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________________ | गुजरात उच्च न्यायालय ने इस स्थिति को ध्यान में रखकर पर्वत पर पुलिस व्यवस्था के आदेश दिये, किन्तु फिर भी असामाजिक तत्वों द्वारा जैनियों द्वारा की जानेवाली पूजा-अर्चना में विघ्न डालना बंद नहीं किया गया। पर किये गये अतिक्रमण के सम्बन्ध में जब प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाने का प्रयास किया गया, तो प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं की और यह कहा कि तीसरी शिखर संरक्षित स्थल है, अतः पुरातत्त्व विभाग द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज गुजरात उच्च न्यायालय में याचिका के चलते हुए करायी जानी चाहिए। इन घटनाओं से तथा केन्द्र सरकार और स्थगन आदेश के 'बावजूद मई २००५ के मध्य में तथा राज्य सरकार की ढिलाई से व्यथित होकर प्रमुख जैन कुछ महन्तों ने पर्वत वंदना प्रारम्भ होने के स्थान पर " श्री गिरनार आचार्य श्री मेरूभूषण जी महाराज ने २५ अक्टूबर, २००४ गुरु दत्तात्रेय प्रवेश द्वार” के निर्माण के लिए भूमिपूजन को जब वे कर्नाटक में थे, अन्न त्याग कर दिया था । उन्होंने करवा लिया। कुछ असामाजिक तत्वों का यह कहना कि ३० जनवरी, २००५ के आमरण अनशन (उपसर्ग सल्लेखना) श्री गिरनारजी की पाँचवें शिखर पर जो चरण हैं वे गुरु की घोषणा की थी, किन्तु समाज और एक्शन कमेटी के दत्तात्रेय के हैं, जबकि सच यह है कि उक्त चरणचिन्ह आग्रह को ध्यान में रखकर ३० जनवरी से किये जानेवाला भगवान् नेमिनाथ के हैं और हजारों वर्षों पूर्व तब स्थापित आमरण अनशन स्थगित कर दिया था। तीसरी टोंक की किये थे जब नाथ सम्प्रदाय का जन्म भी नहीं हुआ था। ध्यान नवीन घटनाओं और श्री गिरनारजी प्रवेशस्थल पर दत्तात्रेय देने योग्य यह है कि श्री नेमिनाथ के चरणचिन्ह गिरनार प्रवेशद्वार बनाने जैसी कुचेष्टा से व्यथित होकर आचार्य श्री पर्वत के शिखर पर विद्यमान होने के उल्लेख पहली शताब्दी मेरूभूषण जी महाराज ने २८ जुलाई, २००५ से आमरण के पूर्व के हैं। सन् १८७४-७५ में जैम्स वर्गीस, जो पुरातत्त्व अनशन (उपसर्ग सल्लेखना ) इन्दौर में प्रारम्भ कर ली। विभाग के डायरेक्टर जनरल थे, ने यह स्पष्ट रूप से लिखा इससे देश का सम्पूर्ण जैन समाज आन्दोलित है। श्री गिरनारजी है कि पाँचवीं टोंक पर केवल दो ही पूजनीय स्थल हैं: एक तीर्थ राष्ट्र-स्तरीय एक्शन कमेटी ने गुजरात उच्च न्यायालय भगवान् नेमिनाथ के चरण और दूसरा : शिला पर उकेरी हुई में उपरोक्त दोनों अवांछनीय घटनाओं को लेकर नयी याचिकायें भगवान् नेमिनाथ की मूर्ति । यह भी ध्यान देने योग्य है कि प्रस्तुत की हैं। तलहटी से लेकर पर्वत की टोंकों तक जाने के लिए लगभग दस हजार सीढियों का मार्ग है। यह सभी सीढ़ियाँ जैनियों द्वारा आज से ८०० वर्ष पूर्व निर्माण कराई गई थी और तब से ही जैन संस्था ही उनका रख-रखाव करती आ रही हैं। तलहटी में श्री गिरनार गुरु दत्तात्रेय प्रवेशद्वार के नाम से नया प्रवेशद्वार बनाने का कोई औचित्य नहीं है। यह तो केवल जैनियों के श्री गिरनारजी पर्वत के लिए प्रवेश को रोकने का एक षडयंत्र है। अपने षडयंत्र के क्रम में असामाजिक तत्वों ने ०७ जून, २००५ को तीसरी टोंक पर भी मुनि श्री शम्भु कुमार जी के आदिकालीन चरणचिन्हों की बगल में गुरु गोरखनाथ और बाबा रामदेव की मूर्तियाँ स्थापित कर 1 भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी ने श्री गिरनारजी तीर्थ के सम्बन्ध में देश के सभी दिगम्बर जैन राष्ट्र-स्तरीय संस्थाओं को संगठित करते हुए श्री गिरनारजी तीर्थ राष्ट्र-स्तरीय एक्शन कमेटी का गठन किया है। श्री गिरनारजी तीर्थ राष्ट्र-स्तरीय एक्शन कमेटी की ओर से भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं अन्य सभी संबंधित महानुभावों को ज्ञापन भेजे गये हैं। जूनागढ की पुलिस को तीसरी टोंक Jain Education International दिनांक ०९ अगस्त, २००५ को गुजरात के मुख्यमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी ने जैन समाज के प्रतिनिधि मण्डल को ध्यानपूर्वक सुना और जिला कलेक्टर तथा पुलिस अधीक्षक जूनागढ़ से वीडियो कोन्फ्रेन्सिंग के माध्यम से सही स्थिति का आकलन किया और नरेशकुमार सेठी, अध्यक्ष, एक्शन कमेटी के नेतृत्व में गये प्रतिनिधि मण्डल को यह आश्वस्त किया कि वे जैनियों के विरुद्ध कोई अत्याचार नहीं होने देंगे। साथ ही साथ उन्होंने आचार्य श्री मेरूभूषण जी महाराज से आमरण अनशन (उपसर्ग सल्लेखना) त्यागने का अनुरोध किया । आचार्यश्री ने जैन समाज, एक्शन कमेटी एवं गुजरात के मुख्यमंत्रीजी का निवेदन स्वीकार करते हुए १३ दिन से चल रहे अपने आमरण अनशन को १० अगस्त, २००५ को विराम अवश्य दे दिया है, किन्तु वे अभी भी अन्न त्याग जारी रखे हुए हैं। जैनसमाज अहिंसक समाज है, किन्तु समाज पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द करना आवश्यक है। श्री गिरनारजी पर्वत की घटनाओं पर एक्शन कमेटी के आह्वान पर चार सूत्रीय विशाल जन-आन्दोलन प्रारम्भ किया गया है। इसमें पहली कड़ी के रूप में १४ अक्टूबर 2005 जिनभाषित 15 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524301
Book TitleJinabhashita 2005 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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