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गुजरात राज्य के जूनागढ़ जिले में स्थित प्रमुख जैन तीर्थ श्री गिरनारजी पर्वत पर अतिक्रमण और
उसका स्वरूप परिवर्तन
एन.के. सेठी पृष्ठभूमि
लिए वचनवद्ध है। भगवान् महावीर के २६००वें जन्म महोत्सव जैन शास्त्रों और मान्यताओं के अनुसार श्री गिरनारजी के अवसर पर केन्द्र सरकार ने ढाई करोड़ से अधिक की पर्वत श्री सम्मेदशिखरजी के बाद, जैनों का दूसरा सबसे ।
| राशि श्री गिरनारजी जैन तीर्थ के विकास के लिए मंजर की महत्वपूर्ण तीर्थ है। पहली शताब्दी से आज तक जैन शास्त्रों
थी। में ऐसे असंख्य उल्लेख हैं जो प्रमाणित करते हैं कि जैनों के वर्तमान समस्या बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ और अनेक जैन मुनियों ने
केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के ऊपर उल्लेखित गिरनार पर्वत पर तपस्या की और पर्वत के विभिन्न शिखरों | कानूनी कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों के होते हुए भी वहाँ से वे मोक्ष गये। उन मोक्ष-स्थलों पर उनके चरणचिन्ह स्थित कतिपय असामाजिक तत्वों ने कुछ ऐसी अवांछनीय एवं हैं। भगवान् नेमिनाथ के तीन कल्याणक, यथा दीक्षा | गैर-कानूनी कार्य किये हैं जिनसे पर्वत-श्रृंखला पर बने कल्याणक, तप कल्याणक व मोक्ष कल्याणक इसी पर्वत | स्थलों के जैन स्वरूप में परिवर्तन हुआ है। सन् १९०२ एवं पर हुए। गिरनार पर्वत इसी कारण से सिद्धक्षेत्र कहलाता है। १९१४ में पाँचवी टोंक पर बनी छत्री के बिजली के नष्ट होने पर्वत के शिखरों पर अनेक विख्यात जैन राजाओं, उनके | की स्थिति में श्री बंडीलाल दिगम्बर जैन कारखाना, श्रा मंत्रियों और सामान्य व्यक्तियों ने भी अत्यन्त भव्य और | गिरनारजी द्वारा अनुमति चाहे जाने पर जूनागढ के नवाब ने दर्शनीय तथा कलापूर्ण मंदिर बनवाये हैं तथा मूर्तियाँ और उन्हें छत्री के पुनर्निर्माण की अनुमति प्रदान की थी। सन् चरण आदि स्थापित किये हैं। बहुत बड़ी संख्या में जैनयात्री | १९८१ में छत्री के नष्ट होने पर जब इस संस्था ने पुनः इन मंदिरों और चरणचिन्हों के दर्शन पूजन करने के लिए | इजाजत मांगी तो सरकार ने यह कहकर इन्कार कर दिया अनादिकाल से श्री गिरनारजी पर्वत पर जा रहे हैं और बिना | कि पाँचवीं टोंक संरक्षित स्थल है अत: सरकार स्वयं छत्री किसी बाधा के वहाँ पूजा-पाठ करते आ रहे हैं। श्री नेमिनाथ | | का निर्माण करायेगी। गत वर्ष अर्थात् सन् २००४ के मई माह एक ऐतिहासिक व्यक्तित्त्व थे और भगवान् कृष्ण के चचेरे | में वहाँ कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा अनाधिकृत रूप से भाई थे। हिन्दू धर्म-शास्त्रों में उनका उल्लेख अरिष्टनेमि के | छत्री का निर्माण प्रारम्भ किया गया, जिसके विरुद्ध गुजरात नाम से आता है।
उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की गई। गुजरात उच्च श्री गिरनारजी पर्वत स्थित जैनतीर्थ के ऐतिहासिक, न्यायालय ने यथा-स्थिति बनाये रखने के आदेश दिये, किन्तु कलात्मक और धार्मिक महत्व तथा प्राचीनता के कारण असामाजिक तत्वों द्वारा छत्री का निर्माण रोका नहीं गया। तत्कालीन सौराष्ट्र राज्य ने तथा बाद में अन्य सरकारों ने पर्वत इतना ही नहीं भगवान् नेमिनाथ के चरणचिन्हों के पास गुरु की पाँचवीं व तीसरी टोंक सहित अन्य कुछ स्थलों को | दत्तात्रेय की ढाई फुट ऊँची प्रतिमा अनाधिकृत रूप से पुरातत्त्व की दृष्टि से "संरक्षित स्मारक" घोषित करते हुये | विराजमान कर दी गई। भगवान् नेमिनाथ के चरणों पर उनके मूल-स्वरूप और शिल्प को तथा पूज्यनीय वस्तुओं | चढ़ाये जानेवाले चढ़ावे को हथियाने के लालच में कुछ की सुरक्षा और संरक्षण का कानूनी उत्तरदायित्व स्वीकार | असामाजिक तत्वों ने जैन तीर्थयात्रियों से दर्शन-पूजन करने किया है।
के लिए बलपूर्वक धन वसूलना शुरू कर दिया और उनको केन्द्रीय सरकार भी पूजास्थल (विशेष उपबन्ध) | भगवान् नेमिनाथ की जय बोलने से भी मना करने लगे। अधिनियम, १९९१ बनाकर १५ अगस्त, १९४७ को पूजा- | विरोध करने पर तीर्थ यात्रियों को असामाजिक तत्वों द्वारा स्थलों के स्वरूप के संरक्षण का तथा उनके स्वरूप में कोई | मारा-पीटा गया, जिसकी प्रथम-सूचना-रिपोर्ट पुलिस-थानों परिवर्तन न होने देने के कानूनी कर्तव्यों को पूरा करने के | में दर्ज हैं। 14 अक्टूबर 2005 जिनभाषित
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