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________________ जो नि:स्वार्थ उपदेश देता है। आत्मा की अवस्था को | में जायें और कल्याण हो जाये, कहा नहीं जा सकता, निस्संग माननेवाले हमारे आचार्य संयोग के स्वरूप को | लेकिन शब्द सुनानेवाला नि:स्वार्थ होना चाहिए। बहुत बताकर आत्महित और विशुद्ध आत्मा की प्राप्ति के विषय | दुर्लभता से अच्छे शब्द सुनानेवाले मिलते हैं। सारी दुनिया में प्रेरित करते हैं। आचार्य कुन्दकुन्द देव ने लिखा है- | में कल्याणकारक बहुत हैं, लेकिन वे हमें मिल जायें, एगो मे सासदो आदा णाण-दसणलक्खणो। | यह सौभाग्य है। आत्मानुशासन में कहा है- खद्योतवत्। सेसा में बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा॥ खद्योत बोलते हैं जुगनू को। जैसे वर्षा के समय में जुगनू अर्थात् जब हम तत्त्वदृष्टि से विचार करते हैं, | थोड़े बहुत कही दिख जाते हैं, ऐसे ही कभी, क्वचित्, तो ज्ञात होता है कि मेरी आत्मा अकेली है, ज्ञान-दर्शन | कदाचित् वे साधु हमें दिख जाते हैं, जो हित की बात उसके लक्षण हैं। शेष जितने भी पदार्थ हैं वे मुझसे भिन्न करते हैं। और दिखने के बाद वही हमारी आत्मा में हैं. बाहर हैं। यह सभी संयोग के कारण प्राप्त हुए हैं। ग्रहण हो जाये, तो बहुत बड़ी बात है। बहुत बड़ा विचारणीय अर्थात बाह्य पदार्थों से इस आत्मा का कोई लेना-देना | प्रसंग है ये. लेकिन फिर भी हमारी जिन्दगी को बिगाडने नहीं है। वाले हजारों निमित्त मिलते हैं। जिन्दगी को सुधारनेवाला जैसे कोई भी व्यक्ति ढोलक उठाये, उस पर हाथ | एक निमित्त मिला। आप अपनी जिन्दगी के आधार पर मारे, तो उससे आवाज आयेगी। वह यह नहीं देखेगा | देख लो। कि इस ढोलक का मालिक कौन है? जितने भी संगीत | आपकी जिन्दगी में क्रोध पैदा करनेवाले कितने के यंत्र होते हैं ढोलक आदि, वे यह नहीं देखते कि | निमित्त मिले होंगे? मान करनेवाले कितने निमित्त मिले मेरा कौन मालिक है? मुझे कौन खरीदकर लाया है? | होंगे? लोभ करनेवाले कितने निमित्त मिले होंगे? तुम्हारे ढोलक कहता है कि जो कलाकार मेरे ऊपर हाथ मारेगा, जीवन के संबंध में बुरा विचारनेवाले कितने निमित्त मिले मैं उसे ही संगीत दूंगा। ढोलक किसका है, बजा कौन | होंगे? तुम्हारे जीवन का विनाश करनेवाले कितने निमित्त रहा है, इससे उसे कोई मतलब नहीं। जो कलाकार हाथ | मिले होंगे? उठायेगा मैं उसे ही संगीत दूंगा। इसी प्रकार से देव, | आचार्य कहते हैं कि अनंतानंत निमित्त मिले होंगे। शास्त्र, गुरु हैं कि जो भव्य जीव अपना कल्याण करना | जो अपनी जिन्दगी को मिटाने वाले हैं, उनसे बचना बहुत चाहता है, वे उनका साथ देते हैं। जो ढोलक बजाता | कठिन है और जो जीव बच जाता है, वह व्यक्ति बड़ा है, ढोलक से संगीत की लहर उसके कानों में आये | भाग्यशाली है। एक उपादान को बडी मश्किल से संभाला बिना रह नहीं सकती। है बड़ी मुश्किल से भव-भव के पुण्य का संचय किया आप समझते हैं कि महाराज मेरे ही हैं। नहीं बन्धुओ! | है, तब कहीं रत्नत्रय धारण करने का परिणाम होता है। न जाने कौन व्यक्ति इन शब्दों को सुनकर के अपना | ऐसे दिगम्बर मुनियों को प्रणाम किया गया है, जिन्होंने कल्याण कर लेता है, कौन कर लेता है अपना हित | यह रत्नत्रय धारण किया है। साधन, कहा नहीं जा सकता। किसके शब्द किसके कान | प्रेषक-डॉ० सुरेन्द्र जैन 'भारती' अहिंसा का आयतन किसी सज्जन ने आचार्य गुरुदेव से कहा साधुओं को गौशाला खुलवाने की प्रेरणा नहीं देना चाहिए उसमें हिंसा होती है। उन्हें तो आत्मध्यान करना चाहिए। यह सुनकर आचार्य श्री ने कहा गौशाला में हिंसा नहीं होती, साक्षात् दया पलती है, करुणा के दर्शन होते हैं, गौशाला भी आयतन हैं, "अहिंसा का आयतन"। सम्यग्दर्शन में अनुकम्पा गुण कहा है वह गौशाला में पशुओं के संरक्षण से प्रयोग में आता है यह सक्रिय सम्यग्दर्शन माना जाता है। बच्चों को पालना मोह है, किन्तु पशुओं को पालना दया अनुकम्पा है। मुनि श्री कुन्थुसागरकृत 'संस्मरण' से साभार 12 फरवरी 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524325
Book TitleJinabhashita 2008 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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