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________________ સ C 21 क ● जिला दि० जैन समाज जैनम् जयतु शासनम् मुर्शिदाबाद मोहनलाल अजमेरा, धुलियान रतनलाल सेठी, अडंगाबाद अध्यक्ष भागचन्द छाबड़ा, लालगोला (03483) 274267, 94340 23822 महामंत्री विजयकुमार बड़जात्या, धुलियान (03485) 252252, 94340 20569 ॥ श्री जिनाय नमः ॥ मुर्शिदाबाद जिला दि० जैन समाज (प० बं०) अध्यक्ष कार्यालय : स्टेशन रोड, पो० लालगोला, जिला गुर्शिदाबाद - ७४२ १४८ (Regd. No S/1L/30187 under West Bengal Societies Registration Act XXVI of 1961) चंदनमल बड़जात्या, जियागंज कपूरचंद सेठी, सन्गतिनगर Jain Education International उपाध्यक्ष शान्तिचन्द छाबड़ा, जियागंज (03483) 255227, 97325 09657 ताराचन्द सेठी, अडंगाबाद (03485) 262778, 97325 68669 सेवाले श्री रतनलाल बेनाड़ा गड़ा मदनलाल काला, खगड़ा सुवालाल अजमेरा, मिर्जापुर उपाध्यक्ष अजितकुमार अजमेरा, धुलियान (03485) 265153, 94340 14762 अशोककुमार काला, बहरमपुर (03482) 252707, 94340 00947 कपूरचन्द ठोल्या, जंगीपुर दानमल गंगवाल, लालगोला संयुक्तमंत्री प्रकाशचन्द काला, धुलियान (03485) 265511, 94341 32233 विरेन्द्रकुमार ठोल्या, खगड़ा (03482) 251620. 97325 04503 मान्यवर महोदय, सादर जय जिनेन्द्र । बड़े ही अफसोस एवं दुःख के साथ लिखना पड़ रहा है कि हाल के 'कुछ वर्षों से कुछ महाव्रतियों द्वारा असामाजिक आचरण किया जा रहा है। गिरडीह धर्मशाला व मधुवन (शिखरजी) में देखा गया है कि एक दि. साधु हाथ में थैला लेकर बाजार में सब्जी, फल आदि माँगकर भिक्षावृत्ति पर उतर आये हैं। कोई साधु दर्शन करने आये श्रावकों से अपने आहार की व्यवस्था में दान पुण्य करने को प्रेरित कर रहे हैं। अकेली महिला के साथ विचरण, एकांत में वार्तालाप, घनिष्ठता आदि से जैन- जैनेतर समाज में इनके आचरणों पर प्रश्न किये जा रहे हैं। अभी हाल में ही आचार्य सम्मानसागर जी महाराज आसाम से विहार कर कानकी, बारसोई पहुँचकर पश्चिम बंगाल प्रान्त के मुर्शिदाबाद जिले में आने के लिए स्थानीय समाज के पदाधिकारियों द्वारा हमें सूचना भिजवाई थी। हमलोगों ने उनकी चर्याओं के बारे में अधिकृत सूत्रों से सुना था । उनके साथ केवल एक महिला नाम चन्दाबाई रहती है । सफर में गाड़ी चलाती है, आहार की व्यवस्था करती है तथा महाराजजी के आदेशानुसार चन्दा दान भी संग्रह करती है। मुर्शिदाबाद जिला दि. जैन समाज की कार्यकारिणी सभा में उपस्थित सभी सभासदों ने एकमत होकर निर्णय दिया था कि ऐसे महाराजजी जिनके आचरणों पर प्रश्न चिन्ह हैं हम उन्हें सैद्धांतिक और मानसिक रूप से ग्रहण करने में असमर्थ हैं तथा इसप्रकार की गलत क्रियाओं वाले साधु को मुनि मानने में भी परहेज है । For Private & Personal Use Only दिनांक १५.०८.२००५ हमलोग पूर्वांचल वासी व्यापार के सिलसिले में यहाँ के अधिवासी हैं। देश, काल, समय, परिस्थिति को ध्यान में रखकर प्रशासन, प्रभावशाली व्यक्तियों का सहारा लेना पड़ता है । स्थानीय लोग दि. मुनियों के सर्वसाधारण में विचरण पर टीका-टिप्पणी व तर्क-वितर्क करते हुए हमेशा देखे जाते हैं । हमलोग अल्पसंख्यक हैं या कहें कि अणुसंख्यक हैं। स्थानीय लोगों से सद्भाव मित्रता का व्यवहार कर धर्मपालन में अनुरक्त रहने का प्रयास करते हैं। हमारे क्षेत्र में आने वाले महाव्रती हमारे आदर्श होने चाहिये ताकि उनसे प्रेरणा लेते हुए समाज का उद्धार व अपनी आत्मा का कल्याण कर सकें। साथ-साथ जैनधर्म की प्रभावना इधर बढ़ सके । अक्टूबर 2005 जिनभाषित 27 www.jainelibrary.org
SR No.524301
Book TitleJinabhashita 2005 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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