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समाचार
जन्मभूमि हजारीबाग में जैनसंत श्री प्रमाणसागर जी महाराज
प्राचार्य पं. निहालचन्द जैन
संत लाड़ले लाल को कहीं पथ के कंकड़ न चुभ जायें । शहर भर में लगे लाउडस्पीकरों से वंदन/ अभिनन्दन गीतों के स्वरों से पूरा आकाश क्षितिज गुंजायमान हो रहा था । हजारीबाग में रामनवमी का महोत्सव पूरे बिहार और झारखण्ड में अपने ढंग का एक विशिष्ट उत्सव होता है। लोगों को यह रोमांचित कर गया कि रामनवमी जैसा यह जलूस १२ फरवरी को सादृश्य हो रहा है। सारा शहर दुल्हन की भाँति सजा हुआ था। डेढ़ सौ स्वागत द्वार और उन पर झूमते तोरण
वंदनवार सभी समुदायों के अभूतपूर्व उमंग और उत्साह की झांकी प्रस्तुत कर रहे थे ।
चातुर्मास स्थापन पृष्ठभूमि :
'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी' इस सूत्र को साकार कर दिया हजारीबाग की माटी ने, जहाँ आज से ३७ वर्ष पूर्व एक बालक नवीन को जन्म दिया था, जननी सोहनीदेवी ने। आज जननी और जन्मभूमि दोनों बाग-बाग हैं, उस सपूत को संत के रूप में अपने गृहनगर में प्रवेश करते हुए। साधु-यानी जिसने अपने जीवन को साध लिया है। जिसने इन्द्रिय-विषय भोग के पथ से परे होकर योग और आत्म-साधना के पथ को स्वीकार कर, काम
की कामना और रसना के स्वाद को जीतकर
निर्ग्रन्थ साधु का स्वरूप आत्मसात कर लिया है। वह जैन संत हैं मुनि श्री १०८ प्रमाणसागर जी,
जो मध्यप्रदेश के सतना
से सिद्ध क्षेत्र श्री
सम्मेदशिखर मधुवन
की ओर अपनी अविराम पद यात्रा करते हुए १२ फरवरी २००५ को पदार्पण किया। वैराग्य पथ पर निकलने के ठीक २२ वर्ष पश्चात् यह सुयोग हजारीबाग को प्राप्त हुआ। माँ की ममता और जन्मभूमि के वात्सल्य ने तृषित नेत्रों से इस लाड़ले सपूत युवा तपस्वी का ऐसा अभिनन्दन किया कि झारखण्ड के लिए एक इतिहास बन गया।
स्वागत में पलक पावड़े बिछाये नगरवासी ४ कि.मी. लम्बे पथ पर कतारबद्ध खड़े जय जय घोष कर रहे थे। जैसे महात्मा बुद्ध पुनः शुद्धोधन के राजमहल की ओर प्रत्यावर्त्तन कर रहे हों। लगभग २० हजार के जनमानस ने नाच-नाच * कर इस नगर में उत्सव और उमंग का जो माहौल निर्मित कर दिया था, वह नजारा बस देखने लायक था । रातभर नगर के राजपथ को अग्रवाल युवा मंच के नवयुवकों ने स्वयं झाडू लगाकर इसे घर आंगन की तरह साफ कर दिया ताकि
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पूज्य मुनिश्री ने अपना प्रथम उद्बोधन और प्रवचन उसी शिक्षा संस्थाहिन्दू उच्च विद्यालय के प्रांगण में किया, जहाँ आपने लौकिक शिक्षा ग्रहण की थी। वह शिक्षा संस्थान भी
| आज अपने ऐसे सृजित संत सपूत को देखकर कितनी आत्म विव्हल हो रही है। दसहजार प्रबुद्ध श्रोताओं, शिक्षकों, सहपाठियों और बचपन के सैकड़ों मित्रों ने न केवल आपके मंगल प्रवचन का रसास्वादन लिया बल्कि यह गुहार भी की कि २००५ का अगला चातुर्मास गृहनगर हजारीबाग में ही हो। क्योंकि चार दिन के प्रवास से अन्तर्मन की प्यास कैसे तृप्त हो सकती थी । मुनिश्री यहाँ कम से कम चार माह का वर्षायोग स्थापन करें, बस यही नारा चारों ओर से उद्घोषित हो रहा था ।
श्रद्धा और आस्था की ताकत बहुत बड़ी होती है । चार दिन बाद तो मुनिश्री पावन सिद्धभूमि श्री सम्मेदाचल की ओर बढ़ गये। लेकिन हजारीबाग की जैन समाज और नगरवासियों की प्यास को वे द्विगुणित कर गये । मुनिश्री मधुवन- सम्मेदशिखर और राँची के प्रवास में निरन्तर लोगों
• सितम्बर 2005 जिनभाषित 21
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