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________________ श्री शांतिनाथ दि. जैन अतिशय क्षेत्र बजरंगढ़ श्रेष्ठी पाड़ा शाह द्वारा निर्मित 800 वर्ष प्राचीन जिनालय के गर्भगृह में स्थित श्री अरहनाथ, श्री शान्तिनाथ एवं श्री कुन्थुनाथ की 18 फीट ऊँची प्रतिमाएँ प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण एवं सुरम्य पहाड़ियों | की कार्यकुशलता का ज्वलंत प्रमाण है। इसका प्राचीन नाम की तलहटी में स्थित ऐतिहासिक नगरी बजरंगगढ़ आज पूरे | जैननगर था। लेकिन बाद में किले के भीतर स्थापित बजरंग विश्व में दिगम्बर जैन अतिशयक्षेत्र के रूप में प्रसिद्धि पा | मंदिर के नाम पर इसका नामकरण बजरंगढ़ हुआ। पूर्व में चकी है। प्रदषण एवं कोलाहल से दर पलाश एवं अन्य घने | यह जिला मख्यालय भी रहा है। वर्तमान में यहाँ के अधिसंख्य वृक्षों की छाया से घिरे तथा आज पूरी तरह खंडहरों का गाँव | जैन परिवार गुना में बस गए। बन चुके बजरंगगढ़ की गौरव गाथा इस अतिशय क्षेत्र के निश्चय ही ऐसे स्थल हमारी संस्कृति की अनुपम कारण पुनः जनमानस को अपनी ओर आकर्षित कर रही धरोहर होते हैं। इनका संरक्षण-संवर्द्धन करना हर नागरिक है। जिला मुख्यालय गुना से मात्र 7 किलोमीटर की दूरी पर का कर्त्तव्य है। इसी उद्देश्य से दिगम्बराचार्य 108 श्री दक्षिण दिशा में गुना-आरोन-सिरोंज मार्ग पर स्थित इस अतिशय विद्यासागरजी मुनिराज के पटुशिष्य मुनि 108 श्री सुधासागरजी क्षेत्र का इतिहास 8 शताब्दी प्राचीन है। किले के नीचे नदी महाराज एवं ऐलक 105 श्री नि:शंकसागर जी के सान्निध्य तट पर बसे इस ऐतिहासिक ग्राम में पाड़ाशाह द्वारा निर्मित में सन् 1992 में इन प्रतिमाओं का जीर्णोद्धार किया गया। भव्य जैन मंदिर स्थित है। इसके गर्भगृह में 12 वीं सदी की शांत मुद्रा में 18 फीट उत्तुंग खगासन मुद्रा की प्रतिमाएँ अतिशय क्षेत्र में भगवान् श्री शांतिनाथ जी का विशाल स्थापित हैं। जो भक्तजनों को वीतरागता का अनुपम उपदेश - रमणीक समवशरण भी है। यह अतिशय क्षेत्र दिगम्बर जैनाचार्य देती रहती हैं। ये विहंगम प्रतिमाएँ लाल पाषाण से निर्मित श्री गणधरस्वामी की तपोभूमि भी रहा है। प्रतिवर्ष यहाँ तथा ध्यानस्थ एवं अतिशययुक्त हैं। कार्तिक वदी पंचमी को देवाधिदेव जिनेन्द्रदेव के विमानोत्सव का विशाल चलसमारोह आयोजित किया जाता है। जिसमें गुफा में स्थित, ये प्रतिमाएँ मन को भक्ति रस से दूरस्थ स्थलों से हजारों नरनारी उत्साहपूर्वक शामिल होते हैं। सरावोर कर असीम शांति पहुँचाती हैं। इनके चहुँ ओर भित्तियों | प्रतिवर्ष जेठ वदी 14 को भगवान श्री शांतिनाथ जी के जन्म, में स्थापित अनेक प्राचीन प्रतिमाएँ वास्तुकला का अनुपम | तप एवं मोक्ष कल्याणक के अवसर पर यहाँ महामस्तकाभिषेक उदाहरण हैं । इसके अतिरिक्त शिलालेख, भित्तिचित्र भी कला समारोहपूर्वक आयोजित किया जाता है। इसी प्रकार पर्दूषण के सुंदर नमूने हैं। कला और अध्यात्म का यहाँ दुर्लभ संयोग मागील है। पौराणिक कथानकों पर आधारित ये चित्र अपनी निमिति | श्री जी की शोभायात्रा का कार्यक्रम आयोजित किया जाता में पूर्णतः मौलिक एवं अद्वितीय हैं। संवत् 1236 में श्री पाड़ाशाह द्वारा बजरंगढ़ में श्री यहाँ दो जैनमंदिर और भी हैं-एक मुख्य बाजार में शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर के निर्माण एवं प्रतिमाओं की श्री झीतूशाह द्वारा निर्मित किया गया श्री पार्श्वनाथ जिनालय स्थापना के अलावा थूबोनजी, चंदेरी, पपोराजी (म.प्र.) तथा तथा दूसरा श्री हरिशचन्द्र टरका द्वारा बनवाया गया टरका का चाँदखेड़ी (राजस्थान) में भी कई जिनालयों का निर्माण मंदिर। लगभग 50 वर्ष पूर्व जैन परिवारों के बजरंगढ़ से कराया गया था। इतिहास में ऐसा उल्लेख मिलता है कि बाहर निवास करने के कारण इस मंदिर में स्थापित श्री पाड़ाशाह के पड़े इस क्षेत्र में रात्रि में रुके थे और एक पड़े चंद्रप्रभु भगवान की प्रतिमा गुना जैन मंदिर में प्रतिष्ठित कर की लोहे की जंजीर स्वर्ण की हो गयी थी। खोज करने पर दी गई थी। वर्तमान में यह प्रतिमा श्री चंदाप्रभु चैत्यालय उन्हें इस स्थान पर पारस पत्थर की प्राप्ति हुई। इससे प्रभावित मल्हारगंज इन्दौर में स्थापित है। टरकाजी के इस मंदिर में होकर उन्होंने यहाँ एक भव्य जैनमंदिर बनाने की प्रतिज्ञा चित्रों द्वारा भव्य चौबीसी बनाई गई है। की। यह क्षेत्र पाड़ाशाह की उदारता, निष्ठा एवं शिल्पज्ञों -अप्रैल, मई, जून 2006 जिनभाषित / 35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524306
Book TitleJinabhashita 2006 04 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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