नियमित दिनचर्या, उचित खड़ा करके आंकड़े बढ़ा चढ़ा कर पेश कर एक कुचक्र | खानपान, ध्यान आसन-प्राणायाम अपनायें। योग एवं आहार रचा जा रहा है। एड्स के कारण मलेरिया, टी० वी०, | सम्बन्धी जानकारी आज सर्वसुलभ है। योग, प्राणायाम, मधुमेह, हृदय रोगियों की बढ़ती संख्या पर ध्यान नहीं | ध्यान से शरीर व मन स्वस्थ रहता है। शरीर जहाँ तनावदिया जा रहा है।
रहित रहता है वहीं मन में शुभ विचार, संकल्प जन्म यौनशिक्षा एड्स की रोकथाम के लिए ही क्यों? | लेते हैं। जब कि सरकार ने राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय हमारी संस्कृति में भोग भी संयम के साथ किया एड्स समिति का गठन किया है, जो आम जनता को | जाता है। बच्चों में यौन शिक्षा के स्थान पर नैतिक एवं एच० आई० वी० संक्रमण, प्रवृत्ति एवं विस्तार की जानकारी | योग शिक्षा पर बल दिया जाये, साथ ही उन्हें संस्कारित देते हैं तथा एड्स संबंधी प्रचार प्रसार एवं रोकथाम का | किया जाये। भारतीय संस्कृति के संवर्द्धन एवं संरक्षण कार्य भी करते हैं। सरकार ने समय-समय पर अनेक | के लिये आवश्यक है कि नयी-पीढ़ी को 'संयमः खल रूपों में कानूनी एवं अन्य सहायता की घोषणा की है। जीवनम्' आदर्श वाक्य से परिचित कराया जाये। एड्स के संक्रमण के विस्तार को देखते हुए गैर सरकारी
शिक्षक आवास 6, संगठनों, स्वयंसेवी सामाजिक संस्थाओं का भी योगदान
कुन्दकुन्द जैन महाविद्यालय परिसर, है। 'शरण' 'सहारा', 'प्रयास' जैसी अनेक संस्थायें एड्स
खतौली (उ० प्र०)
जिस प्रकार नवनीत दूध का सारभूत रूप है, वैसे ही करणलब्धि सब लब्धियों का सार है।
प्रत्येक व्यक्ति के पास अपना-अपना पाप-पुण्य है, अपने द्वारा किये हुये कर्म है। कर्मों के अनुरूप ही सारा संसार चल रहा है किसी अन्य के बलबूते पर नहीं।
प्रत्येक पदार्थ का अस्तित्व अलग-अलग है और सब स्वाधीन स्वतंत्र है। उस स्वाधीन अस्तित्व पर हमारा कोई अधिकार नहीं जम सकता।
फोटो उतारते समय हमारे जैसे हाव-भाव होते हैं वैसा ही चित्र आता है, इसी तरह हमारे परिणामों के अनुसार ही कर्मास्रव होता है।
मुनि श्री समतासागर-संकलित 'सागर बूंद समाय' से साभार
28 फरवरी 2008 जिनभाषित -
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