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________________ जिज्ञासा-समाधान पं. रतनलाल बैनाड़ा प्रश्नकर्ता : सौ. संगीता जैन, नंदुरवार अर्थ : सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान इन दोनों में से एक का जिज्ञासा : अविरत सम्यग्दृष्टि मोक्षमार्गी है या नहीं? आत्मलाभ होते, उत्तर जो चारित्र है. वह भजनीय है । यदि है तो उसके चारित्र कौन-सा प्रकट हुआ कहलायेगा? | अर्थात सम्यग्दर्शन होने पर सम्यकचारित्र का होना अवश्यंभावी मिथ्याचारित्र भी उसके नहीं है । उसके सम्यकुचारित्र होता | न है या नहीं? आचार्य गुणभद्र ने उत्तरपुराण में भी कहा है : समाधान : तत्त्वार्थसूत्र के प्रारम्भ में आचार्य उमास्वामी समेतमेव सम्यक्त्वं, ज्ञानाभ्यां चारितं मतम् । महाराज ने यह सूत्र लिखा है-'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि स्यातां विनापि तेनेन, गुणस्थाने चतुर्थके ।। 74/543 मोक्षमार्गः।' अर्थ : सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र सम्यक्चारित्र तो सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान सहित होता की एकता ही मोक्षमार्ग है । इसकी टीका में आचार्य पूज्यपाद है, किन्तु चतुर्थ गुणस्थान में सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान, स्वामी ने लिखा है कि, 'सम्यग्दर्शनं सम्यग्ज्ञानं सम्यक्चारित्र- सम्यकचारित्र के बिना भी होते हैं। मित्येतत् त्रितयं समुदितं मोक्षस्य साक्षान्मार्गो वेदितव्यः।' उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट है कि अविरत सम्यग्दृष्टि के अर्थ- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये तीनों सम्यक्चारित्र नहीं होता और जब तक सम्यक्चारित्र नहीं है, मिलकर साक्षात् मोक्ष का मार्ग हैं, ऐसा जानना चाहिये । इस | तब तक मोक्षमार्गी भी नहीं है । जैसा कि प्रवचनसार गाथा आगम-प्रमाण के अनुसार अविरत सम्यग्दृष्टि मोक्षमार्गी नहीं 236 की टीका में अमृतचन्द्राचार्य ने कहा है, 'अत आगमज्ञान है । उसके कौन-सा चारित्र हुआ इस संबंध में गोम्मटसार तत्त्वार्थश्रद्धान संयतत्वानाम यौग पद्यस्य मोक्ष मार्गत्व जीवकाण्ड गाथा 12 में स्पष्ट कहा है कि 'चारित्तं णत्थि जदो विघटेतैव । अर्थ : इससे आगमज्ञान, तत्त्वार्थ श्रद्धान तथा अविरद अंतेसु ठाणेसु।' अर्थ : अविरत सम्यक्त्व गुणस्थान | संयतत्त्व के अयुगपतत्त्व वाले के मोक्षमार्ग घटित नहीं तक चारित्र नहीं होता है। मोक्षमार्ग प्रकाशक में पं. टोडरमल | होता । जी ने नवें अधिकार में स्पष्ट लिखा है कि, 'तारौं अनन्तानुबंधी मोक्षमार्ग प्रकाशक में पं. टोडरमलजी ने भी कहा के गये किछु कषायन की मन्दता तो हो है, परन्तु ऐसी मन्दता न हो है, जाकरि कोऊ चारित्र नाम पावै............. है : 'यहाँ प्रश्न-जो असंयत सम्यग्दृष्टि के तो चारित्र नाहीं वाकै मोक्षमार्ग भया है कि न भया है, ताका समाधानजहाँ ऐसा कषायनि का घटना होय, जाकरि श्रावक धर्म व मोक्षमार्ग याकै हो सी, यहु तो नियम भया । तारौं उपचार तें मुनिधर्म का अंगीकार होय तहाँ ही चारित्र नाम पावै है.... याकै मोक्षमार्ग भया भी कहिये। परमार्थ तैं सम्यकचारित्र मिथ्यात्वादि असंयत पर्यन्त गुणस्थाननि विषै असंयम नाम भये ही मोक्षमार्ग हो है...... तैसे असंयत सम्यग्दृष्टि के वीतराग पावै है।' भाव रूप मोक्षमार्ग का श्रद्धान भया, तातै बाको उपचारतें यदि चतुर्थगुणस्थान में चारित्र का अंश माना जाये, तो | मोक्षमार्गी कहिए, परमार्थ तें वीतराग भावरूप परिणमे ही वहाँ चारित्र की अपेक्षा क्षायोपशमिक भाव होना चाहिए । | मोक्षमार्ग हो सी।' परन्तु श्री षट्खंडागम में स्पष्ट कहा है-'असंजद सम्माइट्ठित्ति उपरोक्त प्रमाणों के अनुसार अविरत सम्यग्दृष्टि को को भावो उवसमिओ वा खइयो वा खओवसमिओ वा भावो॥ सम्यक्चारित्र हुआ नहीं कहा जा सकता । अत: वह मोक्षमार्गी 5॥ओदइएण भावेण पुणो असंजदो॥6॥' भी नहीं है। ___ अर्थ : असंयत सम्यग्दृष्टि के कौन-सा भाव है ? प्रश्नकर्ता : डॉ. ए. के. जैन सागर औपशमिक भाव भी है, क्षायिक भाव भी है और क्षायोपशमिक भाव भी है ॥ 5 ॥ असंयत सम्यग्दृष्टि का असंयत भाव जिज्ञासा : अलोकाकाश में काल द्रव्य नहीं होता, औदयिक है। 6॥ फिर वहाँ परिणमन होता है या नहीं? यह भी बतायें कि कालद्रव्य में, स्वयं में परिणमन कैसे होता है ? राजवार्तिक 1/1 में इस प्रकार कहा है,-'सम्यग्दर्शनस्य सम्यग्ज्ञानस्य वा अन्यतरस्यात्मलाभे चारित्रमुत्तरं। भजनीयं समाधान : उपरोक्त विषय पर वृहदद्रव्य संग्रह गाथा18 सितम्बर 2005 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524300
Book TitleJinabhashita 2005 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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