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पहचानते हैं, जो उन्होंने अपनी माँ के गर्भ में सुनी थी।
यह प्रायः देखा जाता है कि एक डॉक्टर की संतान डॉक्टर, संगीतज्ञ की संतान संगीतज्ञ, क्रिकेटर की संतान क्रिकेटर ही बनते हैं। इसका कारण यही है कि सन्तान • गर्भावस्था में ही अपने माँ-बाप द्वारा उनके ज्ञान व रुचियों से शिक्षा प्राप्त करती रहती है और समय आनेपर उनका गर्भावस्था में प्राप्त किया हुआ वही ज्ञान उसे उस विषय में कुशलता प्राप्त करने में सहायक हो जाता है। शास्त्रों में इसीको माँबाप से प्राप्त संस्कार कहा गया है।
जैनधर्म की स्पष्ट मान्यता है कि मनुष्य, पशु, पक्षी की पर्याय माता के पेट में गर्भाधान के साथ ही प्रारम्भ हो जाती है। आप और हम जितने समय में एक बार श्वास लेते हैं, उससे भी कम समय में वह भ्रूण एक बार श्वास लेता है। वह भी हम लोगों के समान भूख, निद्रा, भय आदि का संवेदन करता है। आज के वैज्ञानिक भी शोध करके इसी निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि गर्भपात के समय शिशु की चेष्टाओं में अनेक परिवर्तन दिखाई देने लगते हैं। उसके हृदय की धड़कन और श्वास की गति असामान्य रूप से बढ़ती है। वह एक असहाय प्राणी है । आज संसार में वात्सल्य और ममता की मूर्ति मानी जानेवाली माँ अपने बच्चों के प्राणों की प्यासी हो गई है। तब वह बालक किसकी शरण में जाकर रक्षा की कामना कर सकता है। अपनी विलासी वृत्ति पर अंकुश लगाने के बजाय आज नारी इतनी निर्दय, निर्मम और अविवेकी हो गयी है कि नारी जाति और मातृत्व को कलंकित करने में जरा भी नहीं हिचकती है। सुरक्षित गर्भपात जैसे विज्ञापनों से प्रेरित हुई महिलाओं के लिए गर्भपात कराना नाई की दुकान पर जाकर बाल काटने के समान सुगम और ब्युटी पार्लर में जाकर श्रृंगार कराने जैसा सस्ता शौक हो गया है। पशुओं को काटने वाले कत्लखानों के समान आज गर्भपात केन्द्र नगर-नगर, ग्राम-ग्राम, गली-गली में खुल चुके हैं। भारत में प्रतिवर्ष 80-90 लाख बच्चों की क्रूर हत्या इन कत्लखानों में की जाती है। बच्चों के शरीर के टुकड़ेटुकड़े कर गटरों में बहा दिया जाता है। 70-80 या 90 वर्ष तक जीने के योग्य जिस शरीर की रचना हुई है, उस शिशु की जीवनलीला दुनिया को देखने के पूर्व ही तीक्ष्ण औजारों के माध्यम से अथवा जहरीले क्षार के माध्यम से समाप्त कर दी जाती है । कसाई तो बकरे को एक झटके में मार डालता है । लेकिन इस गर्भपात प्रक्रिया में तो अनेक बार तीक्ष्ण * औजारों से उन कोमल अवयवों को काट-काट कर गिराया जाता है। वह कितना पैशाचिक कृत्य है ।
विदेश में " द साइलेंट स्क्रीम" ( गूंगी चीख का शान्त कोलाहल) नाम से एक फिल्म तैयार की गई है।
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उसमें बारह आदि सप्ताह का गर्भ गर्भपात के समय किस ढंग से रहता है, इसकी जानकारी करायी गई है। अमेरिका और यूरोप में इस फिल्म के दर्शकों ने एबोर्शन के कानूनों को बदलने के लिए जबरदस्त आंदोलन छेड़ा है। इस फिल्म में दिखाया है कि जब सक्शन पम्प भ्रूण के नजदीक आता है, तब बालक में प्रतिमिनट 140 बार होनेवाली हृदय की धड़कन बढ़कर 200 बार प्रति मिनिट हो जाती है। अपने जीवन रूपी दीपक के बुझाने के लिए आ रहे औजारों से बचने के लिए वह कुछ पीछे हट जाता है। परन्तु तत्काल ही उसका आवरण शस्त्रों से छिद्र बनाकर उसके बाहर निकलवाने की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। बालक के मस्तक और धड़ को झटके से अलग कर दिया जाता है। तब वह वेदना से चीख उठता है, यह है गूँगी चीख । फिर फोरसेप मे दबाकर कठिन खोपड़ी को तोड़कर चूर-चूर कर दिया जाता है । अत: अब मानवों को जानना चाहिए और अपने में से इन दानवीय वृत्तियों का त्याग करना चाहिए। भारत की नारी के लिए अपनी सन्तान को गर्भाशय से दूध की मक्खी के समान निकाल फेंकना निन्दनीय और अमानवीय कार्य है। अपने हाथ से अपनी सन्तान का गला घोटनेवाली वह माँ नहीं वह राक्षसी है। यदि हमें राक्षसी माँ नहीं बनना है तो इस निन्दनीय कार्य को शीघ्र से शीघ्र संकल्प लेकर त्याग कर देना चाहिए। तथा अपने सम्पर्क में आनेवाली अन्य महिलाओं को भी उस कुकृत्य से बचने का मार्ग दिखाना चाहिए ।
हम कभी विचार नहीं करते कि गर्भस्थ शिशु के भी मन होता है। हम जैसे विकसित प्राणी हमारे भोगों के लिए हमारे ही बच्चे को मारने जैसा क्रूर कर्म करके नरक-निगोद की यात्रा करते हुए सुअर, कुतिया, बिल्ली आदि जैसी नीच योनि को प्राप्त करते हैं । परन्तु वह गर्भस्थ शिशु जो अभी कुछ घण्टों का है, सानत्कुमार, माहेन्द्र स्वर्ग की आयु को बांध सकता है। जो कुछ दिनों का है, वह मरकर पाँचवे, छठे, सातवे, आठवे स्वर्ग में जा सकता है। जो तीन मास से लेकर सात आठ मास का है। वह नववें, दसवें, ग्यारहवें व बारहवें स्वर्ग में जा सकता है। अर्थात् बारह स्वर्ग तक के देवों की आयु बंध के परिणाम उसमें हो सकते हैं और मरकर आयुबंध के अनुसार उन स्वर्गों में भी जा सकता है। उसे निर्जीव मानना कहाँ तक सत्य है? जब अविकसित अवस्था में भी वह देवायु के बंध योग्य परिणाम कर सकता है, विकसित अवस्था में (जन्म के बाद) क्या धर्मादि पुरुषार्थ करने में समर्थ नहीं होगा ?
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• सितम्बर 2005 जिनभाषित 15
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