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बच्चों को यौन शिक्षा ?
पिछले दिनों मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा के०जी० से लेकर 12वीं कक्षा तक के बच्चों के लिए यौन शिक्षा लागू कराये जाने का प्रस्ताव आया साथ ही इसके लिये अध्यापक-अध्यापिकाओं को यौन शिक्षा की ट्रेनिंग भी दी जा रही है। छोटे बच्चों को यौन शिक्षा देना हमारी भारतीय संस्कृति पर एक सुनियोजित कुठाराघात है।
विश्व में आध्यात्मिकता का परचम लहरानेवाला भारत देश संस्कारों और योग-ध्यान की शिक्षा में भी विश्व - गुरु है । यह देश व्यवस्थित कामशास्त्र का जनक तो है ही पर ब्रह्मचर्य को भी सर्वोच्च साधना मानता है । 'संयम ही जीवन है' इस आदर्श वाक्य का आज भी लाखों लोग पालन कर रहे हैं, पर बदलती परिस्थितियों और आधुनिकता के दुष्प्रभाव का व्यक्ति और समाज पर प्रभाव बढ़ता दिखायी दे रहा है। पाश्चात्य संस्कृति को आत्मसात् कर 'सेक्स ही जीवन है' और 'पैसे बस पैसे' की भोगवादी संस्कृति का जादू नई पीढ़ी के ऐसा सिर चढ़ रहा है कि वे एक स्वछन्दतावादी जीवनशैली जीने के आदी होते जा रहे हैं। अश्लीलता, यौनकुंठा और निर्लज्जता का खुला खेल ड्राइंग रूम की टी० वी० से लेकर सड़कों पर लगे कंडोम के बड़े-बड़े विज्ञापनों में समाचार पत्रों की रंगीन सेक्सी तस्वीरों, इंटरनेट की अश्लील बेवसाइटों आदि न जाने किन-किन रूपों में खेला जा रहा है। घटिया सेक्सी फिल्में, टी० वी० में विकृति दिखाते चैनल, फैशन शो, अश्लील चुटकुले, कुत्सित साहित्य, सेक्सी विज्ञापन, द्विअर्थी संवाद, अश्लील एस.एम.एस., . डेटिंग आदि के इस खुले माहौल में युवापीढ़ी डगमगा रही है और डगमगा रहे हमारे नैतिक मूल्य और संस्कार । मोबाइल कैमरे से उतारी अतरंग तस्वीरें पलभर में देश के कोने कोने में पहुँच जाती है । उत्तेजना और कामुकता के इस माहौल में अविवाहित युवक-युवतियाँ यहाँ तक कि किशोरो के बीच सेक्स सम्बन्धों की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। युवाओं और किशोरों में बढ़ती यौन उन्मुक्तता भारत जैसे विकासशील देश की संस्कृति पर दुष्प्रभाव डाल रही है।
आज विभिन्न माध्यमों से स्त्री-पुरुष को शोपीस
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डॉ० श्रीमती ज्योति जैन बनाकर उनके अंग-अंग को प्रदर्शित कर जो भोंडा प्रदर्शन किया जा रहा है उसका समाज / घर / परिवार व्यक्ति पर जो प्रभाव पड़ रहा है वह किसी से छिपा नहीं है। पारिवारिक रिश्ते एवं सामाजिक मूल्य तार-तार हो रहे हैं। अखवारों की सुर्खियाँ सैक्स अपराधों से भरी रहती हैं। विचारणीय बात तो यह है कि नैतिकता व संस्कारों की कमी से युवा पीढ़ी में संयमहीनता बढ़ती जा रही है। वस्तुतः समाज एवं राष्ट्र व्यक्तियों की नैतिक एवं संयमित शक्तियों से ही समृद्ध होता है। नैतिकता का पतन राष्ट्र का पतन है ।
पाश्चात्य देशों में खुले माहौल को देखते हुए यौन शिक्षा पर बल दिया गया था, पर इसका कोई सकारात्मक रिजल्ट सामने नहीं आया। उल्टे 'टीन एजर्स मदर्स' की संख्या बढ़ गयी। कच्ची उमर में गर्भपात की संख्या में वृद्धि पायी गयी । असमय की यौनशिक्षा कुप्रभाव पैदा कर सकती है । शारीरिक विकास के दौरान समय आने पर शरीर में सेक्स संबंधी हारमोन्स बनने लगते हैं । समय से पहले उनसे छेड़छाड़ करना विकास पर असर डालता ही है, मानसिक विकृतियाँ भी पैदा करता है। जहाँ तक पाठ्यक्रम का सवाल है बॉयोलाजी, होमसाइंस जैसे विषयों को पढ़ते समय बहुत सी जानकारी विद्यार्थियों को हो जाती है । अतः असमय और अपरिपक्व अवस्था में यौन शिक्षा विचारणीय है? विषय विशेषज्ञों का भी कहना है कि किशोरवय अथवा अल्प आयु में प्रारम्भ यौन संबंध उन्हें नपुंसकता की ओर ले जायेंगे। पाश्चात्य देशों में आज घर-परिवार जैसी संस्था को व्यवस्थित करने पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है। ऐसे में आवश्यक है कि हम भी अपनी परिवारसंस्था को भोगवाद से बचायें और उसे मजबूत बनायें । असंयम का आचरण सामाजिक असंतुलन ही पैदा करेगा ।
यौन-शिक्षा के सम्बन्ध में एक तर्क यह भी दिया जाता है कि इससे एच० आई० बी०, एड्स, जैसे रोगों पर काबू पाया जा सकेगा पर एच० आई० बी० एवं एड्स की आड़ में विज्ञापनों का खुला खेल भोगवाद और व्याभिचार को बढ़ावा दे रहा है। यह भी एक दुखद तथ्य है कि दुनियाभर के एड्स रोगियों में अधिकतर फरवरी 2008 जिनभाषित 27
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