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समाचार
गोम्मटेश्वर महामस्तिकाभिषेक के लिए निवेदन : श्री फल समर्पित
मार्ग पर चल पड़े हैं, अब भट्टारकों को भी वीतरागता का मार्ग ग्रहण कर लेना चाहिए।
बहोरीबंद,
बाहुबली के चरणों में नत हो बारंबार, विद्यासागर कब बनूँ भवसागर कर पार ।
बाहुबली भगवान का 21 वी शताब्दी में प्रथम मस्तकाभिषेक मनाया जा रहा है। हमारा चातुर्मास थूबौन जी हुआ था। मौजमाबाद (राजस्थान) के क्षुल्लक जी ने भावना रखी थी, उसी को ध्यान में रखकर "गोम्मटेशथुदि" बनाई थी। बाहुबली की प्रतिमा की विश्व में कोई मिसाल नहीं है। हजारों वर्षों से आत्मस्वरूप को बिना कुछ बोले बतला रही है। जो दर्शन करने आता है उसे उसी की भाषा में उपदेश प्राप्त होता है। अगले साल इसका आयोजन रखा गया है। निवेदन की कोई बात नहीं है। बाहुबली तो बाहुबली हैं, उनके चरणों में जो यात्री आते-जाते रहते है उन्ही से वहां वीतरागता की रक्षा होती है। जब तक वीतरागता का आलंबन नहीं लोगे तब तक संसार में पार नहीं हो सकोगे । बाहुबली के दर्शन मात्र से वीतरागता का बोध होता है इसी मर्म के माध्यम से भट्टारक चारुकीर्ति को हमारी तरफ से आशीर्वाद पहुँचा देना । उक्त आशय के उद्गार संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अतिशय क्षेत्र बहोरीबंद (कटनी) (म.प्र.) में गोमटेश्वर भगवान श्री बाहुबली स्वामी मस्तकाभिषेक महोत्सव समिति 2006 द्वारा महामस्तकाभिषेक में ससंघ पधारने के लिए, श्रीफल समर्पित करनेवाले पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं को शुभाशीष प्रदान करते हुए कहे।
आचार्य श्री ने कहा "एक समय था जब भट्टारक बाहुबली के समान चर्या निभाते थे और सभी को वीतरागता का पाठ पढ़ाते थे। अब वह कपड़ों में आवृत हो गए हैं। वे कम से कम पूर्व स्थिति में आ जाते। अब वे वस्त्र में हैं, उन्हें अब वीतरागता में आ जाना चाहिए। सेठी जी आप उन्हें मेरी तरफ से कह देना । दक्षिण में भट्टारकों के बिना कुछ भी सम्भव नहीं होने की जो बात है, वह ठीक नहीं है । क्योंकि वस्त्रधारी से प्रभावना कैसी होगी निर्मल सेठी जी से यह बात प्रमुखता से कहना है। वीतरागता के मार्ग में विचलित न होवें । वह एक युग था जब उन्हें वस्त्र धारण करना पड़े। अब इस युग में संघ में एक ऐसी टोली बन गई है, जिसमें इंजीनियर, सी. ए., फार्मेसी, डाक्टर, विदेश सेवा में रत तथा उच्च शिक्षा में रत, उच्चशिक्षित वर्ग तत्त्वज्ञानी वीतरागता के
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भट्टारक चारुकीर्ति के कार्यकाल में यह तीसरा कार्यक्रम है। वे दिगम्बर बनें तो बाहुबली भी संतुष्ट हो जावेंगे। कल दौड़कर / चलकर नहीं आता, हम चलते हैं, तब वह आ जाता है । "
आचार्यश्री ने कहा, "पिच्छी-कमंडलु हमारा मूलदर्शन है उन्हीं के माध्यम से प्रभावना होती है। बाहुबली की रक्षा आप सभी करेंगे। सभी जन समृद्धिशाली होकर करें। हमारे बाहुबली की रक्षा के लिए अधिक अर्थ की आवश्यकता नहीं है । आप करोड़ों रुपया शादी में खर्च करते हैं, उसका चौथाई भी वहाँ पहुँचे, तो काम हो जावेगा। आप भी अपना कर्तव्य करें, जिससे भट्टारक पूर्व (वीतराग) रूप में आ जावें । पिच्छी न रखें, क्योंकि यह संयम की रक्षा का उपकरण है। पिच्छीधारी आर्षमार्ग में पैसों की रक्षा न करें।"
नरेश कुमार सेठी, अध्यक्ष भा.दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी एवं गोम्मटेश्वर भगवान् बाहुबली स्वामी महामस्तिकाभिषेक महोत्सव समिति 2006 ने आचार्य श्री को समारोह समिति के प्रतिनिधि मंडल के साथ श्रीफल समर्पित करते हुये अपने निवेदन में कहा कि, " 21वीं सदी का यह प्रथम महामस्तकाभिषेक है । आप अपने महासंघ के साथ समारोह में पधारें, यही हमारा निवेदन/प्रार्थना है। श्रवलबेलगोला का यह आयोजन समूचे विश्व के लिये एक ऐतिहासिक समारोह होगा। जन-जन की आस्था गोम्मटेश्वर से जुड़ी है और हमारी आस्था आपमें है। आपका सान्निध्य मिल जाने से समारोह अद्वितीय हो जायेगा। आपकी उपस्थिति का लाभ श्रमणसंघों को भी मिलेगा, जिसके फलस्वरूप हमारी अनेक समस्याओं का समाधान स्वतः हो जायेगा।"
प्रतिनिधि मंडल में निर्मलकुमार सेठी स्वागताध्यक्ष गोमटेश्वर समारोह एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष भा.दि. जैन महासभा, प्रा. डी. ए. पाटिल उपाध्यक्ष महोत्सव समिति, डी. आर. शाह संयोजक कलश आवंटन समिति, मदनलाल बैनाड़ा उपाध्यक्ष भा. दि. जैन महासभा, श्रीपाल गंगवाल अध्यक्ष त्यागी सेवा समिति, राजेश पहाड़े संयोजक त्यागी सेवा समिति, रतनलाल नरपत्या अध्यक्ष भा.दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी राजस्थान प्रांत, अभिनंदन सांधेलीय मंत्री भा.दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी । मध्यांचल, बाबूलाल पहाड़े हैदराबाद सम्मिलित थे ।
'अप्रैल 2005 जिनभाषित 29
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