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जायेगा, तो इससे असंख्यात गणी निर्जरा होगी कैसे? तप । चारित्र लेना ही औषधि है। राग-द्वेष तब तक नहीं मिटेंगे होगा कैसे? अर्थात् यदि सम्यग्दर्शन का पता नहीं है, जब तक आप अपने में लीन नहीं होंगे। मन बाहर लीन तो स्वाध्याय भी सम्यग्ज्ञान की कोटि में नहीं आ सकेगा। हो रहा है, क्यों? क्योंकि बाहर मन रखा है, माया रख
तरफ शंका करते हो (चारित्र के क्षेत्र में). I रखी है, माया से कहो तुम हमारी नहीं और इसके लिए तो दूसरी तरफ भी तो (ज्ञान के क्षेत्र में) शंका हो जायेगी | मन मानता नहीं। सम्यग्दृष्टि का पुरुषार्थ बहुत बड़ा है। और यदि जीवन भर ऐसा निर्णय नहीं हुआ तो फिर? | संसारी प्राणी अनन्त काल से पर पदार्थ का सहारा लेकर जीवन भर पढ़ते-पढ़ते निकल गया कोई रिजल्ट ही नहीं | के आ रहा है, सम्यग्दृष्टि उस पर कुठाराघात कर देता आ रहा है और हम पढ़ते जा रहे हैं पढ़ते जा रहे हैं। है। अज्ञान दशा में जब जो स्थिति थी, जोड़ लिया, अब यह तो समझ में नहीं आ रहा कि ऐसी कौन सी कक्षा | ज्ञान उत्पन्न हो गया है, अब कोई आवश्यकता नहीं। है एक साल की, दो साल की, तीन साल की है या दवाई बहुत ढंग से पिलाई जाती है, हाथ पैर पकड़ करके जीवन भर की है? इस जीवन में कोई कक्षा बदलेगी | भी, बेहोश करके भी। चारित्र के क्षेत्र में भी ऐसा ही या नहीं? हमारी समझ में नहीं आता कि जीवन पर्यन्त | प्रयास करना पड़ेगा। वस्तुतः चारित्र के क्षेत्र में जल्दी एक ही कक्षा में रहें। अर्थ यह है कि अपनी बुद्धि | पग नहीं उठते, परिश्रम होता है, लेकिन यही परिश्रम जहाँ तक पहुँचती है वहाँ तक पर्याप्त है जो अपनी बुद्धि | एक दिन मंजिल तक पहुँचा देता है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, गम्य पहिचान के लिए प्रशम, संवेग, अनुकम्पा, आस्तिक्य | सम्यक्चारित्र को अपनाना ही मनुष्य जीवन की सफलता है। यही तत्त्व है, यही सम्यक्चारित्र है। इसके अलावा | है। यदि यह नहीं, तो सम्यग्दर्शन-ज्ञान तो नारक, तिर्यंच अन्य लौकिक क्रियाओं को जो चारित्र कहते हैं, वह गति में भी होता है। लोग चारित्र को प्राप्त करना चाहते सम्यक्चारित्र नहीं है। सम्यक्चारित्र तो वही है जो राग- | हैं, लेकिन क्षेत्र का, गति का ऐसा सम्बन्ध पड़ चुका द्वेष को मिटाने का साधन है, पंच पापों से निवृत्ति रूप | होता है कि वहाँ से अन्यत्र नहीं जा सकते, लेकिन आपके ही चारित्र है। इस प्रशमादि चार लक्षणों को लेकर ही साथ ऐसा नहीं है। बहुत गुंजाइश हैं आपके साथ। विषय सम्यग्दर्शन की पहिचान, हम बाहर से कर सकते हैं। के क्षेत्र में जब आप शक्ति से बाहर कूदने का साहस भीतरी पहिचान तो जिसने कर्म को जाना है, कर्म के रखते हो तो, वीतरागता के क्षेत्र में शक्ति के नहीं होते क्षयोपशम के बारे में जानने की क्षमता है, ऐसे जो (अवधि | हुये भी कूदना चाहिए। लेकिन लगता है कि लोग क्या /मन:पयर्य/केवलज्ञान का धारी है) वही जान सकता | कहेंगे? सबसे बड़ी बीमारी चारित्र के क्षेत्र में यही है है इसके अलावा अन्य किसी को सम्भव ही नहीं, ऐसा | कि देखो अच्छा! भगत जी आ गये (श्रोता समुदाय में स्पष्ट आगम का उल्लेख है। इतना ही सोच लेना चाहिए | हँसी) थोड़ा अभिषेक पूजन करें, तो लोग यही कहेंगे ज्यादा नहीं, यदि हम ज्यादा शंका करेंगे तो हमारी मति | बड़े भगत हैं, तो वह सहन नहीं होता, लेकिन ऐसा नहीं, विभ्रम में पड़ जायेगी और दूसरों की मति को भी विभ्रम | कब तक पीछे रहोगे। दुनिया आपको ऐसा कहती है, में डाल देंगे।
अतः क्या आप अपना स्वभाव प्राप्त करना छोड़ दोगे? यह अर्थ समझ लेना चाहिए कि चारित्र राग-द्वेष | स्वभाव अपनी चीज है, राग-द्वेष नहीं। स्वभाव की ओर की निवृत्ति के लिए लिया जा रहा है। इसी चारित्र की जाते समय दुनिया नियम से बहकायेगी। द्रव्य, क्षेत्र, काल, शरण में हमको जाना है, चारित्र लेना है। जीवन का भाव सब मिल चुके हैं, द्रव्य आपका, क्षेत्र श्रेष्ठ सामने लक्ष्य ही यही होना चाहिए कि चारित्र लेना है। राग- | दिख रहा है पारसनाथ हिल, अनंतानंतसिद्ध परमेष्ठी का द्वेष को मिटाने के लिए। राग-द्वेष को मिटाने के लिए | धाम, इससे बढ़कर कौन-सा क्षेत्र? एक मात्र अन्दर की जिन पदार्थों को लेकर के राग-द्वेष उत्पन्न हो रहे हैं, अलार्म घण्टी बजने की देर है और अन उन पदार्थों से मन, वचन, काय से कृत-कारित-अनुमोदना | अपने आश्रित है। राग-द्वेष छोड़ना है जीवन में चारित्र से जब तक सहर्ष त्याग नहीं होगा, ध्यान रखिये तब | का सहारा लेना है। तक रागद्वेष के मिटने का कोई सवाल ही नहीं। यह
'महावीर भगवान् की जय'! औषधि है. रोग मिटाने के लिए. राग-द्वेष मिटाने के लिये |
'चरण आचरण की ओर' से साभार
10 फरवरी 2008 जिनभाषित
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