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________________ ग्रन्थ-समीक्षा नाम- ऐक्युप्रेसर फुट रिफलेक्सोलॉजी परिशिष्ट 2 में संदर्भ ग्रन्थ एवं पुस्तकों की सूची प्रकाशक - इन्द्रा पब्लिशिंग हाऊस देकर पुस्तक की प्रमाणिकता सिद्ध की है। मूल्य - रु. 195 परिशिष्ट 3 में पग में परावर्ती स्थानों का रंगीन चित्र भाषा - हिन्दी, रंगीन चित्र सहित देकर उपचारकों को उपचार करना सरल एवं ग्राही बना लेखक - डी. सी. वाझल्य, ए-92, शाहपुरा दिया है। भोपाल-462 039 म.प्र. फोनः 0755-2424755 यह पस्तक विषयवस्त की वैज्ञानिकता दर्शाती है. 'ऐक्यप्रेसर फट रिफलेक्सोलॉजी' श्री धर्मचन्द्र जी | साथ ही लब्धप्रतिष्ठ ऐलोपैथी के चिकित्सक द्वारा संशोधित वाझल्य द्वारा लिखित लघकाय पस्तक है, जो अपने- आप | एवं प्रमाणित है। में सम्पूर्ण अहिंसक चिकित्सापद्धति को संक्षेप में किन्तु आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस विद्या के स्पष्ट रूप से प्रमुख शरीरतंत्रों का विवरण, रोगों के उपचार | प्रवर्तक बीसवीं सदी के आरंभ में अमेरिकन चिकित्सक की विधि, विभिन्न रोगों के लक्षण, कारण तथा प्रतिबिम्ब | डॉ० विलियम एच फिटजेराल्ड थे. जो सेनफ्रान्सिस. केन्द्रों की सूची व्यवस्थित तरीके से समाहित किए हए अस्पताल हार्टफोर्ड कन्सास में नाक एवं गला विभाग के है। फुट एवं हैण्ड रिफलेक्सोलाजी अन्य चिकित्सा- अध्यक्ष थे। लेखक पिछले 15 वर्षों से दिल्ली एवं भोपाल पद्धतियों से भिन्न है। यह बिना औषधि सेवन के ही शरीर में सेवाभावी एक्यूप्रेसर चिकित्सा कर रहे हैं। वे अपने के विभिन्न रोगों को ठीक करने में प्रभावी चिकित्साविधि | अनुभव एवं देशी-विदेशी साहित्य के अध्ययन का निचोड है। इस विधि में हाथ की अंगुलियों से या अँगूठे से पैर | इस कृति में दर्शाने में सफल हुए हैं। के तलुए, साइड एवं ऊपरी भाग में इसी प्रकार हथेली एक्यूप्रेसर फुट रिफलेक्सोलॉजी मानवता को प्रकृति में दबाव देकर चिकित्सा की जाती है। लेखक ने अध्याय | का वरदान है। हाथ की हथेली एवं पैर के पंजों में प्रकृति 1 से अध्याय 7 तक क्रमशः परावर्ती उपचार की परिभाषाएँ, ने रिपेयरिंग किट प्रदान किया है, जहाँ दबाव युक्त स्पर्श आधुनिक एवं प्राचीन संदर्भ, चिकित्सा का उद्गम स्थान, | से शरीर के विभिन्न अंगों को उद्दीप्त कर चिकित्सा की वर्तमान में उसकी स्थिति, वैज्ञानिकता, खोज, सिद्धान्त एवं | जाती है। यह प्रिवेन्टिव ट्रीटमेन्ट एवं होलिस्टिक चिकित्सापरावर्ती प्रभाग, पैर एवं हथेलियों की संरचना, शिथिली- | पद्धति है। यह शरीर के प्रत्येक अंग का पग एवं हथेली करण, दबाव देने की विभिन्न विधियाँ, शरीर संरचना तथा से लाजवाब संबंध दर्शाती है। इस चिकित्सा के फल उसके घटक आदि का सचित्र विवरण देकर विषय को | स्वरूपसरल एवं रोचक बना दिया है। अध्याय 8 से 17 तक | • रक्तसंचार में सुधार होता है, जिससे समस्त अंगों शरीर की विभिन्न प्रणालियों के कार्य करने की विधि रंगीन | को ऑक्सीजन मिलती है। चित्रों के माध्यम से सरल भाषा में समझा दी गई है। साथ • रक्तवाहिनियों का अवरोध दूर होता है। ही उस तंत्र से सम्बन्धित रोग, रोगों का कारण, लक्षण • नाड़ीतन्त्र एवं ग्रन्थितंत्र एवं अन्य सभी तंत्र सुचारु प्रतिबिम्ब केन्द्र, उनके उपचार की विधि भी अच्छी तरह | रूप से कार्य करने लगते हैं। से समझाई गई है। अध्याय 19 से 21 तक हाथ में क्रमश: • दर्दनिवारक एवं सूजननिवारक है। प्रत्यावर्ती (प्रतिबिम्ब) प्रभाग, मानसिक तनाव एवं अवसाद, • रोग-प्रतिरोध-क्षमता का विकास होता है। परीक्षण उपचार निर्देशिका एवं शियात्सु का परिचय, • सम्पूर्ण शरीर स्वस्थ संतुलित एवं स्फूर्तिमान हो उपचार विधि देकर इसे स्वयं पढ़ो, समझो एवं अभ्यास | | जाता है। करनेवाली कृति बना दिया है। लेखक ने अपने अनुभव के आधार पर जिन सामान्य ___परिशिष्ट 1 में व्याधियों की सूची, परावर्ती प्रभाग | तथा जटिल रोगों का उपचार किया है, उनका उल्लेख कर एवं संदर्भ देकर उपचारकों को सभी सूचनाएँ सुलभ कर | चिकित्सापद्धति कितनी कार्यकारी है यह भी दर्शा दिया दी हैं। है। विवरण इस प्रकार है दिसम्बर 2007 जिनभाषित 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524323
Book TitleJinabhashita 2007 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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