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________________ बोधकथा व्यसन की आग : सब करदे राख बहुत समय पहले की बात है, जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में | हरिदास ने अपने घर से राजमहल तक एक गुप्त सुरंग सद्ऋतु नाम का एक नगर था। उस नगर में भावन नाम का | बनाई। उस सुरंग से जाकर वह प्रतिदिन अपनी इच्छानुसार एक बनिया रहता था। हरिदास उसका इकलौता पुत्र था। | धन चुराकर लाने लगा और व्यसनों में गँवाने लगा। भावन के पास अतुल धन-सम्पत्ति थी किन्तु फिर भी। कुछ समय बाद वणिक भावन धन कमाकर अपने घर उसे विदेश जाकर और अधिक धन कमाने की लालसा लौटा। हरिदास उस समय अपने घर में नहीं था। भावन ने थी। उसकी पत्नी उसे विदेश जाने को मना करती थी पर अपनी पत्नी के कुशल-क्षेम पूछकर जानना चाहा कि बेटा भावन अपनी लालसा नहीं रोक पा रहा था। अपनी चार | हरिदास कहाँ है? करोड़ सोने की मुद्राएँ पुत्र हरिदास को धरोहर के रूप में माँ अपने बेटे की बुरी आदतों/व्यसनों से बहुत दुःखी सम्हलाते हुए उसे जुआ-मदिरा आदि व्यसनों से दूर रहने | थी। उसने पति से बेटे के व्यसनों व खोटे आचरण के बारे में का उपदेश देकर वह और अधिक धन कमाने के लिए बताते हुए कहा कि वह इस सुरंगमार्ग से राजमहल में चोरी विदेश चला गया। करने गया है। भावन क्रोध व दुःख के कारण उत्तेजना से भर हरिदास कच्ची उम्र का था। अभी उसमें हेय-उपादेय, | उठा। पुत्र के अनिष्ट की आशंका से घबराकर वह स्वयं उचित-अनुचित, लाभ-हानि का निर्णय करने की क्षमता | उस सुरंग से उसे ढूंढने चल पड़ा। विकसित नहीं हुई थी। समुचित देख-रेख, सम्यक् रोक- | हरिदास राजमहल से चोरी कर धन लेकर लौट रहा था। टोक, अनुशासन व अंकुश न होने से तथा इतनी अधिक | सुरंग में अंधेरा था। सामने एक मनुष्य-आकृति को देखकर धन-राशि मिल जाने से वह किशोर व्यसनों की ओर उन्मुख हरिदास ने सोचा कि वह जरूर कोई भेदिया है जिसे इस हो गया। सुरंग-मार्ग का पता लग गया है। यह भेद खोल देगा तो मैं धीरे-धीरे हरिदास ने जुए की लत और मदिरा-पान में | मारा जाऊँगा। अपनी मौत से भयभीत हरिदास ने बिना आगाअपना सारा धन गँवा दिया। पास का धन चुक गया तो | पीछा सोचे, बिना देखे-भाले उस मनुष्य-आकृति को तलवार हरिदास कर्जा लेने लगा। कुछ ही दिनों में उस पर काफी | से मौत के घाट उतार दिया। आकृति के स्पन्दन रहित हो कर्जा चढ़ गया। लेनदार परेशान करने लगे। हरिदास को | | जाने पर जब हरिदास ने प्रकाश करके देखा तो वह चौंक धनप्राप्ति का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। उठा, उसने पहचाना-अरे! ये तो मेरे पिता थे। पर ये यहाँ __ जैसा आचार-वैसा विचार, जैसी क्रिया-वैसा व्यवहार। कैसे आ गये? सुरंग से बाहर आकर उसने माँ से पूछा तो व्यसनों में डबा हआ व्यक्ति धन पाने के लिए मेहनत में करना चाहता। वह धन कमाने की कोशिश | खोजने गये थे। नहीं करता। वह तो बिना प्रयास, अनायास ही धन पाना | पिता का हत्यारा हरिदास दण्ड के भय से घर से भाग चाहता है। इसलिए व्यसनों में रत व्यक्ति चोरी-डाका, धोखा- निकला और जंगलों में छिपता रहा, जहाँ हिंसक पशुओं का फरेब आदि कुटेवों में ही उलझता-फँसता जाता है। अंकुश | डर, भूख-प्यास आदि के असह्य दुःखों से वह परेशान हो के अभाव में एक अवगुण नित नये अवगुणों को जन्म देता है। गया। अन्त में दुःख और ग्लानि से पीड़ित हो जंगल में ही हरिदास के साथ भी ऐसा ही हुआ। व्यसनों के कीचड | मर गया। में फँस जाने से उसका हर कदम, हर आचरण उसे और ओह! व्यसनों की आग समय की हवा से बढ़ती जाती नये-नये व्यसनों के गहरे दलदल में फँसाता जा रहा था। है। यह आग धन-सम्पत्ति, मान-मर्यादा, ज्ञान-ध्यान, सन्तोषअपना कर्ज़ चुकाने व खर्च चलाने के लिए उसने चोरी का | धैर्य, प्रेम-विश्वास सब कुछ लील जाती है। इन व्यसनों की मार्ग चुना। उसने राजमहल में चोरी करने की योजना बनाई।। आग में कुछ भी शेष नहीं रहता, बचता है तो सिर्फ दुःख, सही है, जहाँ अथाह धन-सम्पत्ति हो वहाँ चोरी करना आसान | अपमान, क्लेश और पीड़ा-पश्चाताप-ग्लानि रूपी राख। भी है और लाभदायक भी। सागर में से सौ-पचास घड़े व्यसनों से प्रारंभ में क्षणिक भौतिक सुख मिलता है किन्तु पानी निकाल लिये जाएं तो सागर पर इसका क्या प्रभाव | उनका अन्त कितना भयावह और दुःखद होता है। पड़ेगा? 'पुराणकथा मंजरी' से साभार मजदरा नहा करना चाहता मार्च 2006 जिनभाषित /27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524305
Book TitleJinabhashita 2006 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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