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________________ - एक शाम पत्रकारों के नाम आचार्य श्री विद्यासागर जी से पत्रकारों की बातचीत डॉ. नरेन्द्रकुमार जैन, वरिष्ठ संपादक-'पार्श्व ज्योति ' कुण्डलपुर, दिगम्बर जैन श्रमणसंस्कृति परम्परा के | नहीं है। संवेद्य को कथ्य नहीं बनाया जा सकता। प्रमुख संत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के दर्शन २. आचार्य पद मिलने पर आपको कैसा लगा? एवं वंदन कर प्रत्येक व्यक्ति अपने को सौभाग्यशाली मानता उत्तर- अब इस विषय में क्या कहूँ? है। उनकी ज्ञान, ध्यान और तपश्चर्या की सभी प्रशंसा करते ३. आचार्यश्री ! आपको बुन्देलखण्ड ही प्रिय क्यों हैं। कुण्डलपुर में श्रुताराधना शिविर के शुभावसर पर अनेक | लगता है? जैन पत्र-पत्रिकाओं के संपादक भी आये थे। जिन्हें १५ उत्तर- (हँसते हुए) प्रतिप्रश्न किया- व्यक्ति दुकान मई की शाम को आचार्यश्री से वार्ता का संयोग मिला। कहाँ खोलता है? उत्तर- जहाँ चलती है। वहाँ से उठाकर पत्र पत्रिकाओं के संपादकों को दिये गये अपने मुख्य संदेश | अन्यत्र कब जाता है? उत्तर- जब दुकान चलनी बंद हो में आचार्यश्री ने बताया कि जैन पत्र-पत्रिकाओं को अन्य | जाती है। अगर वहीं डटा है तो क्यों? क्योंकि जहाँ रॉ राजनैतिक पत्र-पत्रिकाओं से अलग होना चाहिए। पत्र का | मटेरियल मिलता है वहीं रहना ठीक होता है। इसतरह कार्य पत्रिकाओं के माध्यम से नहीं होना चाहिए अर्थात् | आचार्यश्री का स्पष्ट संकेत था कि और स्थानों के मुकाबले जहाँ पत्र समाचारात्मक होते हैं वहीं पत्रिका विचारात्मक | बुन्देलखण्ड में धार्मिक व्रत, आचरण की भावना अधिक होनी चाहिए। पहले गलत जानकारी प्रकाशित करना, बाद | है। लोगों में सच्चे साधुओं के प्रति आस्था है और स्वयं में भूल सुधार के माध्यम से खण्डन करना किसी भी दृष्टि | साधु बनने की भावना प्रबल है। से उचित नहीं है। किसी भी समाचार को लोगों से सुनकर ४. साधारण व्यक्ति जैनधर्म कैसे अपना सकता है? नहीं बल्कि तथ्यान्वेषणपूर्वक तथा आश्वस्त होकर प्रकाशित उत्तर- शास्त्रों में इसकी विधि बताई गई है। आचार्य करें। पत्रकारों के ऊपर बहुत बड़ी सामाजिक जिम्मेदारी | जिनसेन ने प्रतिज्ञा की थी कि जब आप लोग १००० जैनी होती है उसका उन्हें सम्यक् निर्वाह करना चाहिए। | बना देंगे तभी आहार के लिए उलूंगा। ऐसे-ऐसे महाराज इस पत्रकार वार्ता में नवगठित अ.भा.जैन पत्र | हुए हैं जिन्होंने १०० या १००० जैन बनाकर आहार लिया संपादक संघ से संबद्ध निम्नलिखित संपादक/पत्रकार है। इस बात का इतिहास साक्षी है। जैनधर्म बहुत विशाल उपस्थित थे- श्री कपूरचंद पाटनी (जैन गजट, जैन पार्षद) | है किंतु हम संकीर्ण हो गये हैं। हमारे धर्म की विशालता डॉ. रमेशचन्द जैन, डॉ. नरेन्द्रकुमार जैन, डॉ. सुरेन्द्रकुमार | का कारण इसका विशाल दृष्टिकोण है। हम जब तक गुण जैन (पार्श्व ज्योति), डॉ. राजेन्द्रकुमार बंसल, डॉ. प्रेमचन्द्र ] और दोष नहीं बताते तब तक व्यक्ति प्रभावित नहीं हो रांवका, श्री अखिल बंसल (समन्वय वाणी), श्री नरेन्द्रकुमार सकते। हमें संकीर्णता को तोड़ना होगा। आज तो हम अपने जैन (स्वतंत्र जैन चिंतन), श्री रवीन्द्र मालव (वीर) डॉ. | को नहीं संभाल पा रहे हैं दूसरों को कैसे संभालेंगे? जैन ज्योति जैन (जैन संदेश), डॉ. रतनचन्द्र जैन, पं. मूलचन्द | बनने से पहले जैन धर्म के सिद्धान्तों को पूरी तरह से लुहाड़िया (जिनभाषित), पं. विराग शास्त्री (चहकती चेतना), | आत्मसात् करना चाहिए। रहन-सहन, पहनावा-उढ़ावा में अकलेश जैन (अजमेर आजकल), ब्र. जिनेश मलैया | भी परिवर्तन करना जरूरी है। हमें तंत्र, मंत्र, यंत्र की जगह (संस्कार सागर)। पत्र संपादकों ने आचार्य श्री विद्यासागर | वास्तविक धर्म को समझकर अपनाना होगा, संकीर्णता को जी महाराज से अनेक प्रश्न पूछे जिनके उन्होंने अपने ही | छोड़ना होगा। रोचक एवं दार्शनिक अंदाज में उत्तर दिये। इस पत्रकार | ५. संकीर्णता कैसे टूटे? वार्ता के प्रमुख अंश इसप्रकार हैं उत्तर- (हँसकर) आप बताओ? राजस्थान से व्यक्ति १. आचार्य श्री! आपके वैराग्य का कारण क्या था? | आसाम क्यों गये? उत्तर- समस्याएँ बहुत हैं किन्तु वहाँ उत्तर- अपने विषय में बताना 'आगम की आज्ञा' | व्यापार अच्छा है। हमें भी इसीतरह लक्ष्य की ओर देखना 46 जून-जुलाई 2007 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524318
Book TitleJinabhashita 2007 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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