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________________ दूरगामी परिणामों पर सोचें (दिल से ) Jain Education International अनंत महादेवन सुप्रसिद्ध फिल्म निर्देशक इंसान को हिंसा का अधिकार तो किसी भी रूप में प्राप्त नहीं है, चाहे वह इंसान की बात हो या किसी अन्य जीव की । लेकिन सृष्टि का अकेला बौद्धिक प्राणी होने का वह कई रूप में मनचाहा फायदा उठाता है। बेशक बाद में उसे भी उसके दुष्परिणाम भोगना पड़ें। । बचपन से जो बात मेरे दिल को दुखाती रही है, वह है- इंसानों द्वारा जीवों को आहार बनाना । चिकन से भरे ट्रक देखता हूँ, तो मेरा दिल रो देता है। जिंदा मुर्गे ट्रक के दड़बों में यूं ठुसे रहते हैं कि उन्हें ठीक से खड़े होने की भी जगह नहीं मिलती। चिकन शॉप पर मुर्गों की टांगे बांधकर उन्हें तोलने के लिए स्प्रिंग वाले तराजू से उल्टा लटकाया जाता है। उन्हें चिकन शॉप के दड़बे में बंद रखा जाता है, जहाँ ग्राहक के रूप में यमराज के आने तक पीड़ादायक परिस्थितियों में जिंदा रखा जाता है । फिर गर्दन पर छुरी चलती है और 'ची' की आवाज के साथ उसका जीवन खत्म! इसी तरह मछलियाँ मानव की अमानवीयता के चलते जल-जीवन से किचन की कड़ाही तक का सफर तय करतीं हैं। उन्हें खानेवाला नहीं सोचता कि पानी से निकाले जाने पर उनकी छटपटाहट में कितना असहनीय दर्द छिपा होगा। कटते हुए बकरे की आंखों में झांककर देखिए, वह किस तरह निरीहता से मिमियाता, छटपटाता और शांत हो जाता है! काश ! जो लोग सुनामी में डूब गए, वे वापस आकर मछलियों को पानी से निकालने का दर्द बता पाते ! काश! जो लोग बकरे की तरह कत्ल किए गए, वे लौटकर कत्ल होने का दर्द इंसानों को बताते । सोचते-सोचते मेरा दिमाग फटने लगता है कि इंसान होकर हम इतने हैवान क्यों हैं? कोई जीव-जन्तु हमें नुकसान पहुँचायें और उसे मारा जाए, तो किसी हद तक ठीक है । लेकिंन वे तमाम प्राणी हमें क्या नुकसान पहुँचाते हैं, जिनको हम भोजन के लिए मार देते हैं? इंसानों को यह अधिकार किसने दिया कि वह दूसरे जीवों का जीवन छीन लें? प्रकृति के नियमों में जैविक संतुलन भी है। क्या हम जीवों को मारकर इस संतुलन को नहीं बिगाड़ रहे? क्या प्रकृति ने हमें इस संतुलन को बिगाड़ने के लिए ही इतना विकसित किया है? प्रकृति से छेड़छाड़ के नतीजे में कृत्रिम गैसें । वर्धक हैं। दरअसल, हमारा पाचन-तंत्र मांस को पचाने के मांसाहार करने वालों का कहना है कि मांसाहार छोड़ने पर भोजन की समस्या विकराल रूप ले लेगी। मेरे ख्याल से दुनिया की दस गुना आबादी को भी शाकाहार पाल सकता है, बशर्ते शाकाहार के स्रोतों का सही तरह से दोहन किया जाए। अपने देश में ही जगह - जगह बड़े पैमाने पर जमीन खाली पड़ी हुई है। क्या ऐसी बंजर भूमि को उपजाऊ नहीं बनाया जा सकता? यहाँ खाने योग्य वनस्पतियाँ उगाई जाएँ । जंगल के जंगल ऐसे हैं, जिनका व्यावसायिक उपयोग भले हो, भोजन संबंधी जरूरत में प्रत्यक्ष उपयोग कोई नहीं है। उनको खाने योग्य फलों के जंगलों में बदला जा सकता है। यहाँ तक कि गमलों में सजावटी पौधों की जगह टमाटर, बैंगन उगा सकते हैं। 'मशीन' पर जितनी ऊर्जा खर्च कर रहे हैं, अगर 'जमीन' पर उससे आधी भी खर्च करें, तो यह धरती शायद दस गुना इंसानी आबादी को शाकाहार से पाल सकती है। मांसाहार उद्योग में लगे अरबों-खरबों लोगों के बेरोजगार होने का डर, इसी बात से समाप्त हो जाना चाहिए कि तब कृषि मांसाहार उद्योग से कहीं ज्यादा उन्नत उद्योग होगी और ज्यादा लोगों को रोजगार प्रदान करेगी। बेहतर शक्ति, स्वास्थ्य और स्वाद के लिए भी मांसाहार गलत है। हाथी जैसा शक्तिशाली, बड़ा और 120 साल जीने वाला जीव शाकाहारी है, जबकि शेर 20 साल में ही मर जाता है । मेडिकल साइंस सिद्ध कर चुकी है कि वानस्पतिक प्रोटीन व विटामिन, जैविक प्रोटीन व विटामिनों से ज्यादा स्वास्थ्य 14 सितम्बर 2007 जिनभाषित भूमण्डल की ओजोन परतों को नष्ट कर रहीं हैं। जिससे पृथ्वी गर्म हो रही है और ध्रुवीय बर्फ गलकर सागरों के जल स्तर को बढ़ा रही है। धरती का प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में चींटी से हाथी तक के जीवन का चक्र तय है। इससे छेड़छाड़ करना घातक नहीं होगा ? For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524320
Book TitleJinabhashita 2007 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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