________________
दान और आहुति आदि कर्म नहीं होते हैं, तो रात्रि में क्या । हिंसा अवश्य होती है अतः रात्रि में पूजा करने का निषेध मनष्यों के लिये भोजन योग्य कर्म कहा जा सकेगा? कभी है। नहीं। (यहाँ रात्रि में देवपूजा तथा स्नान आदि का निषेध | इसप्रकार उपरोक्त सभी श्रावकाचारों के प्रमाणों का किया गया है)
निष्पक्ष अध्ययन करने से निम्नलिखित तीन बिंदु स्पष्ट २. श्री धर्मोपदेश पीयूष वर्ष श्रावकाचार में कहा है- | होते हैं। __'रात्रो स्नान विवर्जनं' ।७३।
१. पूजा प्रात:काल उठकर करनी चाहिये। अर्थ- रात्रि में स्नान करने का त्याग करें। अर्थात् | २. प्रातः, दोपहर तथा संध्याकाल इन तीनों कालों क्योंकि स्नान बिना पूजन संभव नहीं है, अत: रात्रि में पूजा | में भी पूजा करने का विधान है, परंतु किसी भी शास्त का निषेध प्राप्त होता है।
में रात्रि में पूजा करने का उल्लेख नहीं मिलता। ३. श्री सागारधर्मामृत में इस प्रकार कहा है
३. श्रावकाचारों में, रात्रि में पूजन करने का स्पष्ट यत्र सत्पात्रदानादि किंचित् कर्म नेष्यते।
निषेध भी पाया जाता है। कोऽद्या-तत्रात्ययमये स्वहितैषी दिनात्यये। ४-२७।
निष्कर्ष यही निकलता है कि रात्रि में जीव हिंसा अर्थ- जिस रात्रि में सत्पात्रदान, स्नान और देवपूजा | बहत होने के कारण, श्रावक को रात्रि में कदापि पूजा नहीं आदि कोई भी शुभकर्म नहीं किया जाता है, उस
करनी चाहिये। रात्रि में स्वाध्याय, ध्यान, त्रेसठ शलाका रात्रि के समय में कौन अपना हित चाहने वाला पुरुष भोजन
पुरुषों की कथा आदि करने योग्य हैं। वर्तमान में अज्ञान करेगा? कोई नहीं।
या गलत क्रियायें करने का मुख्य कारण, शास्त्रों के स्वाध्याय ४. श्री अमितगतिश्रावकाचार में इस प्रकार कहा है
का अभाव, हमारा भोलापन तथा कुछ गलत विद्वानों आदि यत्र नास्ति यतिवर्ग संगमो, यत्र नास्ति गुरु देव पूजनम्।।
के द्वारा अर्थ का अनर्थ करके सीधे सादे लोगों को बहकाना यत्र संयम विनाशि भोजनं, यत्र संसजति जीव भक्षणम्। ४१ ।
१४१ | है। जब उपरोक्त इतने सारे श्रावकाचारों में स्पष्ट रात्रि पूजा अर्थ- जिसमें साधु वर्ग का संगम नहीं है, जिसमें |
करने का निषेध है, तब फिर भी यदि रात्रि में पूजा की देव और गुरु की पूजा नहीं की जाती है, जिसमें खाया
जाती है, तो ऐसे लोगों को कैसे समझाया जाये? समाज गया भोजन संयम का विनाशक है और जिसमें जीते जीवों |
में ऐसे अधकचरे पंडित बहुत सारे बन गये हैं, जो न तो के भी खाने की संभावना रहती है (ऐसी रात्रि में भोजन
संस्कृत जानते हैं, न प्राकृत ही उन्होंने पढ़ी है, न संस्कृत न करे।)
में शास्त्री है और न आचार्य की डिग्री प्राप्त की है, फिर ५. श्री कुंदकुंदश्रावकाचार में इस प्रकार कहा है
भी वे अन्य विद्वानों की गलतियां निकालते हुये अर्थ का रात्रौ न देवता पूजां स्नान दानाशनानिच।
| अनर्थ कर अपनी स्वार्थसिद्धि में लगे हुये हैं। समाज को न वा खदिर तांबूलं, कुर्यान्मंत्रं च नो सुधीः।५/५।
ऐसे विद्वानों या साधुओं से अत्यंत सावधान रहने की जरूरत अर्थ- बुद्धिमान पुरुष रात्रि में न तो देवताओं की पूजा करे, न स्नान-दान-भोजन ही करें। न कत्था तांबूल
अतः मुख्य आवश्यकता इस बात की है कि किसी का भक्षण करें और न मंत्र को सिद्ध ही करें। ५/५ ।
विद्वान् या साधु के द्वारा बहकाये जाने से बचें। स्वयं (६) श्री लाटी संहिता में इस प्रकार कहा है
स्वाध्याय करें और अपना निर्णय लेने का साहस बनायें। तत्रार्धरात्र के पूजा, न कुर्यादर्हता मपि। हिंसाहेतोरव स्याद्रात्रौ पूजा विवर्जनम्॥५-१८६॥
मेरे इस लेख लिखने का अभिप्राय यही है कि श्रावकाचारों अर्थ- (प्रसंग- तीनों संधि कालों में अर्थात् प्रातः,
में वर्णित विषय को पढ़कर स्वयं का निर्णय बनाते हुये, दोपहर तथा सांयकाल भगवान् जिनेन्द्र की पजा करें परंत) | रात्रि में पूजा करने से होने वाले पाप से बचें और जिनेन्द्रदेव आधी रात के समय भगवान् अरहंत देव की पूजा नहीं
की वाणी के अनुसार प्रधान धर्म के सच्चे पालक बनें। करनी चाहिए। क्योंकि रात्रि में पूजा करने से जीवों की । शुभ भूयात्।
इन्दौर (म.प्र.)
30 जून-जुलाई 2007 जिनभाषित
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org