SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कानून के ऊपर कोई नहीं जस्टिस पानाचंद जैन (रि.) "सुप्रीम का फैसला, जैनों को धार्मिक अल्पसंख्यक | पाटिल ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की जो अपील नं. 30/99 का दर्जा राज्य सरकारें करेंगी" शीर्षक से एक समाचार | | है। इधर टी. एम. ए. पाई. के केस को सुप्रीम कोर्ट की वृहत प्रकाशित हुआ। शीर्षक के नीचे जो समाचार प्रकाशित हुआ | पीठ ने दिनांक 31. 10. 2002 को निर्णय दे दिया, किन्तु उसका, अर्थ था कि अब जैन समाज को धार्मिक अल्पसंख्यक | उस केस में श्री बाल पाटिल द्वारा उठाये गये प्रश्रों का न तो दर्जा प्राप्त करने के लिये अपने अपने प्रदेशों की सरकार पर | उल्लेख था और न विवेचना ही। सप्रीम कोर्ट ने श्री पाटिल दबाव बनाना पडेगा। इस खबर से कई भ्रांतियां पैदा हो गई। की अपील पर दिनांक 29. 07. 2004 को एक आदेश दिया दिनांक 25 नवम्बर 2004 को हिन्दुस्तान टाइम्स व | था कि चूंकि अल्पसंख्यक नेशनल कमीशन की सिफारिश हिन्दी के समाचार पत्रों में यह समाचार प्रकाशित किया गया। | जब 10 वर्ष से लम्बित है तो भारत सरकार का कर्तव्य है है कि केन्द्र सरकार की केबिनेट कमेटी (राजनैतिक मामलों) |कि वह इस सम्बन्ध में निर्णय ले कि क्या जैन समाज को ने जिसकी अध्यक्षता माननीय प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह | धारा 2 (सी) के अन्तर्गत जारी विज्ञप्ति में शामिल किया ने की थी, जिसमें रक्षा मंत्री माननीय श्री प्रणव मुखर्जी और | जाना चाहिए, और अपना निर्णय 4 माह की अवधि में कोर्ट कानून मंत्री माननीय श्री हंसराज भारद्वाज उपस्थित थे, ने | के समक्ष प्रस्तुत करें। यह निर्णय लिया है कि जैन समाज को अल्पसंख्यक घोषित | भारत सरकार ने ऐसा प्रतीत होता है विषय की करने का अधिकार केन्द्र को न होकर राज्य सरकार को है | गरिमा पर, केस के समस्त पहलुओं पर विचार किये बिना और ऐसा निर्णय लेने के लिए केन्द्र सरकार ने टी.एम.ए.पाई | ही जल्दबाजी में निर्णय ले लिया, और अपना निर्णय शपथ के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का आधार लिया है। केन्द्र सरकार | पत्र के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया। ने यह निर्णय क्यों कर लिया इस स्थिति की विवेचना पर शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया श्री स्वप्नराय ने, जो केन्द्र यदि प्रकाश डालें तो ज्ञात होगा कि बाल पाटिल (वर्तमान में सरकार के मिनिष्ट्री ऑफ सोशियल जस्टिस व एम्पावरमेण्ट महाराष्ट्र स्टेट माइनोरिटी कमीशन के सदस्य हैं) ने सन् | में संयुक्त सचिव हैं। शपथ पत्र में श्री स्वप्नराय ने निम्नलिखित 1997 में एक रिट याचिका (5009/97) बम्बई उच्च न्यायलय | | घोषणा की है। में प्रस्तुत की थी कि भारत सरकार को निर्देशन दिया जावे "सर्वोच्च न्यायालय ने टी.एम.ए. फाउण्डेशन के कि नेशनल कमिशन फॉर माइनोरिटीज की दिनांक 03.10. | केस में जो निर्णय दिया है. उसके अनसार राज्य को 94 की सिफारिश के अनुसार जैन समाज को धारा 2 (सी) | अल्पसंख्यक वर्ग के निर्धारण के हेतु इकाई माना गया है। नेशनल माइनोरिटी कमीशन एक्ट, 1992 के तहत दिनांक | अतएव राज्य सरकारें ही यह निर्णय लेगी कि जैन समुदाय 03. 10. 94 की विज्ञप्ति में अन्य अहिन्दु स्वतंत्र धार्मिक | को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जावे या नहीं और इसके समूह के साथ जैनों को भी शामिल किया जावे। बम्बई उच्च | लिये वह राज्य की परिस्थितियों को ध्यान में रखेगी।" न्यायालय ने अपने दिनांक 20. 10. 97 के आदेश में यह ___टी.एम.ए. पाई फाउण्डेशन का केस जो 2002 (8) निर्देशन दिया कि सरकार ने न्यायालय के निर्णय की अवज्ञा | एस.सी.सी. 481 में प्रकाशित हुआ है सर्वोच्च न्यायालय ने करते हुये कोई निर्णय ही नहीं लिया इस कारण श्री बाल | यह निर्णय लिया था कि धार्मिक व भाषाई माइनोरिटीज पाटिल को पुनः एक नई रिट याचिका संख्या 4066/98 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 में उल्लेखित प्रस्तुत करनी पड़ी। सरकार ने इस याचिका का उत्तर यह | "अल्पसंख्यक वर्ग" में आती है। चूकि राज्यों का पुनर्गठन कहकर दिया कि इस सम्बन्ध में टी. एम. ए. पाई. के | देश में भाषायी आधार पर हुआ है इसलिये अल्पसंख्यक के फाउण्डेशन द्वारा एक याचिका में यही प्रश्र सुप्रीम कोर्ट की | वर्गीकरण हेतु भी राज्य को ही एक इकाई माना जाना चाहिये। वृहत पीठ के समक्ष विचाराधीन है। फलस्वरूप बम्बई | इस प्रकार संविधान के अनुच्छेद 30 के अन्तर्गत भाषा व न्यायालय ने रिट याचिका पर सुनवाई कर निर्णय देना उचित | धर्म के नाम पर अल्पसंख्यक वर्ग के दर्जे का निर्णय राज्य न समझ कर याचिका का निस्तारण कर दिया। किन्तु विचार | के स्तर पर होगा न कि पूरे देश के स्तर पर। बिन्दुओं को जीवित रखा। इस आदेश के विरुद्ध श्री बाल | शपथ पत्र में संयुक्त सचिव ने सर्वोच्च न्यायालय -मई 2005 जिनभाषित 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524296
Book TitleJinabhashita 2005 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy