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श्रुतपंचमीपर्व-वंदनाष्टक
प्रतिष्ठाचार्य पं. पवन कुमार शास्त्री 'दीवान'
परम पावन यह मंगल बेला, जिनवाणी सौ बार प्रणाम। श्रुतपंचमी पर्वनाम है, मुनि नर सुर गण करें उत्थान॥ द्रव्य श्रुत का पावन रक्षण, संरक्षण और संर्द्धन। धन्य-धन्य सौभाग्य हमारे, जिन वचनामृत किया ग्रहण
तीर्थंकर, गणधर आदिक, केवलिया श्रुतकेवलि पूज्य। अंग पूर्व के ज्ञाता मुनिवर, अंगअंशधारी गुरु पूज्य॥ प्रत्यक्ष रहा यावत सुयोगइन, धन्य धन्यथा पूर्ण संसार।
कालचक्र गतिमान जगत में, जिन वचन विलोपन विविध प्रकार॥ धन्य-धन्य धरसेन गुरुवर, हृदय मांहि तिन किया विचार। रहे अमरजिनवाणी जग में, अत: आलेखन हो संसार॥ भूतबली व पुष्पदंत मुनि, गुरु आज्ञा ली उर में धार। षट्खंडागम प्राभृत लिखकर, किया जगत जन परमोपकार॥
यही तिथि वह आज जान लो, हुआ आलेखन पूर्ण द्रव्य श्रुत। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पंचमी, श्रुतपंचमी-पर्व उत्कृष्ट॥ आज ऋणी हम सब उन गुरुवर, जिनवाणी जिन योग-महान्।
श्रुतलेखन की शुचि प्रणाली, जन-जन का करती कल्याण॥ आज सभी निजकर्तव्य जान लें, ग्रंथ-शास्त्र की करें संभार। जीर्ण-शीर्ण जो ग्रंथ हुये हैं, करें संरक्षण-सभी प्रकार॥ ग्रंथ लिखावें प्रेस छपावें, ज्ञानदान का परम-उपहार। शाला और विद्यालय चलाकर, श्रत बीज वपन का करें प्रचार॥
जहाँ-जहाँ ग्रंथ भंडार हमारे, करें सभी हम साज-संवार। माँ सेवा उत्कृष्ट कही जग, माँ ही करती बेड़ा-पार। जिनवाणी का पठन-पाठकर, श्रवण करें या अनुमोदन।
मनन-चिन्तवन, आत्मसात कर, मुक्तिरमाका आलिंगन। आज करें जिनवाणी अर्चना, शोभा यात्रा-विविध प्रकार। जन-जन कोंदे परम प्रेरणा, करें जगत-जग यह उद्धार॥ मति-श्रुत ज्ञान समन्वित जगजन, अवधि-मनःपर्यय शुभ भाव। कैवल्य ज्ञान उपलब्धि पाने, करो भव्य जन कोटि-उपाव॥
जिनवाणी जगमात हमारी, करें मुनी-गणअनुकरण। श्रावक जन जिनवाणी श्रवणकर, श्रमण संघ की सेव नमन। ज्ञानदानही महादान है, सभी दान शौभे निज थान।
शाश्वत सौख्य दिलाने वाला, यही करेगाजिय उत्थान॥ अन्त भावनादेव शास्त्र गुरु रतन तीन जग, देते यही जग परम प्रसाद। उत्कृष्ट परम पदपाते भविगण, करेंसु-अर्चन दिन या रात॥ करूँ गमन मैं या पथ पावन, मुक्तिवधूका मधुर मिलन। नमन 'पवन'का या तिथि पावन, जिन भक्ति ही रहे शरण।
मोरेना (म.प्र.)
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