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________________ मंदिर, टीला के रूप में कुण्डलगिरि पर न मालूम कब से | में सैकड़ों साल से रह रहा हूँ, अब वह जर्जर हो गया है, अब तक स्थित था, पर इतिहास के माध्यम से 300 वर्ष पूर्व | किसी भी समय गिर सकता है, तो मैं अपना जीवन बचाने का कथानक ही हमारा प्रत्यक्ष सूत्र है, जब नेमिचंद्र ब्रह्मचारी | उस घर को छोड़ दूँ, या उसमें रहा आऊँ ? हमारे निवास एवं ने इसका उद्धार कराया तथा छत्रसाल ने अपनी मनौती के | सुरक्षा हेतु बनाया मकान हमसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण या कीमती तहत मंदिर एवं तालाब का पुनः निर्माणादि कराया था और | है? यह विचार करें। पाँच छह साल से बड़े बाबा मात्र उस अवसर पर माघ सुदी 5 सन् 1700 से यहाँ मेला भी | गर्भगृह में अवस्थित थे, जो एक बड़ी मोटी आर पार चट्टान लगता है। अत: यह सिद्ध है कि कुण्डलपुर स्थित बड़े बाबा | के आधार पर शिखर समेत बना था। विशेषज्ञों की राय में का मूल स्थान यह नहीं है, न मूलवेदी और न मूलनायक | यह निर्माण भूकंप के छोटे से धक्के से धराशायी हो सकता प्रतिमा। था, क्योंकि इसका आधार भी एक पूरी चट्टान है। अतः . अठारवीं शताब्दी के पुरातत्त्ववेत्ताओं और गर्वनमेंट | मूल (तत्त्व) की रक्षा तथा इस अतिशयकारी, प्राचीन मूर्ति द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में इसे 22 वें तीर्थंकर नेमीनाथ की | के लिये आज के आधुनिक साधनों द्वारा पूर्ण सुरक्षित एवं प्रतिमा माना है। यह स्वाभाविक लगता है, क्योंकि महाभारत- | विस्तृत स्थान पर आगे आनेवाले सैकड़ों वर्षों तक करोड़ों कालीननगर, विराटनगर, रुक्मिणिमठ, यहाँ से कृष्ण द्वारा | भक्तों को पूजन-अर्चन का सौभाग्य प्राप्त कराना पुरातत्त्व रुक्मिणि का हरण, उस समय के लोकगीत तथा जनश्रुति | का विनाश है या विकास ? यह (पुरा) तत्त्व का जीर्णोद्धार यही प्रमाण मूर्ति को नेमीनाथ की मूर्ति कहते थे। श्रीधर | है। केवली की कुण्डलगिरि पर स्थापित चरण छतरी, कुण्डलगिरि जिनदेव के भक्त ही इस सोच को पुण्यबन्ध का पर बड़े बाबा का स्थिर हो जाना अतिशय का विषय है। कारण मान सकते हैं। आज 90 प्रतिशत विरोध पुरातत्त्व के कल तक हमारे भाइयों तथा पुरातत्त्व में रुचि | नष्ट होने की शंका के कारण है। यह विरोध समाप्त हो जाना 'रखनेवाले लोगों का कहना था कि बड़े बाबा को स्थानांतरित | चाहिये।"बड़े बाबा" के स्थानांतरित मंदिर का त्वरित निर्माण करने में खतरा है, अत: इस पुरा (पुराना) तत्त्व (मूर्ति) का | कर भव्य एवं अतिशययुक्त विशाल बिम्ब के दर्शन भक्तों संरक्षण करना आवश्यक है, अतः मूल स्थान पर ही स्थापित | को उपलब्ध कराने का ही उपक्रम करना श्रेष्ठ है। रखना चाहिये। मंदिर पूजा-अर्चना करने के स्थान हैं, अतः श्री दि. जैन महावीर आश्रम, जब मूर्ति का अस्तित्व ही खतरे में हो तो? मैं अपने मकान | कुण्डलपुर डॉ. दम्पती को रइधू-पुरस्कार फिरोजाबाद। सुप्रसिद्ध लेखक जैन दम्पति डॉ. कपूरचन्द जैन और डॉ. ज्योति जैन, खतौली को विशाल जनसभा में रइधू पुरस्कार से सम्मानित किया गया। समारोह की अध्यक्षता उ. प्र. विधान सभा के उपाध्यक्ष श्री राजेश अग्रवाल ने की। विशिष्ट अतिथि पूर्व पालिकाध्यक्ष श्री मनीष असीजा थे। श्री राजेश अग्रवाल ने लेखकदम्पती के ग्रन्थ 'स्वतन्त्रता संग्राम में जैन' की विशेष रूप से चर्चा करते हुए कहा कि नई पीढ़ी को यह इतिहास बताना जरूरी है, ताकि वे स्वतन्त्रता के महत्त्व को समझ सकें और देश के लिए मर-मिटने को तैयार रहें। संयोजक प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जी ने पुरस्कार की पृष्ठभूमि बताते हुए कहा कि जैनदर्शन के तलस्पर्शी विद्वान् तथा जिनवाणी प्रचार-प्रसार के लिए सदैव तत्पर रहने वाले पं. श्याम सुन्दर लाल जी ने 'श्री श्याम सुन्दर लाल शास्त्री श्रुतप्रभावक न्यास' की स्थापना की थी जिससे प्रति वर्ष इक्कीस हजार रूपये का पुरस्कार लेखक के समग्र व्यक्तित्व पर दिया जाता है। संचालक श्री अनूपचन्द एडवोकेट ने जैन दम्पत्ति का परिचय देते हुए कहा कि इस दम्पत्ति ने अनेक कठिनाइयों को पार करते हुए 'स्वतन्त्रता संग्राम में जैन' जैसी अमूल्य कृति दी है। डॉ. कपूरचन्द जैन और डॉ. ज्योति जैन ने इस सम्मान प्राप्ति पर श्रुत प्रभावक न्यास का आभार माना और पुरस्कार धनराशि सर्वोदय फाउण्डेशन को भेंट कर दी। इस अवसर पर 'स्वतन्त्रता संग्राम में जैन' (प्रथम खण्ड) के द्वितीय संस्करण की प्रतियाँ फिरोजाबाद के विशिष्ट महानुभावों को लेखक ने अपने हस्ताक्षर कर भेंट की। अनूपचन्द जैन एडवोकेट -अप्रैल, मई, जून 2006 जिनभाषित / 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524306
Book TitleJinabhashita 2006 04 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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