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प्रत्यक्षया इव भान्ति निर्मलददशो देवेश्वअभ्यर्चिता। होगा? पंचकल्याणक प्रतिष्ठा और गजरथ यात्रा महोत्सव के विन्ध्ये भूरूहि भासुरोअतिमहिते दिग्वाससांशासनम्॥ पावन प्रसंग पर बीना-बारहा का चैत्य वन्दन लोक लाहु
श्रद्धालु भक्तों की दृष्टि में वह आज भी साकार और परलोक निवाहु मंगल विधायक बनें यही कामना है। जीवंत है। इस पवित्र भूमि में अशेष प्रकृति जैनानुशासन के
प्रस्तोता- 'तीर्थभक्त ' शिखरचन्द्र सोधिया
पूर्व अध्यक्ष प्रताप से महामहिमामंडित हो उठी है। हरिषेण(सन् 932
बीना बारहा तीर्थ क्षेत्र कमेटी ईस्वी) और पद्मनंदि द्वारा श्रद्धाभक्ति पूर्वक स्मरण किये गये
महाराजपुर (देवरी) इस विन्ध्य पारियात्र तीर्थ में अवगाहन कर कौन कृतकृत्य न
दाग लगा दामन में
ज्ञानमाला जैन कीच कपट की मन में, दाग लगा दामन में।
तृष्णा जल की भरी गगरिया, लटपट, झटपट चली गुजरिया ॥ लोभ जेवरी काँधे लपटी, रपट पड़ी रपट न में ॥
ऐसी रेह कहाँ से पाये? मलमल चुनरी दाग छुटाये। सिर से गिर के टी मटकी, हंसी भई सखियन में।
3 पाप कीच से सनी गुजरिया, विषय भोग में कटी उमरिया। रागद्वेष किरिया में अटकी, पछतावा बस मन में ॥
जब जब पाती मिली मौत की
मनोज जैन 'मधुर' जब जब पाती मिली मौत की, रोया बहुत किया। जीवन को जैसा जीना था, वैसा नहीं जिया। दया धर्म के लगा मुखोटे, धोते रहे नमक से छाले। अभिनय करते रहे राम का, अन्तर में रावण को पाले। साधु बनकर 'लोभ' 'शांति' की. हरता रहा सिया | नश्वरता का पाठ पढ़ाने, नित-नित आयें सांझ सकारे। आपाधापी की मदिरा पी, वौरा जाते भाग्य हमारे। भेद ज्ञान की दिव्य दृष्टि से, अंतर नहीं किया ।।2 । धर्म अंजुरी से भर अमृत,जब जब हमें पिलाने आया। पाप वैरियों को वह मन में, फूटी आँख तनिक न भाया। पीते रहे गरल जीवन भर, अमृत नहीं पिया ।। 3 ।। हंसी अमावस अन्तर मन की, जब जब बाहर मनी दिवाली। भरे उजाले बाहर जग में, मन के छोडे कोने खाली। जड़ के दीप जलाए जलाया, मन का नहीं दिया। 4॥
सी. एस./ 13,इंदिरा कालोनी बाग उमराव दुल्हा,
भोपाल-10
सद्गुरु की अब शरण गहेगी, गंदली चूनर नहीं छिपेगी। गुरुवर तो जाने घट-घट की, लाज थकी अँखियन में।
5 गुरु उपदेश लिया गूजरिया, समरस बरसै आत्म नगरिया। अब सुधि आई है निज घट की, धोया मल सावन में ॥ दाग लगा दामन में।
विनयाञ्जली
महेन्द्र कुमार जैन अन्तर्मन का दीप जले तो सारा जग है अपना, अन्तर्मनका दीप जले तो सारा जग है सपना। अन्तर्मनका दीप जलाने हम सब दीप जलायें, अन्तर्मनका दीप जले बिन नहीं मुक्ति पथ पायें ।
ए-332, ऐशबाग, भोपाल-10
20 दिसम्बर 2005 जिनभाषित
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