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________________ ने तो पूरे देश में अपने गलत कार्यों से 'जैन धर्म' की महान् । आचार्यों एवं मुनियों द्वारा शिथिलाचारी साधुओं से दूरी बनाए निन्दा का भी प्रसंग उपस्थित कर दिया है। अन्य भी अनेक | रखना कहीं से भी आगम विरूद्ध प्रतीत नहीं होता। प्रकार की विसंगतियाँ मुनि संस्था में प्रविष्ट हो चुकी हैं। गण्डा अपितु मुझे तो इसमें उनके द्वारा आगम की आज्ञा का पालन ताबीज, टोना-टोटका जैसी आगम विरूद्ध विक्रत परम्परायें और उनकी व्यवहारकुशलता ही दिखाई पड़ती है। भी प्रचलित हो गईं हैं। 1/205, प्रोफेसर्स कॉलोनी, उपर्युक्त परिस्थितियों में आगमानुसारी चर्या रखने वाले | आगरा - 282 002 नमक का सकट पुलक गोयल यह कोई लेख नहीं है, जो लम्बी-चौड़ी भूमिका | अनजाने में उठाया गया भारतसरकार का यह कदम लिखनी पड़े , यह एक चेतावनी है, जो संक्षिप्त शब्दों में | | जैनधर्म की परम्पराओं एवं संस्कृति पर बाधा उत्पन्न कर लिखी जानी चाहिए और बार-बार जैनसमाज को इस संकट | रहा है। यह कदम जैनसमाज की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन से अवगत कराना चाहिए। हाल ही में भारतसरकार ने | | करता हुआ गंभीर मामला बन जाएगा। इस पाबंदी के विरोध आयोडीन रहित नमक की बिक्री पर रोक लगा दी है। अब | में श्री गोविंदाचार्य ने देशव्यापी आंदोलन चलाने का आह्वान भारत की किसी भी दुकान में यदि नमक बिकेगा तो वह किया है। जै नसमाज की तथाकथित प्रतिनिधि आयोडीन युक्त ही होगा। आप सोच रहे होंगे इसमें संकट संस्थाओं/सभाओं/समितिओं को भी इस प्रकरण पर जरूरी की क्या बात है? यह तो जरूरी है। भारतसरकार इस माध्यम प्रयास करना चाहिए। साधकवर्ग तो इसे उपसर्ग मानकर से घेघा रोग का सफाया करना चाहती है। सहन कर लेगा परंतु मुनिभक्त वर्ग भी मौन रहे यह उचित आयोडीन रहित नमक पर पाबंदी का मतलब है कि | | नहीं। अब जैनसाधु,त्यागी,व्रती व शुद्धआहार करने वाले श्रावक उल्लेखनीय है कि पूर्व में भी जैनसमाज के सम्मिलित वर्ग को भी सेंधानमक उपलब्ध नहीं हो सकेगा। सेंधानमक | प्रयासों को सफलता प्राप्त हुई है। कुछ माह पूर्व जब रेलविभाग भी आयोडीन रहित होने के कारण पाबंदी के अंतर्गत आ | ने रेलयात्रा के दौरान घर से लाई हई खाद्य सामग्री के प्रयोग गया है। भारतसरकार का यह निर्णय साधकवर्गव श्रावकवर्ग | पर रोक लगाई थी, तब रेलविभाग को जैनसमाज का आंदोलन पर उपसर्ग से कम नहीं है। जो सेंधानमक आज प्रायः | सहना पड़ा,फलस्वरूप रोक हटा ली गई। आसानी से उपलब्ध हो जाया करता है,उसका दर्शन भी ऐसे ही कुछ सम्मिलित प्रयास जैन मनिभक्त समाज दुर्लभ हो जाएगा। इस परिस्थिति में जैनसाधु व श्रावकवर्ग | को पुनः करना चाहिए। हमें राजनीतिक स्तर पर उपर्युक्त नमक का त्याग कर रसपरित्याग नामक तप को आजीवन | बात पहँचाने के व्यक्तिगत तथा संस्थागत कार्य करने चाहिए। स्वीकार करने के लिए मजबूर हो जाएगा। अथवा उत्तम मार्ग | देश की सर्वोच्च न्यायपालिका में उपर्युक्त प्रकरण पर एक को छोडकर बाजार के आयोडीन मिश्रित कंपनी पैक नमक | जनहित याचिका दाखिल करानी चाहिए। अनेक सम्मेलनों का प्रयोग प्रारंभ कर शिथिलाचार का कलंक स्वीकारना | को आयोजित कर आयोडीन की अनिवार्यता व आवश्यकता पड़ेगा। पर चर्चा करवाकर इसे देशव्यापी बहस का मुद्दा बनाकर ___यह संकट इंगित कर रहा है, आगम में वर्णित | इस पाबंदी को रद्द कराने का प्रयास किया जाना चाहिए। पंचमकाल के अंत वाली कथा पर जब राजा/शासक कर के अन्यथा आगे आने वाले समय में सच्चे रूप में अंतिम मुनिराज के हाथ से प्रथम ग्रास ही छीन लेगा | जैनमुनियों/साधकों के दर्शन भी दुर्लभ हो जावेंगे। मुनिभक्त और फिर चतुर्विध संघ के साथ मुनि भी समाधिमरण | जैनसमाज के लिए यह एक चेतावनी है। स्वीकारेंगे तत्पश्चात् राजा, अग्नि आदि का नाश हो जाएगा श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर और धर्म विहीन छठा काल आ जाएगा। 26 अक्टूबर 2005 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524301
Book TitleJinabhashita 2005 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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