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________________ धर्मशालाएँ इस सुप्रसिद्ध अतिशय क्षेत्र पर दो विशाल धर्मशालाएँ हैं, जिनमें एक श्री शान्तिनाथ अतिशय क्षेत्र से लगी हुई है, जिसमें वैवाहिक, धार्मिक एवं अन्य सामाजिक आयोजनों हेतु पूर्ण सुविधाएँ उपलब्ध हैं। साथ ही बाहर से आए यात्रियों के ठहरने का समुचित प्रबन्ध भी है। श्री शांतिनाथ दिगम्बर जिनालय की धर्मशाला में भूतल पर कमरे तथा विशाल बरामदा, एवं प्रथम तल पर कक्षों के अतिरिक्त एक सभाकक्ष है । क्षेत्र पर स्थित एक अन्य धर्मशाला में आचार्य श्री विद्यासागरभवन के नाम से एक विशाल सभाकक्ष है। इस खण्ड में पाँच कमरे, स्नानघर तथा शौचालय की सुविधायुक्त, तीन कमरे भोजन बनाने की व्यवस्था सहित तथा छह अन्य कमरे भी हैं । समस्त कक्ष पलंग, बिस्तर, टेबिल कुर्सी, पंखों से सुसज्जित हैं। वृद्धाश्रम बाजारमंदिर स्थित धर्मशाला में जैन युवा संगठन, गुना द्वारा वृद्धाश्रम का निर्माण किया गया है। सांसारिक वृत्तियों से उदासीन हो अपने जीवन का अंतिम समय वृद्धजन आत्मकल्याण हेतु व्यतीत कर सकें, इस भावना से निर्मित वृद्धाश्रम शीघ्र ही प्रारंभ किया जा रहा है। प्रस्तावित निर्माण बड़े मंदिर में लगा हुआ 90 द 140 फीट का एक भूखंड क्षेत्र समिति द्वारा क्रय किया गया है, जिस पर संतों एवं विद्वजनों के परामर्शानुसार निर्माण कार्य किया जावेगा । इसकी बाउण्ड्री का कार्य वर्तमान में चल रहा है। | यातायात की उपलब्ध सुविधाएँ 1. गुना नगरी, आगरा - बम्बई राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। ग्वालियर, इन्दौर, उज्जैन और भोपाल से प्रत्येक समय गुना तक आने के लिये यात्री बसें उपलब्ध रहती हैं। गुना, सिरोंज व आरोन से बजरंग गढ़ आने के लिये बसें एवं छोटे वाहन (ऑटो, जीप इत्यादि) हर समय उपलब्ध रहते हैं। 2. गुना नगरी मध्य रेलवे के बीना-कोटा रेल्वे लाइन पर स्थित है। यहाँ आने के लिए बीना, उज्जैन व कोटा से रेल सुविधा उपलब्ध है । इन्दौर से गुना होते हुए ग्वालियर तक इंटरसिटी एक्सप्रेस, मालवा एक्सप्रेस, देहरादून एक्सप्रेस यातायात के प्रमुख साधन के रूप में हैं, जो दिल्ली से गुना को सीधे जोड़ते है। सादा जीवन, उच्च विचार गाँधी जी - राष्ट्रपिता के नाम से विख्यात हुए। एक दिन की बात है, वे घूमने जा रहे थे । वे एक तालाब के किनारे से निकले। उनकी दृष्टि तालाब की ओर गयी। उन्होंने देखा कि एक बुढ़िया ने आधी धोती पहिन रखी है और आधी धो रही है। उसे देखते ही वे करुणासागर में डूब गये । उनकी आँखों में आँसू आ गये। 36 / अप्रैल, मई, जून 2006 जिनभाषित गाँधी जी ने बुढ़िया की हालत देखकर सोचा कि अरे ! इसके पास तो ठीक से पहिनने के लिए भी वस्त्र नहीं है। ओढ़ने की बात तो बहुत दूर है। कितना अभावग्रस्त जीवन है इसका, फिर भी इसने किसी से जाकर अपना दुख नहीं कहा। इतने में ही काम चला रही है । Jain Education International क्षेत्र की प्रबन्धकारिणी समिति द्वारा प्रकाशित विवरण के आधार पर । गाँधी जी ने जब से जनता के दुख भरे जीवन को देखा, तब से उन्होंने “सादा जीवन प्रारंभ कर दिया "। वे छोटी सी धोती पहनते थे, जो घुटने तक आती थी । उनका सादा जीवन, उनके उच्च विचार आदर्श हैं, जनता के लिए। उनके पास ऐसी आँखें थीं जिनमें करुणा का जल छलकता रहता था । यथार्थ में धर्म यही है कि दीन दुखी जीवों को देखकर आँखों में करुणा का जल छलक आये, अन्यथा छिद्र तो नारियल में भी हुआ करते हैं। दयाहीन आँखें नारियल के छिद्र के समान I For Private & Personal Use Only 'विद्याकथकुञ्ज' www.jainelibrary.org
SR No.524306
Book TitleJinabhashita 2006 04 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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