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________________ आत्मपरिणामों की परख मुनिपुङ्गव श्री सुधासागर जी (अजीव). धर्म. अधर्म आकाश और । अंदर? सात अरब की जनता है। सात अरब में कितने काल, इन छह द्रव्यों में जीव द्रव्य विशेष है। यह परिणाम | जीव ऐसे हैं जिनके परिणाम सत् होते हैं? कितने जीव से युक्त है। इसके परिणाम हवा के समान दोलायमान | ऐसे हैं जो सत् मार्ग पर चलने के लिए निस्वार्थ बुद्धि होते रहते हैं। हवा का कोई भरोसा नहीं रहता कि कब | से प्रेरणा देते हों? सत् मार्ग की एक स्वार्थ बुद्धि से किस दिशा की तरफ मुड़ जाये? इसी तरह जीव के | प्रेरणा देना और एक नि:स्वार्थ बुद्धि से प्रेरणा देना, दोनों परिणामों का भी कोई ठिकाना नहीं रहता। कब, किस | में अंतर है। जीव की स्वरूपगत विशेषताओं के विषय तरफ इनका झुकाव हो जाये, कौन सा परिणाम हो जाये? | में 'प्रवचनसार' में आचार्य श्री कुन्दकुन्ददेव ने कहा हैएक क्षण में ये जीव इतनी अशुभ प्रकृति का बंध कर अरसमरुवमगंधं अव्वत्तं चेदणागुणमसद। लेता है कि इस प्रकृति का यदि विश्लेषण किया जाये जाणअलिंगग्गहणं जीवमणिदिट्ठ-संठाणं॥ तो ऐसा लगता है कि ये जीव कभी इससे मुक्त हो | अर्थात् जीव को रसरहित, रूपरहित, गंधरहित, पायेगा कि नहीं और एक क्षण के बाद इसके परिणामों स्पर्शरहित, शब्दरहित, किसी चिन्ह के द्वारा ग्रहण न करने को देखते हैं तो इतना विकास का परिणाम होता है कि योग्य तथा आकाररहित जानो। शायद ऐसा लगता है कि अभी इसको केवलज्ञान होकर एक पिता अपने बेटे से कहता है कि बेटे! चोरी मोक्ष हो जायेगा। कितना विचित्र परिणाम है? इसीलिए | मत करना, जुआ मत खेलना, शराब मत पीना। वह सन्मार्गी कहा है होकर के भी सन्मार्ग दिखाने की उसकी जो परिणति अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य। | है, वह जो उसका स्वार्थ है कि ये मेरा बेटा है, शराब अप्या मित्तंमतित्तं च, दुपट्ठिय सुपाट्ठिओ॥ | पियेगा तो मेरा कुल नष्ट हो जायेगा, शराब पियेगा तो अर्थात आत्मा सखों और द:खों का कर्ता है तथा | मेरे परिवार में अशांति हो जायेगी. शराब पियेगा तो ये उनका अकर्ता भी है। शुभ में स्थित आत्मा मित्र है और मरण को प्राप्त हो जायेगा, शराब पियेगा तो बुढ़ापे में अशुभ में स्थित आत्मा शत्रु है। मेरी कौन सेवा करेगा? ये अनेक स्वार्थ उसके अंदर देखने में आता है कि संसार से वैराग्य लेकर | पनपे हए हैं, तब कहीं वह बेटे को सुधरने का मार्ग के एक मुनि रत्नत्रय के आनंद में डूब गया। कई बार | बता रहा है। दूसरे के बेटे यही कर्म करते हैं, तो उसके । गणस्थान का भी स्पर्श किया। सम्यग्दर्शन. अंदर इस तरह का परिणाम नहीं आता, लेकिन कुछ सम्यक्ज्ञान और सम्यक् चारित्र रूपी रत्नत्रय को अपने | ऐसे निमित्त होते हैं, जिन्हें आप लोगों की भाषा में गुरु जीवन में धारण कर लिया, लेकिन उपादान यदि थोड़ा | कहा जाता है। जिनके अंदर कोई परिणाम नहीं कि तुम सा कमजोर हो जाये तो निमित्त अपना बल, जोर दिखाने | सुधरोगे तो भी मुझे कुछ मिलने वाला नहीं और तुम के लिए घूमते ही रहते हैं। उपादान एक होता है, निमित्त | बिगड़ोगे तो भी मुझे कुछ मिलने वाला नहीं। अनेक हो जाते हैं। अनेक होते हैं, निमित्त। जब भी जयपुर वाले शराब पियें या न पियें, पीते भी हों कोई व्यक्ति किसी के घर में डाका डालता है, एक तो मेरे लिए इससे क्या फर्क पड़ेगा, ये तो बता दो? नहीं अनेक व्यक्ति डालते हैं। मालिक एक होता है, लेकिन | तुम्हारी शराब का नशा मुझ पर नहीं चढ़ेगा। मेरी साधना उसे लूटनेवाले अनेक होते हैं। कहाँ तक बचे व्यक्ति? | पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। मेरी साध्यता के ऊपर कोई कितना ही प्रयास करो। एक निमित्त हो तो बच जाये, | प्रभाव नहीं पड़ेगा। लेकिन उसके बावजूद भी मार्ग दिखाने निमित्त अनेकों बनते हैं। बुरे निमित्तों की कमी नहीं है | का परिणाम आता है। आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामी, और अच्छे निमित्तों की बहुलता नहीं है, अच्छे निमित्त | आचार्यश्री समन्तभद्र स्वामी को आया, अरहंत भगवंतों दुर्लभ होते हैं। हजारों लोगों को उपादान जगाने के लिए | को आया। इसलिए समन्तभद्र स्वामी ने कहा है कि ऐसा कोई एकाध अच्छा निमित्त मिलता है, हजारों लोगों में | निर्देशक मिलना बहुत कठिन है, ऐसा मार्गद्रष्टा मिलना किसी एक को। कितने करोड़ की जनता है विश्व के । बहुत कठिन है। ऐसा भगवान् मिलना बहुत कठिन है, - फरवरी 2008 जिनभाषित 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524325
Book TitleJinabhashita 2008 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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