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________________ (विच्छेदन) पर रोक लगायी, इससे निश्चित ही उन लाखों । वरदान है। जहाँ प्रतिबन्ध नहीं है, वहाँ प्राचार्य, शिक्षक, करोड़ों मेढ़कों और मेढ़क ही क्यों, प्रयोगशालाओं में प्रयुक्त | | अभिभावक, विद्यार्थी, जीवदया से संबंधित संगठन, स्वयंसेवी होनेवाले जीव-जन्तुओं को राहत मिली। यद्यपि वैज्ञानिकों ने | संस्थायें एवं प्रबुद्ध नागरिक इस जीव कल्याणकारी निर्णय इस पर घोर आपत्ति जताई। उनका कहना था कि इससे | को व्यापक रूप से प्रचारित व प्रसारित करायें। छात्रों की नींव कमजोर होगी, पर यह मिथ्या प्रचार था। सभी | अमेरिका, इटली, जर्मनी आदि विकसित देशों में बच्चे डाक्टरी की पढ़ाई में नहीं जाते,जबकि सभी को प्रेक्टिकल | रबड़ के कृत्रिम जीव-जन्तुओं की हू-ब-हू आकृतियाँ करना पड़ता था और अनावश्यक ही इतने जीव-जन्तु मारे | प्रयोगशाला के लिये बनायी जाती हैं। इनका आकार, स्वरूप, जाते थे। पर फिर भी इन जीव-जन्तुओं के डिसेक्शन | चीर-फाड़ करने के लिये आमाशय, नाड़ियाँ, यकृत आदि (विच्छेदन) पर पाठ्यक्रम में प्रतिबन्धित कराये जाने में | अंग भी रहते हैं। शारीरिक संरचना के अध्ययन के लिये सफलता प्राप्त हो गयी। यह उपयुक्त भी है। भारत में भी इसकी शुरूआत हो गयी __ अनेक बोर्डों, जैसे माध्यमिक शिक्षा मण्डल भोपाल | है। आज कम्प्यूटर आदि साधनों के माध्यम से भी सब कुछ (म.प्र.), सी.बी.एस.ई. नई दिल्ली, गुजरात सैकेण्डरी | सहजता से समझाया जा रहा है, फिर जीव-जन्तुओं का एजूकेशन बोर्ड गाँधीनगर, हरियाणा बोर्ड (भिवानी), उ.प्र. विनाश क्यों किया जाये? इसतरह जहाँ एक ओर जीवहाई स्कूल एण्ड इण्टरमीडिएट एजूकेशन बोर्ड इलाहाबाद | जन्तुओं के संरक्षण से हमारा पर्यावरण सन्तुलन भी बना आदि ने अपने-अपने पाठ्यक्रमों से जीवविज्ञान-विषयक | रहेगा, वहीं दूसरी ओर भारतीय संस्कृति के मूल सिद्धान्त प्रायोगिकी में डिसेक्शन पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया है। अहिंसा, करुणा, दया, मैत्रीभाव आदि की भी रक्षा हो इसके लिये सहायक सामग्री, चार्ट्स, मॉडल, कम्प्यूटर, सकेगी। सी.डी. आदि के उपयोग को निर्देशित किया गया है। शिक्षा शिक्षक आवास, बोर्ड का यह कदम निश्चित ही सराहनीय व अनुकरणीय कुन्दकुन्द जैन महाविद्यालय परिसर, खतौली (उ.प्र.) है. साथ ही पर्यावरण संरक्षण एवं प्राणियों के हित में बोधकथा अधःपतन का कारण डॉ. आराधना जैन 'स्वतंत्र' शिष्यों ने गुरु से शिक्षा प्राप्त कर ली। एक दिन बाद उन्हें धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए गुरु के निर्देशानुसार अलग-अलग स्थान पर जाना था। अतः सभी शिष्य आपस में बैठकर चर्चा कर रहे थे कि हमें जनता को अध:पतन से बचाने और धर्म के सम्मुख करने के लिए क्या उपाय करना चाहिए। तभी एक ने कहा-लोभ त्याग, दूसरे ने कहा- अहंकार का त्याग, तीसरे ने कहा-अहिंसा का पालन, चौथे ने कहा-काम वासना का त्याग। चर्चा में सभी के उत्तर भिन्न-भिन्न होने से शिष्य सन्तुष्ट नहीं हुए। वे गुरु के पास गये और विनम्रतापूर्वक अपनी समस्या उन्हें बतलाई । गुरु ने उनसे पूछा- यह बताओ कि मेरा कमण्डल किस पदार्थ से बना है? शिष्यों ने कहा-लकड़ी का कमण्डल बना है। गुरु ने पुनः पूछा- यदि इसे नदी में डाल दें तो क्या होगा? उत्तर मिला- नदी में कमण्डल तैरेगा। यदि कमण्डल में एक छेद करके नदी में छोड़ दें तो क्या परिणाम होगा? गुरु ने प्रश्न किया। शिष्यों ने बतलाया- कमण्डल नदी में डूब जायेगा। गुरुजी पुन: बोले -यदि मैं कमण्डल में दायीं ओर छेद कर दूं तो क्या होगा? शिष्यों ने उत्तर दिया- आप कमण्डल में किसी भी ओर छेद करें कमण्डल नियम से डूबेगा ही। गुरुजी ने शिष्यों को समझाया- वत्सो! यह मानव-जीवन कमण्डल के समान है। इसमें कोई भी दुर्गुणरूपी छिद्र होते ही पतनरूपी जल प्रवेश करके उसे पतित बना देता है। अत: मानव को अध:पतन से बचाने के लिए और धर्मसम्मुख करने के लिए उसके दुर्गुणरूपी छिद्र बन्द करना होंगे। गंजबासौदा (म.प्र.) 18 अक्टूबर 2005 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524301
Book TitleJinabhashita 2005 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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