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देखी वो बोले भ्रम में न रहे भैया जी रात में देखें यहाँ । तुम्हारी आरती में क्या अंतर है। यदि भक्ति ही करना है की महावीर जयंती। शाम सात बजे तक लाईट व साउन्ड | तो मीरा की तरह करो जिसकी भक्ति देखने अकबर लग गया, थोड़ी देर में प्रोग्राम शुरु हुआ। कोई नेताजी का | बादशाह भी हिन्दु साधु का वेष बनाकर मीरा को सुनने भाषण व सम्मान हुआ। इसके बाद शुरु हुआ जबलपुर | मजबूर हो गया था। पर आज की युवा पीड़ी को क्या करें से आई ऑर्केस्ट्रा का प्रोग्राम। एक दो भजन उपरान्त सीधे- | वो खुद ही फिल्मों की नकल करने लग जाती है। ध्यान सीधे फिल्मी गीत हुए इतना ही नहीं फूहड़ नृत्य भी हुए। | रहे गुलाब का फूल देखने में कितना भी सुन्दर क्यों न सबसे बड़ा आश्चर्य, मुझे जिस कार्य के लिए जबलपुर | हो पर गेहूँ के खेत में तो वो खरपतवार ही है। ठीक से बुलाया गया था, अहिंसा सभा हुई नहीं और न मुझे | इसीप्रकार से भक्ति के क्षेत्र में फिल्मी गानों की नकल कोई बलाने आया। मैं प्रात:काल उठकर चुपचाप जबलपुर | कम्वती की खरपतवार ही है। खरपतवार के उन्मूलन के आ गया। कुल मिलाकर धर्म के नाम पर धर्म की होली | बिना धर्मध्यान की फसल नहीं लहरा सकती है अतः जल रही है। मेरा तो इतना ही कहना है या तो मंच से | विचार करें भीड़ आपके साथ है या आप भीड़ की पर्वराज पर्युषण अथवा महावीर जयंती के बैनर निकाल | मानसिकता के अनुसार कार्यक्रम कर रहे हैं। मेरे भाइयों दो या फिर इन पवित्र पर्वो की मर्यादा का पालन करो। | पर्व मनमानी करने नहीं मन को जीतने आया है। जरा अन्त में यही कहूँगा कि हम पर्व के प्रयोजन को समझें, | सोचिये कहीं आप उस बच्चे की तरह अपने मंदिर को पर्व आया है श्रमणत्व की साधना के लिए, श्रावकाचार | विकृत तो नहीं कर रहे जिसने नहाने के साबुन को बाथरूम के पालन के लिए, हृदय की विशुद्धि के लिए, परिणामों | की मोरी में डाल दिया है। किसी को गलत ठहराना मेरा की निर्मलता के लिए, बुराईयों एवं कुरीतियों के वमन के | मकसद नहीं है, यदि मैं कहीं गलत हूँ तो मुझे सावधान लिए। एक समय था जब श्रावक श्राविकायें भी मुनि महाराज | करेंगे, मैंने तो अपनों से अपनी बात कही है मुझे आशा एवं आर्यिका माताओं की तरह एकासन, उपवास, सामायिक, | है आने वाले पर्युषण प्रदूषण से मुक्त होगे। अन्तराय आदि की साधना कर साधु बनने की भावना भाते धर्मध्यान की राह दिखाने पर्युषण पर्व निराले हैं। थे। आज भी जो भव्य जीव इसप्रकार की साधना करते दूषण और प्रदूषण से यह मुक्ति दिलानेवाले हैं। हैं मैं उन्हें प्रणाम करता हूँ और जो भटक गये हैं अपने
जियो और जीने दो सबको यही सँदेशा लाये हैं। लक्ष्य से, जो कार्यक्रमों में उमड़ती भीड़ को ही पर्व की
क्षमा करें मुझे शुभ भावों से, आप बड़े दिलवाले हैं। सफलता मान रहे हैं, वे विचार करें क्लब के डांस और
श्री वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल पिसनहारि मढ़िया, जबलपुर-३
परम समीप अहारजी सिद्धक्षेत्र पर चातुर्मास के उपरान्त आचार्य। कहा कि 'महाराज जी! आपसे दूर रहकर हम क्या करेंगे, महाराज संघ-सहित सिद्धक्षेत्र नैनागिरि आ गए। शीतकाल | कैसे रह पाएँगे?' यहीं बीत गया। एक दिन अचानक दोपहर में आचार्य महाराज | आचार्य महाराज गम्भीर हो गए। बोले- 'मन से दूर ने बुलाया। मुनिश्री योगसागर जी भी आए। मैं भी पहुँचा। चले जाओगे क्या?' हमने फौरन कहा कि 'यह तो कभी आचार्य महाराज बोले कि 'ऐसा सोचा है कि तुम दो-तीन | संभव ही नहीं। स्वप्न में भी नहीं।' तब वे हँसने लगे। साधु मिलकर सागर की ओर विहार करो। वहाँ स्वास्थ्य | बोले कि 'जाओ हमारा खूब आशीर्वाद है। घबराना नहीं। लाभ भी हो जाएगा और धर्म-प्रभावना भी होगी। तुम सभी | अध्यात्म में मन लगाना। मेरी आज्ञा में रहने वाला मुझसे को अब बाहर रहकर धीरे-धीरे सब बातें सीखना हैं।' | दूर रहकर भी मेरे अत्यन्त समीप ही है और मेरी आज्ञा
संघ में पहली बार हम लोगों पर यह जिम्मेदारी नहीं मानने वाला मेरे निकट रहकर भी मुझसे बहुत दूर है।' आई थी, सो हम घबराए कि ऐसा तो कभी सोचा भी नहीं। आज भी हम उनसे दूर रहकर भी उन्हें अपने अत्यन्त था। हम तो अपना जीवन आचार्य महाराज के चरणों में | समीप पाते हैं। कभी दूरी का अहसास नहीं होता। सचमुच, समर्पित करके निश्चिन्त होकर आत्म-कल्याण में लगे थे। आत्मा के निकट रहना ही सच्चा सामीप्य है। कुछ समझ में नहीं आया। गुरु की आज्ञा अनुल्लंघनीय हुआ
मुनि श्री क्षमासागर-कृत 'आत्मान्वेषी' से साभार करती है, पर मन को कैसे समझाएँ? मन भर आया। हमने ।
सितम्बर 2007 जिनभाषित 13
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