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की दुरवस्था का उल्लेखकर, समाज का ध्यान उसकी सुरक्षा | हॉल का संकल्प स्थिर किया। और संकल्प की पूर्ति-पर्यन्त व्यवस्था की ओर आकर्षित किया है। पूज्य वर्णी जी महाराज | | घी एवं शक्कर का आजीवन त्याग कर, रूक्ष भोजन को से प्रभावित बाबा कल्याणदास जी ने बहोरीबंद के शांतिनाथ | अंगीकार किया। छत्तीस वर्षों से भी अधिक समय तक वे भगवान् की अनवरत आराधना हेतु जो संकल्प-यात्रा 1951 | अपने संयम-साधना से स्व-हित साधन करते हुए श्रीक्षेत्र से प्रारंभ की। 1955 में स्वेच्छा से ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने | को श्री समृद्ध करते रहे। के साथ ही, सुदृढ़ इच्छाशक्ति, समर्पण, सहिष्णु, त्याग, संकल्प
बहोरीबन्द के भ. शान्तिनाथ के प्रति ब्र.जी का इतना और अभिनव परिकल्पनाओं के पाथेय को अपनी झोली में
अधिक समर्पण रहा है हम उन्हें 'बहोरीबन्द का यक्ष' कहना सहेजकर वे पूरे जीवन पूरे देश में घूमे। ब्रह्मचर्य प्रतिमाधारी
युक्तिसंगत मानते हैं। भारतीय वाङ्मय में 'यक्ष' संस्कृति यह श्रावक सफेद चादर धारणकर, आजीवन नमक का
और 'यक्ष' शब्द का विश्लेषण अनेकशः हुआ है। बहोरीबन्द परित्याग कर, अपने साध्य की संसिद्धि में जुटा रहा। उनका
की आधुनिक विकास यात्रा का शुभारम्भ साठ के दशक के एकमात्र साध्य था- बहोरीबंद में जन-जन के अधिनायक
मध्य में ही होता है। उसे प्रारम्भ करने, गति प्रदान करने, भगवान् शान्तिनाथ के भव्य-अतिभव्य मंदिर का वैसा ही
सुरक्षित और संरक्षित आयाम प्रदान करने, तथा निर्धारित निर्माण जैसा कि मूर्ति के पादपीठ में उत्कीर्ण अभिलेख की
लक्ष्य/गन्तव्य की ऊँचाईयों तक अग्रसर रखने का सर्वाधिक 4-5 वीं छठी पंक्ति में उत्कीर्ण है :
श्रेय यदि किसी को दिया जा सकता है तो वह हैं- श्रद्धेय ब्र. तेनेदं कारितं रम्यं सा (शा)न्तिनाथस्य मंदिरं (रम्)
कल्याणदास जी। वस्तुत: उन्हीं के अहर्निश संयम, साधना, वि(ता)नंच महास्वे(श्वे)तं निर्मितमति सुन्दरं ( रम्)
त्याग, विनय की पृष्ठभूमि पर बहोरीबन्द का सुदर्शन वर्तमान नमक त्याग और रूक्ष भोजन के साथ ज्यों-ज्यों साधन | अधिष्ठित है। एक प्रसिद्ध सक्ति है, 'योजकस्तत्र दर्लभः' - जुटे, भूमिक्रय की जाती रही। पहले भगवान् का खपरैल | योजनाओं के क्रियान्वयक/सत्रधार दुर्लभ हआ करते हैं। मंदिर बना। यात्रियों की आवास सुविधा हेतु रीठी निवासी | यदि समर्पित व्यक्तित्व योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु प्राप्त स.सि. लम्पलाल जी ने धर्मशाला का श्री गणेश एक मकान | हो जायें तो उनमें सफलता सनिश्चित होती है। बहोरीबन्द क्षेत्र को प्रदान करके किया।
को बाबा कल्याणदास जी के रूप में एक योजक अबसे कच्चे मकानों को और क्रय करके भूमि का विस्तार, | लगभग 50 वर्ष पूर्व मिला। वे न केवल योजक रहे प्रत्युत क्षेत्र का प्रचार-प्रसार, उठते-बैठते, सोते-जागते, ब्रह्मचारी उन्होंने बहोरीबन्द के श्रीक्षेत्र और सोलहवें जैन तीर्थंकर जी की हर श्वास में बहोरीबंद के शान्तिनाथ बसे रहते हैं। भगवान् शान्तिनाथ को अतीत के अनुरूप गौरवशाली वर्तमान छोटा सा यात्री संघ आने की भी यदि सूचना मिली, तो | के अधिष्ठान के सृजन और संरक्षण हेतु ‘यक्ष' के दायित्वों ब्रह्मचारी कल्याणदास जी वहाँ पूर्वतः उपस्थिति होते । और | का सफलतापूर्वक निष्पादन किया है। श्रद्धेय ब्रह्मचारी जी क्षेत्र के प्रकल्प से सभी को परिचित कराते। प्रतिवर्ष पर्वराज | जैसे यक्ष-व्यक्तित्व और उनके सुयोग्य कर्मठ साथियोंपर्युषण में क्षेत्र की समृद्धि हेतु सुदूर प्रान्तों के प्रवास भी उन्हें | सहयोगियों के नि:स्पृह समर्पित योगदान से ही श्रीक्षेत्र की सकर थे। प्राप्त राशि के समीचीन विनिमय का ध्यान सदैव | प्रभावना एवं सांस्कृतिक गुणों का प्रख्यापन होता है। रखते। इस कार्य में वे सदैव क्षेत्र समिति को परामर्श प्रदान
यहाँ बाबाजी को सम्बोधित ‘यक्ष' शब्द की निष्पत्ति करते तथा उनसे परामर्श प्राप्त करते। इस दृष्टि से आ.ब्र.जी
और निहितार्थ ध्यातव्य है। संस्कृत की 'यक्ष धातु' से कर्म ने सर्वश्री जयकुमार जी वकील सा. सिहोरा, धन्यकुमार जी |
में द्या प्रत्यय करने पर भी यक्ष शब्द निष्पन्न होता है। (पूर्व विधायक) सिहोरा, सिंघई रूपचन्द्र जी नेताजी बाकल,
इसका विग्रह है - 'यक्ष्यते' इति यक्ष:। 'यक्ष' शब्द एक पं. मोहनलाल जी शास्त्री जबलपुर , पं. जगन्मोहनलाल जी
देव-योनि विशेष का वाचक है, जो धन-सम्पत्ति के देवता कटनी, स.सि. धन्यकुमार जी एवं सि. धन्यकुमार सांधेलीय
कुवेर के सेवक हैं तथा उसके कोष और उद्यानों की रक्षा कटनी आदि अनेकानेक गणमान्य महानुभावों से भी निरन्तर
करते हैं। सद्भावना पूर्ण मार्गदर्शन प्राप्त किया है।
बाबा कल्याणदास जी के लिए 'बहोरीबन्द का यक्ष' भगवान् शान्तिनाथ के भव्य मन्दिर की परिकल्पना साकार होते देख ब्र.जी ने क्षेत्र पर धर्मशाला और प्रवचन
सम्बोधन/विशेषण ध्वन्यर्थक है। यतः उन्होंने बहोरीबन्द के
12 सितम्बर 2005 जिनभाषित
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