SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कार से संस्कृति के जुड़ते तार डॉ. वन्दना जैन स्वामी विवेकानंद जी अमेरिका की यात्रा से भारत | अमिट छाप छोड़ते हैं। क्योंकि बच्चे कोमल मिट्टी की तरह आ रहे थे, कि तभी पत्रकारों ने उनकी भारत के बारे में राय | होते हैं। उन्हें जिसतरह का आकार दिया जायेगा वे उसी जाननी चाही, तब उन्होंने कहा कि, 'अभी तक तो मैं भारत आकार में ढल जायेंगे। से प्यार करता था, पर अब मैं उसकी पूजा करूँगा।' पत्रकारों आज की आधुनिकता की अंधी दौड़ में सद्संस्कार को बात समझ में नहीं आई तब उन्होंने समझाया, कि भारत | ढूँढे से भी दिखाई नहीं देते हैं। हमारा जीवनमूल्य लगातार में विपन्नता के बाद भी लोग सुख से जीते हैं तथा अमेरिका | गिरता जा रहा है। जीवन के प्रति हमारा दष्टिकोण बदल गया में सम्पन्नता ही नहीं अति आधुनिकता है, फिर भी एक | है। सारी दनियाँ में जो भारत की साख थी. विश्व गरुवाली पुस्तक वहाँ बहुत बिक रही है, उसका नाम है, 'हाऊ टू डू | छवि कछ धंधली-सी होने लगी है। सारे विश्व में भारत का सोसाइड' आत्महत्या के सरल तरीके, इसका क्या कारण त्याग और जर्मन की शक्ति प्रसिद्ध थी, पर क्या कारण है कि है? वहाँ साधन तो बहुत हैं, पर सुख नहीं है। सामग्री भरी वह लुप्त हो रही है। अराजकता व अश्लीलता बढ़ती जा पड़ी है, पर शांति का नोमोनिशान तक नहीं है। किसी कवि | रही है। हिंसा और आतंकवाद अपने पैर जमाता जा रहा है। ने कहा है : पुलिस स्टेशनों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। आज साधन में सुख होता नहीं है,सुख जीवन की एक कला है। भारत में लगभग साढे बारह हजार पुलिस स्टेशन हैं और ५५ मुझसे ही हल किया न तूने, अपने को तूने आप छला है। हजार पुलिस चौकियाँ हैं। पर वारदातों की संख्या दिन दूनी भारत की जनता राजा को पालती आई है, और वहाँ रात चौगुनी होती जा रही है। आखिर क्या कारण है कि जो (विदेशों) का राजा जनता को पालता है। यह हमारे संस्कार | विदेशों में कहावत प्रचलित थी कि इस जन्म में अच्छे कर्म ही हैं कि हम अपने अस्तित्त्व को अभी तक बचाये हुए हैं। | करेंगे तो भारत में जन्म होगा? उस भारत के संस्कार और भले ही वह कुछ धूमिल पड़ते दिखाई दे रहे हों, पर जब | | संस्कृति आखिर अपने अस्तित्त्व को बचाने का प्रयास करते जड़ें गहरी होती हैं तो वृक्ष की हरियाली कभी सूखने नहीं | नजर आने लगे हैं। पाती। और यह संस्कार हमें बचपन से घुट्टी में पिलाये जाते | कारणों पर दृष्टिपात करें तो हम पायेंगे पाश्चात्य सभ्यता हैं, या यों कहें कि गर्भावस्था से ही डाले जाते हैं। का बढ़ता प्रभाव। टेक्नालॉजी व दरसंचार के साधनों का परिवार बच्चे की प्रथम पाठशाला होता है तथा माँ दुरुपयोग आज हरजगह हो रहा है। हमारा पहनावा व खानउसकी प्रथम गुरु। एक माँ ही है जो बच्चे को ऊँचाइयों पर | पान, यहाँ तक कि हमारी भाषा पर भी यह साधन अपना पहुँचा देती है। उन्नति के सोपान माँ के आँचल से जुड़े होते | प्रभाव डाल रहे हैं और उसका असर हमें उसी रूप में हैं। हों भी क्यों न ? जितनी भी कोमल शब्दावली है, उसमें दिखाई देगा। से अधिकांश स्त्रीलिंग में ही है। करुणा कैसी, दया कैसी, इसके लिए हमें अपने आपको दूषित मानसिकता से ममता कैसी और मोह कैसा, पाप कैसा, लोभ कैसा आप | बचाना होगा, अपने आपमें आत्म विश्वास को जमाना होगा, स्वयं तुलना कर लीजिए। वर्तमान में शोधों द्वारा पता लगाया | क्योंकि: गया है कि शिशु को शुरुआत से ही एक स्त्री शिक्षा दे अथवा मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है। महिला उसकी टीचर हो तो उसका विकास अपेक्षाकृत पंख होने से कुछ नहीं होता, हौसलों में उड़ान होती है। अधिक जल्दी होता है तथा उसमें सद्संस्कारों का बीजारोपण अपनी सुषुप्त शक्तियों को हमें जाग्रत करके कुछ होता है। क्योंकि महिला में कुछ ऐसे जन्मजात गुण होते हैं रचनात्मक कदम उठाने होंगे, तभी हम फैले हुए इस जो बच्चे का भविष्य सँवार देते हैं। सांस्कृतिक प्रदूषण को कम कर पायेंगे। पर हमारा प्रयास इसके बाद बच्चा अन्य लोगों व पाठशालाओं के सिर्फ उच्चारण तक न होकर उच्च आचरण की ओर हो सम्पर्क में आता है और वहाँ से उसे वो संस्कार दिये जाते हैं क्योंकि दूसरे को सुधारने से पहले स्वयं को सुधारना होगा जो कि उस पर स्थाई होते हैं और उसके व्यक्तित्त्व पर | तथा अपने जीवन में सरलता व सादगी का समावेश करना -अक्टूबर 2005 जिनभाषित 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524301
Book TitleJinabhashita 2005 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy