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________________ तीर्थक्षेत्रों को शांतिमयी एवं पवित्र बनायें : आचार्य श्री विद्यासागर जी पाटन, तीर्थक्षेत्रों पर अच्छी व्यवस्थायें होना चाहिये । इसके लिए समय-समय पर गतिविधियां होते रहना भी जरूरी हैं, परन्तु यह ध्यान रहे कि तीर्थक्षेत्र शांतिमयी एवं पवित्र बने रहें। तीर्थक्षेत्र हमारी आस्था और संस्कृति के प्रतीक हैं। तीर्थक्षेत्रों के प्रबंधक तीर्थक्षेत्रों को सैर-सपाटे के स्थान न बनायें । क्षेत्रों पर वस्तु का ध्यान नहीं दिया जा रहा है। कार्य होना चाहिये 10 के स्थान पर 100 रुपया भी खर्च हो जाये, तो कोई बात नहीं । 1000 वर्ष तक तीर्थक्षेत्र सुरक्षित रहें, हमारी शक्ति इस ओर लगे। सभी कार्य सुनियोजित हों, विज्ञान- वास्तु और आधुनिकता का भी समावेश करें। उक्त आशय के उद्गार संतशिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र बहोरीबंद में भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी मुंबई के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश कुमार सेठी से तीर्थ क्षेत्रों के विकास के लिए आवश्यक मार्गदर्शन माँगे जाने पर व्यक्त किये। भा. दि. जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष नरेश कुमार सेठी ने तीर्थराज सम्मेदशिखरजी, गिरनारजी पर चल रहे मुकदमों के साथ जैन समाज को अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त हो, के संबंध में तीर्थक्षेत्र कमेटी द्वारा किये जा रहे प्रयासों की जानकारी देते हुए आचार्यश्री से इस संबंध में मार्गदर्शन मांगा। आचार्य श्री ने सम्मेदशिखर जी पर चल रहे श्वेतांबर समाज के मुकदमों के संदर्भ में यही मार्गदर्शन दिया कि पूरी तैयारी के साथ अपना पक्ष कोर्ट में रखें। शिखरजी हमारे आस्था का केन्द्र है। शिखरजी में आज जो हो रहा है वह चिंतनीय है। शिखरजी की रक्षा करना बहुत जरूरी है। सम्मेद शिखर जी में पर्वत पर ठहरने और भोजन की सुविधा अच्छी बात नहीं है। वहां की पवित्रता बनी रहे। वहाँ (पर्वत पर) कोई भी न रहे, न ही खानपान की व्यवस्था हो। यात्त्रियों की सुरक्षा के लिए आवश्यक प्रबंध जायें । जैन समाज के लोग अधिक से अधिक गिरनारजी के यात्रा पर जायें। वहाँ जैन समाज को बसायें तथा उनकी अजीविका का भी प्रबंध करें। वर्ष 2006 में गोमटेश्वर बाहुबलि भगवान् का श्रवणबेलगोला में 12 वर्ष बाद आयोजित महामस्तिकाभिषेक में ससंघ पधारें, के निवेदन किये जाने के उत्तर में आचार्य श्री ने कहा कि संघ में नवदीक्षित मुनियों के अध्ययन-अध्यापन का कार्य चल रहा है । गोमटेश्वर बाहुबलि का महामस्तिकाभिषेक अच्छे से करें । श्रवणबेलगोला दूर है, इतनी दूर की यात्रा के 30 अप्रैल 2005 जिनभाषित Jain Education International दौरान अध्ययन और संघस्थ साधुओं का अध्यापन सहज संभव नहीं । श्रवणबेलगोला के भट्टारक चारुकीर्ति जी को शुभाशीष देते हुए आचार्यश्री ने कहा कि भट्टारकों का स्वरूप निश्चित हो । वीतरागविज्ञान पैसों से नहीं चलता। आर्ष मार्ग में अर्थ का क्या काम ? इस अवसर पर अभिनंदन सांधेलीय, पत्रकार-मंत्रीभा. द. जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी मध्यांचल एवं संतोष सिंघई अध्यक्ष दि. सिद्धक्षेत्र कुंडलपुर भी उपस्थित थे । निर्मलकुमार सेठी राष्ट्रीय अध्यक्ष भा.दि. जैन महासभा लखनऊ द्वारा रखे गये प्रश्न के उत्तर में आचार्य श्री ने कहा "जिन्हें आर्ष मार्ग में शंका है वे आयें मैं तत्त्वज्ञान के माध्यम से 5 मिनिट में समाधान कर दूंगा। नेता स्वीकार करें, आप स्वीकार करें जनता अपने आप मानेगी, मीडिया का सहारा नहीं लेता हूँ ।" अभिनन्दन साँधेलीय, पाटन (जबलपुर) तीर्थक्षेत्र कमेटी एवं महासभा के अध्यक्ष कुंडलपुर में पाटन, जन-जन की आस्था का केंद्र, बड़ेबाबा का दरबार कुंडलपुर (दमोह) तीर्थ पर भारतवर्षीय दिगंबर जैन महासभा के अध्यक्ष निर्मलकुमार सेठी, मुनिभक्त बाबूलाल पहाड़े हैदराबाद, डी. आर. शाह अध्यक्ष कर्नाटक प्रांत जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी, रतनलाल नरपत्या अध्यक्ष राजस्थान प्रांत जैन तीर्थक्षे कमेटी, अभिनंदन सांधेलीय पत्रकार मंत्री भा. दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी मध्यांचल, श्रीपाल गंगवाल औरंगाबाद, राजेश पहाड़े हैदराबाद ने पहुँचकर बड़बाबा के दर्शन कर अभिषेक कर पूजन अर्चन किया। तत्पश्चात् कुंडलपुर क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष संतोष सिंघई एवं प्रबंधक सी. के. जैन ने निर्माणाधीन बड़े बाबा के भव्य जिनालय स्थल का निरीक्षण कराते हुए निर्माण कार्य की विस्तृत जानकारी दी। बड़ेबाबा के निर्माणाधीन जिनालय की रूपरेखा तथा व्यवस्थित निर्माणकार्य की सभी ने सराहना की । कुंडलपुर दर्शन / वंदन कर सभी जन बहोरीबंद तीर्थ पहुंचे जहाँ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के दर्शन किये तथा उनका मार्गदर्शन प्राप्त कर सभी ने संघस्थ मुनिराजों के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। तत्पश्चात् सभी तीर्थसेवक समीपस्थ पुष्पावती नगरी के जो कटनी जिला में बिलहरी ग्राम के नाम से जाना जाता मंदिर का अवलोकन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524295
Book TitleJinabhashita 2005 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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