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वैयावृत्य करने का उल्लेख है। जिस समय क्षपक में भोजनसंयम की भावना शिथिल होती नजर आती है, तब उनका ध्यान क्षपक की कषायों को शिथिल कराने की ओर जाता है और उस विचलित क्षपक को उपदेश देकर, अनेक प्रकार के व्यंजनों को थाली में दिखाकर उससे कहते है कि जितना बने, उतना ग्रहण कर लो, ये श्रावक देने को तैयार हैं और यदि ग्रहण की योग्यता न हो, तो त्याग करने का साहस करो। अनेक जन्मों में कितना भोजन किया है, किन्तु आज तक तृप्ति नहीं हुई । किन्तु जब पदार्थ सामने रखे हैं, खाने
भोपाल की केन्द्रीय जेल में उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज का उद्बोधन
परमपूज्य सराकोद्धारक उपाध्यायरत्न श्री ज्ञानसागर जी महाराज का २८ मई २००७ को भोपाल की केन्द्रीय जेल में मंगल प्रवचन हुआ। लगभग एक किलोमीटर पहले ही जेल के कैदियों के बैण्ड ने उपाध्याय श्री की अगवानी की तथा गेट पर जेल अधिकारीयों ने पाद प्रक्षालन किया । उपाध्याय श्री ने जेल में चल रहीं योजनाओं का अवलोकन किया। मुख्य अतिथि आईजी श्री पवन जैन एवं जेल अधीक्षक श्री पुरूषोत्तम सोमकुंवर थे ।
पूज्य उपाध्यायश्री ने केन्द्रीय जेल में उपस्थित हजारों कैदियों को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन में की गई एक भूल हमें अपने परिवार से दूर कर देती है। किसी व्यक्ति के जेल में रहने पर उसके परिवार पर क्या बीतती है इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि कैदियों को जेल जीवन के दौरान अपने इष्ट का स्मरण करना चाहिए। जेल से बाहर आने के बाद हमसे पुनः कोई अपराध न हो ।
उपाध्याय श्री ने भोपाल जेल के माहौल की तारीफ करते हुए कहा कि यहाँ के अधिकारियों ने कैदियों को पारिवारिक माहौल दिया है। उन्होंने कहा कि भोपाल जेल को यदि व्यसनमुक्त जेल बना सकें तो अच्छा रहेगा। जेल में रहने वाला कोई भी व्यक्ति शराब, सिगरेट, बीड़ी, तंबाखू का सेवन न करें तो उनके जीवन में आध्यात्मिक बदलाव आ सकता है।
की इच्छा होते हुये, खाये नहीं जा रहे हैं, तब उस इच्छा को त्यागकर आत्मसंतोष को क्यों उपलब्ध नहीं करते? अपने लिये हुये व्रत को पालकर स्वर्गादि सुख को प्राप्त कर सकते हो, तो व्रत को भंग कर दुर्गति का पात्र क्यों बनते हो? यदि जबरदस्ती कुछ खा भी लोगे, तो अंत समय में कॉमा में चले जाओगे, बेहोश हो जाओगे, भगवान् का नाम भी न ले सकोगे, जो तुम्हें संसारसमुद्र से पार लगानेवाला है। अतः सल्लेखना देहविसर्जन की वैज्ञानिक प्रक्रिया है, आत्महत्या नहीं । रहली, सागर (म. प्र. )
मुख्य अतिथि आईजी श्री पवन जैन ने कहा कि इतिहास गवाह है कि जिसने भी अभिमान किया है, उसका नाम नहीं हुआ है लेकिन जो धर्म की शरण में आता है वह अमर हो जाता है।
जेल अधीक्षक पुरूषोत्तम सोमकुवर ने उपाध्याय श्री के प्रवचन के बाद सभी का आभार व्यक्त करते हुए उपाध्याय श्री के जेल में आने के उपलक्ष्य में सभी सजाहाफता कैदियों की पांच दिन की सजा माफ करने की घोषणा भी की। कार्यक्रम में ब्र. अनिता दीदी ने उपाध्याय श्री के व्यक्तित्व के बारे में प्रकाश डाला। कमल हाथीशाह ने संचालन किया । उपाध्याय श्री ने भोपाल जेल में आहार चर्या की ।
सुनील जैन संचय शास्त्री
हमारे संस्थान के एक ट्रस्टी श्री सुधीर कुमार जैन, अम्बाला छावनी निवासी (मो. ९३१५६०१६८९) एवं श्रीमति उर्वशी जैन, जो कि पिछले आठ वर्षो से दो प्रतिमाधारी हैं उनकी सुपुत्री कु. रुचिका जैन ने वर्ष २००६ की भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा (आई.ए.एस) में अपने प्रथम प्रयास में ११२वाँ स्थान प्राप्त कर पूरे जैन समाज का नाम भारतवर्ष में रोशन किया है। कु. रूचिका जैन एक सर्वगुण सम्पन्न बालिका है जिसने पंजाब यूनिवर्सिटी चण्डीगढ़ से वर्ष २००६ में ही बी.ई. बॉयोटैक की परीक्षा में चतुर्थ स्थान प्राप्त किया। राजेन्द्र जैन, मुख्य ट्रस्टी
राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान मानित विश्वविद्यालय नई दिल्ली द्वारा २६ दिस. से २९. दिस. २००६ तक पुरी (उड़ीसा) में आयोजित " अखिल भारत शास्त्रीय संस्कृत भाषण स्पर्धा" में सोनल कुमार जैन ने साहित्य शास्त्र में स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
श्री सुमत चन्द्र जैन, दिगौड़ा, जिला टीकमगढ़ (म. प्र. )
22 जून - जुलाई 2007 जिनभाषित
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