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________________ अब तक सप्ताह में दो दिन अवकाश के समय। 10. पारकिन्सन बीमारी, टैकीकार्डिया में आराम में इन्होंने लगभग 500 व्यक्तियों का रिफ्लेक्सोलॉजी से मिलता हैं। उपचार किया है। कहीं-कहीं तो आश्चर्यजनक परिणाम 11. अनिद्रा, एसिडिटी, तनाव तथा निम्न रक्तचाप, भी मिले हैं। टेनिसएल्वो, अनियमित मासिक धर्म, आँख, कान, गले इस उपचारपद्धति से कुछ जटिल रोग भी ठीक होते के रोग, सायनस आदि ठीक होते है। देखे गये हैं। लेखक ने इसका विवरण ग्रंथ की प्रस्तावना सम्पूर्ण विश्व में इसकी प्रसिद्धि इसके परिणामों पर में दिया है, जो इस प्रकार है आधारित है इसकी विशेषताएँ निम्नानुसार हैं1. रीढ़ की हड्डी से संबंधित रोग जैसे सरवाईकल 1. यह कार्यकारी है। स्पोन्डोलाइटिस, गर्दन तथा सियाटिका, कंधे में दर्द, कमर 2. सीखना, उपचार करना सरल है। का दर्द, पीठ का दर्द इत्यादि में 90 प्रतिशत सफलता मिली 3. हानिरहित है। 4. रोग निदान में सहायक है। 2. बवासीर पाइल्स में 90 प्रतिशत सफलता प्राप्त 5. सम्पूर्ण एवं स्थायी लाभ मिलता है। 6. अन्य चिकित्सापद्धति से मेल है। 3. अस्थमा आदि तो, जो बहुत पुराने नहीं थे, लगभग 7. सभी उम्र के रोगियों को लाभप्रद है। 80 प्रतिशत ठीक हुए हैं। पुराने दमा के मरीजों को भी अन्य चिकित्सापद्धतियों की तरह यह सभी रोगों आराम हुआ है। का उपचार नहीं है, किन्तु सफलता का प्रतिशत उत्साहवर्धक 4. हिस्टीरिया, लिकोरिया में 90 प्रतिशत सफलता। 5. बच्चों द्वारा बिस्तर में पेशाब करना 95 प्रतिशत इसमें किसी भी उपकरण की, मशीन की आवश्यकता सफलता। नहीं है, बस उपचारक के दो हाथ, रोगी के दो पैर या 6. सिरदर्द, साइनस, माइग्रेन में 98 प्रतिशत। हाथ पर्याप्त हैं। 7. मूत्रप्रणाली से संबंधित बीमारी जैसे जलन होना, | सामान्य ज्ञानवाला व्यक्ति इसे सीख सकता है। रुक-रुक कर पेशाब आना 90 प्रतिशत सफलता। | प्रत्येक घर में कम से कम एक व्यक्ति इसे अवश्य सीखे 8. उदर की बीमारियाँ हाथ पैर घुटने आदि में दर्द, | एवं स्वयं एवं अन्य की मदद करे। एडी, पैरों की सूजन लगभग ठीक होते देखे गये हैं। । यदि कोई सीखना चाहता है, तो उपर्युक्त पते पर 9. लकवे के मरीज शीघ्र ठीक होते हैं यदि आरंभ | लेखक से सम्पर्क करे। में ही चिकित्सा की जाये तो सफलता लगभग 98 प्रतिशत।। प्रो. रतनचन्द्र जैन वीतरागी से अनुराग आचार्य महाराज संघ सहित विहार कर रहे थे। खुरई नगर में प्रवेश होने वाला था। अचानक एक गरीबसा दिखने वाला व्यक्ति साईकिल पर अपनी आजीविका का सामान लिए समीप से निकला और थोड़ी दूर आगे जाकर ठहर गया। जैसे ही आचार्य महाराज उसके सामने से निकले, वह भाव-विह्नल होकर उनके श्रीचरणों में गिर पड़ा। गद्गद कंठ से बोला कि भगवान राम की जय हो।' आचार्य महाराज ने क्षण भर को उसे देखा और अत्यन्त करुणा से भरकर धर्मवृद्धि का आशीष दिया और आगे बढ़ गए। वह व्यक्ति हर्ष-विभोर होकर बहुत देर तक, आगे बढ़ते हुए आचार्य महाराज की वीतराग छवि को अपलक देखता रहा। इस घटना को सुनकर मुझे लगा कि वीतरागता के प्रति अनुराग हमें अनायास ही आत्म-आनंद देता है। उन क्षणों में उस व्यक्ति की आँखों में आचार्य महाराज की वीतराग छवि अत्यन्त मधुर और दिव्य रही होगी, जो हम सभी को आत्म-कल्याण का संदेश देती है। खुरई (1988) मुनि श्री क्षमासागर-कृत 'आत्मान्वेषी' से साभार 28 दिसम्बर 2007 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524323
Book TitleJinabhashita 2007 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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