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________________ रहे हैं? उत्तर- आप क्या कर रहे हैं? आप लोग व्यापार ऐसे कर रहे हैं जो नहीं करना चाहिए। जो शराब एवं अभक्ष्य पदार्थों का व्यापार कर रहे हैं उन्हीं को आप माला पहना रहे हैं। हम से वैदिक लोग पूछते हैं कि आपके धर्म में जिन बातों का निषेध है उन्हीं को जैन लोग खुले आम क्यों कर रहे हैं? आज न श्रावक में भीति है, न श्रमण में | अर्थात् अपने साधर्मी बंधु समूह के प्रति छल-कपट रहित तथा सद्भावना सहित उनकी योग्यतानुसार आदर सत्कार करना वात्सल्य गुण कहा गया है। १६. क्या प्रवचन में तालियां बजाना उचित है ? उत्तर - यह लौकिक भाषणों एवं नारों का प्रभाव है । प्रवचन के दौरान कही गई बातों की प्रशंसा की अभिव्यक्ति के लिए भी लोग ऐसा करते हैं । १७. आचार्यश्री, बड़े बाबा की मूर्ति के स्थानांतरण को लेकर जो पूर्व में आशंकायें व्यक्त की गई थीं वह निर्मूल साबित हुईं। आज बड़े बाबा उच्चासन पर सुरक्षित विराजमान हैं, फिर भी ऐसा लगता है कि ९० प्रतिशत लोग समर्थन में हैं, शेष १० प्रतिशत विरोध में? उत्तर- समाज को योग्य-अयोग्य के विषय में सोचना चाहिए। यदि उचित कार्य है तो ९० या ५० प्रतिशत क्यों? शत प्रतिशत समर्थन क्यों नहीं? १० प्रतिशत भी उत्तर- महापुराण के उत्तरार्ध में इसका उत्तर मिलता है। राष्ट्र और समाज का संवर्धन करके ही इसका निर्वहन हो सकता है। आप लोग काम करें। इस दिशा में एक प्रतिशत भी काम नहीं हो रहा है। हम एक व्यक्ति को भी धर्मात्मा नहीं बनाते। सही आय का स्रोत है 'धर्म रुचि' । धर्मात्मा बनाओ। आज लोग ५ लाख की बोली तो ले लेते हैं किन्तु ५ व्यक्तियों को धर्मात्मा नहीं बना सकते। यदि निराश्रित लोगों को आश्रयदान दिया जाय तो धर्म का संरक्षण हो सकता है। एक लाख रुपये देने पर पूरे परिवार का गुजारा हो सकता है। इस तरह पांच लाख देने पर ५ परिवार धर्मात्मा बन जायेंगे। आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने कहा हैस्वयूथ्यान् प्रतिसद्भाव सनाथापेत केतवा । प्रतिपत्तिर्यथायोग्यं, वात्सल्यमभिलप्यते ॥ १९. आचार्य श्री आज पूर्वांचल में एक आचार्य का प्रवास चल रहा है उनका स्पष्ट कहना है कि मैं कुन्दकुन्द १५. राष्ट्रीय दायित्वों का निर्वहन कैसे करें ? धर्म को नहीं मानता, वे कहते हैं कि कुन्दकुन्द एकान्तवादी निरपेक्ष राष्ट्र में धर्म का पालन कैसे करें? थे क्योंकि उन्होंने मात्र द्रव्यानुयोग की चर्चा की है। उन्होंने 'मंगलं कुन्दकुन्दाद्यो' के स्थान पर 'मंगलं पुष्पदन्ताद्यो' कहना प्रारंभ कर दिया है जबकि किसी भी मूल श्लोक में परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए । हम विरोध करते हैं तो कहते हैं कि 'हम मुनि विरोधी हैं ' । वे गुवाहाटी में चातुर्मास करना चाहते हैं जबकि हमारे यहाँ की पंचायत ने शिथिलाचारी साधुओं का चातुर्मास न कराने के लिए प्रस्ताव पास किया हुआ है। हम लोगों पर बड़ा प्रेशर है। 48 जून - जुलाई 2007 जिनभाषित अप्रसन्न क्यों हैं? यह जनतंत्र का नहीं आस्था का प्रश्न है । Jain Education International १८. क्या यह प्रक्रिया बार-बार दुहराई जानी चाहिए। उत्तर- सामाजिक कार्य के संबंध में सोच-विचार कर समाज को निर्णय लेना चाहिए। योग्य-अयोग्य के विषय में सोचना चाहिए। उत्तर- इसका अर्थ, कि प्रेशर है !!! मतलब समर्थक भी हैं? हमारे विचार स्पष्ट हैं । सत्य की बात (सही बात) सुनने के लिए भी धीरज और सहनशीलता / समता चाहिए। पक्षपात को छोड़कर ही सत्य का निर्णय किया जा सकता है। यदि पंथवाद, जातिवाद, राजनीति है तो धर्म/सत्य को कोई सुनेगा नहीं । आज यही हो रहा है। २०. आजकल बाल गोपाल टी.वी. के विभिन्न चैनलों से कुसंस्कार ग्रहण कर रहे हैं, ऐसे में हम क्या करें? उत्तर- अपने घरों से टी.वी. वगैरह को विसर्जित कर दीजिए। इससे हानि ही हानि है। लाभ कुछ भी नहीं है । पत्रकारों के विशेष मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद की चाह के उत्तर में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा कि मेरी भी पत्रिका हर रविवार को प्रकाशित होती है जिसे हजारों लोग अपने घरों में ले जाकर पढ़ते हैं। इस तरह आचार्य श्री का संकेत था कि उनके द्वारा दिये जाने वाले रविवारीय प्रवचन के माध्यम से धर्म और समाज हित के लिए मार्गदर्शन दिया जाता है । For Private & Personal Use Only ए - २७, नर्मदा विहार, सनावद - ४५११११ (म.प्र.) www.jainelibrary.org
SR No.524318
Book TitleJinabhashita 2007 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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