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________________ भद्रस्त्रियाँ दिगम्बरमुनि के नाभि से निम्नभाग की ओर दृष्टि नहीं डालतीं। इसके बावजूद भी दिगम्बर मुनियों के सड़कों पर से निकलने को स्त्रियों में कामविकार की उत्पत्ति का निमित्त मानकर नगरों में उनके विहार का निषेध किया जाय, तो स्त्रियों में कामविकार की उत्पत्ति सवस्त्र पुरुषों के तारुण्य एवं सौन्दर्य को देखकर भी हो सकती है, तब क्या सभी पुरुषों का सड़कों पर आवागमन बन्द कर देना उचित होगा? यदि नहीं, तो कामभाव के उद्दीपन का तर्क देकर दिगम्बर मुनियों के नगरों में विहार को अनुचित बतलाना तर्कसंगत कैसे हो सकता है? आधुनिक सभ्यता में अश्लील नग्नता भी अश्लील नहीं मुनि की नग्नता वैराग्यभाव से सम्पृक्त होने के कारण अश्लील नहीं है, किन्तु आधुनिक सभ्यता में तो कामुकता से सम्पृक्त नग्नता भी अश्लील नहीं मानी जाती। फिल्मों में और दूरदर्शन पर नर्तकियों के जो नृत्य दिखाए जाते हैं, उनमें गोपनीय अंगों का प्रदर्शन मुख्य रहता है। वक्षस्थल पर न तो ब्लाऊज रहता है, न दुपट्टा, केवल विशेष प्रकार से डिजाइन किया हुआ एक इतना छोटा सा वस्त्र रहता है, जिससे स्तनों का आधा भाग स्पष्ट दिखाई देता है। इसी प्रकार अधोभाग पर भी इतनी छोटी पैन्टी या स्कर्ट रहती है, जिससे केवल नितम्बभाग आवृत रहता है, जंघाएँ बिलकुल खुली रहती हैं। और नृत्य में स्तनों और नितम्बों का बार-बार संचालन किया जाता है तथा नेत्रों के द्वारा तीव्र कामुकता टपकाई जाती है। आधुनिक 'स्विम सूट' में तो युवतियों के नितम्ब भी उघड़े रहते हैं। इसे सेन्सर बोर्ड अश्लील नहीं मानता और दर्शक इसका विरोध नहीं करते, इसके विपरीत उसमें बड़ा रस लेते हैं। फिल्मों और टी.वी.-धारावाहिकों में नायक-नायिका की आलिंगनमुद्राएँ, चुम्बनक्रिया और बलात्कार के दृश्य दिखाए जाते हैं। 'बैण्डिट क्वीन' जैसी हिन्दी फिल्मों में नायिका के साथ खलनायक को सम्भोग करते हुए और नायिका को नग्न घुमाते हुए दिखाया गया है, जिसे सेन्सर बोर्ड और आज के प्रगतिशील बुद्धिजीवी वर्ग ने अश्लील नहीं माना। फिल्मी गीतों में ऐसे अश्लील शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें गाकर आवारा, गुण्डे, बदमाश सड़कों पर और गर्ल्स कालेजों के आस-पास लड़कियों को छेड़ते हैं, और इन गीतों को सेंसर बोर्ड अश्लील नहीं मानता। दूरदर्शन के माध्यम से यह अश्लीलता घर-घर में प्रविष्ट हो गयी है और पाश्चात्य संस्कृति में रँगे आधुनिक परिवार पिता-पुत्री, भाई-बहिन की मर्यादाओं को ताक पर रखकर इसे मान्यता देते जा रहे हैं। नगरों और महानगरों के चौराहे अश्लीलदृश्यों वाले फिल्मी विज्ञापनों से पटे पड़े हैं। वास्तविक जीवन में भी अधिकांश युवतियों ने छाती पर दुपट्टा डालना छोड़ दिया है और वे जीन्स के साथ चुस्त टी शर्ट पहनकर बिना दुपट्टा डाले बाहर निकलती हैं, पार्टियों, शादी-विवाहों में जाती हैं, मार्केटिंग करती हैं। ऐसी कामुक नग्नता के सामने दिगम्बरमुनि की कामविकारशून्य नग्नता तो किसी गिनती में ही नहीं आती। जहाँ उपर्युक्त कामुक नग्नता को अश्लील न माना जाय, वहाँ दिगम्बरमुनि की कामविकारशून्य, मोक्ष की साधनभूत, शिशुवत् निर्दोष नग्नता को अश्लील मानना कितना बड़ा ढोंग, कपट और अन्याय है, यह आसानी से समझा जा सकता है। दिगम्बरमुनि की नग्नता उपर्युक्त नग्नता के समान अश्लील न होने से समाज के लिए घातक नहीं है, बल्कि हितकारी है, क्योंकि उससे मोक्ष के मार्ग पर चलने और अपने आचरण को पवित्र बनाने का सन्देश मिलता है। अतः पूर्वोक्त बुद्धिजीवियों को उसे अनुचित बतलाने और उसका त्याग कराने का सदाचार-घातक प्रयत्न करने की बजाय उपर्युक्त अश्लील नग्नता को फैलने से रोकने का प्रयत्न करना चाहिए, जिसके कारण सामाजिक मर्यादाओं और नैतिक आचरण के लिए गंभीर संकट पैदा हो गया है। नैतिकता की जड़ें धार्मिक विश्वासों में सामाजिक मर्यादाओं और नैतिक आचरण की जड़ें धार्मिक विश्वासों में होती हैं। मनुष्य हिंसादि पापों से केवल इसलिए नहीं डरता कि उसे कानून सजा देगा, बल्कि इस विश्वास के कारण भी डरता है कि पाप करने से उसे अगले दिसम्बर 2006 जिनभाषित 7 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524312
Book TitleJinabhashita 2006 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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