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________________ के समूह के समूह सम्पर्क में आते रहे और वर्षायोग स्थापना | . अगस्त २००५ के प्रथम पखवाड़े में पूज्य मुनिश्री की की प्रार्थना को बड़े आत्मविश्वास के साथ करते रहे। आखिर | विशेष प्रवचन माला सुनने का सौभाग्य इन पंक्तियों के मुनिश्री के मौन ने, इस प्रार्थना को इनके पारस-गुरु | लेखक को मिला और हजारीबाग में पाँच दिन रहकर, पूज्य संतशिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज तक पहुंचाई। मुनिश्री के गृहस्थावस्था की माता श्रीमति सोहनीदेवी पिता हजारीबाग की भावनाओं का समुन्दर हिलोरे लेता हुआ जब | श्री सुरेन्द्रकुमार सेठी और अन्य परिवारजनों से भेंट कर आचार्यश्री तक पहुँचा तो उनकी मस्कान और आशीर्वाद ने | उसी पावन गहरज को मस्तक पर लगाने का सौ लोगों की अभिलाषा को एक बड़ा सम्बल प्रदान किया। | हुआ, जिसमें पूज्य मुनिश्री जन्मे और बड़े हुए थे। आपके राँची की महावीर जयन्ती और श्रीमद् जिनेन्द्रपंचकल्याणक | चचेरे भाई श्री सुनीलजैन एवं ताईजी श्रीमति विमला जैन महोत्सव की धार्मिक धूमधाम के बाद जब आचार्यश्री का | जिन्हें आप माई कहकर पुकारते थे, लगभग एक घंटे तक हजारीबाग में वर्षायोग करने की अनुमति और आशीर्वाद | साक्षात्कार करके उनकी मनोगत भावनाओं से रूबरू हुए। मिला तो लोगों के हर्षातिरेक का ठिकाना नहीं रहा और मुनि | उस साक्षात्कार से यह बात सामने आई कि बालक नवीन श्री प्रमाणसागर जी का मौन मुखरित हो गया जब उन्होंने | के जीवन में एक अप्रत्याशित परिवर्तन घटित हआ। अध्यात्म हजारीबाग में चातुर्मास करने की उद्घोषणा कर दी। फिर | और धर्म का क,ख,ग' न जानने वाला नवीन, परमपूज्य के क्या था, आनन-फानन में शहर के वरिष्ठ गणमान्य नागरिकों | पारस प्रभाव से उनकी सुषुप्त आत्मा ऐसे जाग गई जैसे कोई ने एक 'चातुर्मास धर्म-प्रभावना' समिति का गठन किया। नींद से जाग जाता है। यह क्रांतिकारी परिवर्तन उनके नानाजी जिसमें हिन्दू समाज के २१ सम्माननीय सदस्यों ने अपनी | के नगर दुर्ग में हुआ। जहाँ आचार्यश्री विराजमान थे। और धर्म-सहिष्णता और मनिश्री के ज्ञान और चारित्र की तेजस्विता | उनकी कपा और आशीर्वाद का ऐसा प्रसाद मिला कि आज को पूर्ण गरिमा के साथ नगर में यशोविजय बनाने के लिए | एक विश्रुत दिगम्बर संत के रूप में उनकी तेजस्विता प्रगट संकल्प लिया। इस सम्पूर्ण चातुर्मास को यादगार बनाने के | हो रही है। मुनिश्री के बहुत सारे बालमित्रों, सहपाठियों और लिए संयोजक श्री बृजमोहन केशरी और सह-संयोजक श्री | शिक्षकों से भी साक्षात्कार किया। और उनकी गहरी भक्ति बनवारीलाल अग्रवाल ने अपने संकल्प को दुहराया। दिगम्बर और भावनाओं से अवगत होकर। यह सोचने के लिए बाध्य जैन समाज के तत्त्वावधान में भी एक 'मुनि श्री प्रमाणसागर | कर दिया कि मुनिश्री में ऐसा क्या सम्मोहन है, जो प्रात: ५ जी चातुर्मास समिति' का गठन पृथक से हुआ। जिसके | बजे से रात्रि १० बजे तक, श्रद्धालुओं और भक्तों का जमाव संयोजक श्री राजकुमार अजमेरा, अध्यक्ष श्री प्रताप छाबड़ा, कम होता दिखाई नहीं देता। आत्मीय स्पर्श की एक महक मंत्री श्री भागचन्द लोहाड़िया और समन्वयक श्री सी.एम. | सम्पूर्ण वातावरण में विखरती हुई दिखाई दी। रात्रि को वैयावृत्ति पाटनी और स्वरूपचन्द सोगानी आदि ने सर्वसम्मति से | में ३ वर्ष के बालक से लेकर ७५ वर्ष के वृद्धजन चरणस्पर्श चातुर्मास की अवधि में मुनिश्री के सानिध्य में विविध धार्मिक | करते हुए देखे गये। प्रतिदिन की प्रात:कालीन प्रवचन में आयोजनों को सम्पन्न करने का निश्चय किया। और रविवारीय दोपहर के प्रवचन में जैन समाज के विगत चार वर्ष से नगर का प्राचीन श्री दिगम्बर जैन आवालवृद्ध और जैनेतर समाज के गणमान्य व्यक्तियों का पार्श्वनाथ मंदिरजी का शताब्दी समारोह इसी आशा से टाला अपार जनसमूह, मुनिश्री की लोकप्रियता का एक मीठा जा रहा था कि जैनसमाज हजारीबाग इस महोत्सव को पूज्य संस्मरण बन गया है। जीवन के नैतिक गुणों और मानवीय मुनिश्री के सान्निध्य में ही आयोजित करना चाहते थे, जो मूल्यों पर केन्द्रित आपके प्रवचन की वाग्धारा से कौन भींग आगामी अक्टूबर माह में सम्पन्न होने जा रहा है। इसी के नही जाता? संत का यही आकर्षण नगर में चर्चा का विषय साथ अन्य धार्मिक आयोजन- जैन युवा सम्मेलन, श्रावक बना हुआ है। अभी तो चातुर्मास का मंगलाचरण है। देखिए, संस्कार शिविर, श्री भक्तामर स्तोत्र अनुशीलन राष्ट्रीय आगे क्या-क्या होता है। और हजारीबाग को यहीं का लाड़ला " विद्वत्संगोष्ठी आदि आगामी माहों में सम्पन्न होने जा रहे हैं। सपूत र सपूत क्या-क्या सौगातें दे जाता है। जो चातुर्मास के आध्यात्मिक और धार्मिक तानेबाने को एक जवाहर बार्ड, बीना (म.प्र.) मूर्तरूप देंगे। 22 सितम्बर 2005 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524300
Book TitleJinabhashita 2005 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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