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________________ को यह भी सूचना दी कि छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, , नहीं। इस प्रकार केन्द्र सरकार के लिये यह आवश्यक ही उत्तरांचल राज्यों में जैनों को धार्मिक अल्पसंख्यक समाज | नहीं अपितु बाध्यकारी था कि वह अपने निर्णय से न्यायालय का दर्जा दिया जा चुका है। शपथ पत्र में इस तथ्य को | को सूचित करे । केन्द्र सरकार को निर्देशन के औचित्य पर छिपाया गया कि मध्य प्रदेश राज्य, झारखण्ड व राजस्थान | टीका टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं था। सर्वोच्च की सरकारें भी जैनों को अल्पसंख्यक वर्ग का दर्जा दे चुकी | न्यायालय के निर्देशन की पालना करना केन्द्र सरकार का हैं तथा दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई, मद्रास के हाईकोर्ट भी | कर्तव्य है और न मानना न्यायालय की अवमानना है। यह जैनों को अल्पसंख्यक मान चुके हैं। केस इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना टी.एम.ए. पाई फाउण्डेशन के केस में सर्वोच्च | का है। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि जम्मू कश्मीर में मुस्लिम | पृथ्वीनाथ राम बनाम स्टेट ऑफ झारखंड व अन्य बहुमत में हैं, इसलिये हिन्दू अल्पसंख्यक है तथा पूर्वी राज्यों | के केस में जिसका निर्णय दिनांक 13-08-2004 को माननीय में ईसाई समुदाय बहुमत में हैं, इसलिये हिन्दू अल्पसंख्यक | सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है, यह करार दिया है कि पक्षकार हैं। पंजाब में सिख समुदाय अल्पसंख्यक में न होकर हिन्दू | का कर्तव्य है कि वह न्यायालय के निर्देशनों की पालना अल्पसंख्यक है। यदि टी.एम.पाई फाउण्डेशन के केस के | करे, उसके औचित्य अथवा गुण-दोष पर विचार करने का सिद्धांतों की समीक्षा की जावे तो केवल जैन समुदाय ही | उसको कोई अधिकार नहीं है। कानून की सलाह पर निर्देशनों प्रत्येक राज्य, प्रत्येक डिस्ट्रिक्स में अल्पसंख्यक पाये जावेंगे। | के औचित्य पर विचार नहीं किया जा सकता। निर्देशन की दिल्ली राज्य केन्द्र शासित है वहां की सरकार यह मानती है | पालना न करना न्यायालय की अवमानना है इस निर्णय में कि केन्द्र को ही जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देना न्यायालय ने के.जी. देराशरी बनाम यू. ऑफ इंडिया 2001 होगा। टी.एम.ए.पाई के केस में यह कहीं उल्लेख नहीं है | (10) एस.सी.सी. 496 व टी आर धन्नजय बनाम वसुदेवा कि केन्द्र सरकार को अल्पसंख्यकता के सम्बन्ध में निर्णय | 1995 (5) ए.सी.सी. 619 का आधार मान लिया है। लेने का अधिकार नहीं है। यदि केन्द्र सरकार यह मानती है | इस प्रकार हम उपरोक्त निर्णयों के संदर्भ में केस कि केन्द्र को अल्पसंख्यकता के सम्बन्ध में निर्णय लेने का | की विवेचना करें तो एक ही निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि भारत अधिकार नहीं है तो अब तक जिन-जिन धार्मिक समुदायों सरकार को सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशन अनुसार अपना को अल्पसंख्यक वर्ग का दर्जा दिया गया है वह अमान्य व | निर्णय देना बाध्यकारी था और ऐसा न कर भारत सरकार ने अधिकार शून्य है। विज्ञप्ति दिनांक 23-10-1993 प्रभाव | न्यायालय की अवमानना की है। शपथकर्ता श्री स्वपराय शून्य है, जिसके द्वारा मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी को | संयुक्त सचिव व मंत्रीगण केन्टेम्पट ऑफ कोर्ट के जुर्म के धार्मिक अल्पसंख्यक माना गया है। इन धर्मों के साथ जैन | दोषी हैं उनके विरुद्ध कार्यवाही कर सजा दिलाने के लिये धर्म भी एक स्वतंत्र धर्म है, इसलिए उसे अल्पसंख्यक न | उचित कदम उठाने चाहिये, ताकि भारत सरकार के मंत्रीगण मानना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का अतिरेक है. व अधिकारी सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशनों को पालना न उल्लंघन है। करने का दुःसाहस न कर सकें। और न्यायालय की गरिमा वस्तुतः प्रस्तुत केस में इन विषयों पर विचार करने की प्रतिष्ठा अक्षुण्य रहे और यह धारणा बलवती हो उठे की आवश्यकता ही नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने | कि- By You ever high the law is above you आदेश दिनांक 29-08-2004 में यह निर्देशन दिया था कि | अर्थात् कानून के ऊपर कोई नहीं है। केन्द्र सरकार 4 माह में अपने निर्णय से न्यायालय को 23, मौजी कॉलोनी, सूचित करेगी कि क्या जैन समुदाय अल्पसंख्यक है या मालवीय नगर, जयपुर ___आचार्य विद्यासागर जी के सुभाषित समता का अर्थ पक्षपात नहीं है किन्तु यह तो माध्यस्थ भावों की एक ऐसी भूमिका है जहाँ पर न वाद है न विवाद। साधक के लिये अन्य सभी शरण तात्कालिक हो सकती हैं पर उसे समता ही एक मात्र शाश्वत शरण है। जरा-जरा सी बातों में क्षुब्ध होना ज्ञानी की प्रौढ़ता नहीं है, ज्ञानी की प्रौढ़ता की झलक समता में है। • समता भाव ही श्रामण्य है उसी में श्रमण की शोभा है। 'सागर बूंद समाय' 26 मई 2005 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524296
Book TitleJinabhashita 2005 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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