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________________ बदतर है। आज परिवार की घुटन को अहिंसक हवा का | होते हैं चार दिन भी। आओ, हम एक स्वर हो कहें किझोंका ही शान्ति दे सकता है। हैदर शेराजी ने यही आह्वान लिखना सीखो, पढ़ना सीखो, सदाचार से जीना सीखो। किया है आत्मोन्नति के पावन पथ पर, हरदम आगे बढ़ना सीखो। बंद कमरे की घुटन जान भी ले सकती है। भारत का सन्देश तुम्हें है, हिंसा करना मत सीखो। खिड़कियां खोलके बाहर की हवा ली जाये। जन्म लिया जिस देश में तुमने, उस देश की रक्षा करना सीखो। भगवान महावीर का अहिंसा संदेश सदा पथप्रदर्शक सन्दर्भ रहा है और रहेगा वे कहते हैं कि 1. डॉक्टर वेणीप्रसाद : हिन्दुस्तान की पुरानी सभ्यता, पृ.613 जं इच्छसि अप्पणतो जं च ण इच्छसि अप्पणतो। 2. महर्षि व्यास : महाभारत अनुशासन पर्व 3. आचार्य समन्तभद्र : वृहत्स्वयम्भू स्रोत्र, 119 तं इच्छ परस्सवि य एत्तियगं जिणसासणं॥ 4. आचार्य सोमदेव : यशस्तिलक अर्थात् जैसा तुम अपने प्रति चाहते हो और जैसा तुम 5. समण सुतं, 148, 149 अपने प्रति नहीं चाहते हो, दूसरों के प्रति भी तुम वैसा ही 6. वही, व्यवहार करो, जिनशासन का सार इतना ही है। 7. गद्यचिन्तामणि हम सब जीना चाहते हैं। भौतिकता के मध्य जिस 8. आचार्य शुभचन्द्र : ज्ञानार्णव, पृ.120 तरह नाम, चाम और दाम का खोखलापन प्रकट होने लगा 9. वही, 8/54 है उससे अध्यात्म की चाह बढ़ने लगी है। प्रवचन सभाओं, 10. अमितिगति आचार्य : सामायिक पाठ कथा-कीर्तनों में बढ़ती भूख इसका प्रमाण है। अत: यह 11. आचार्य अमृतचन्द्र : पुरूषार्थसिद्धयुपाय-44 स्पष्ट है कि हम अहिंसक भावना रखकर ही अपनी जिंदगी 12. वही, 49 13. Maicel Scott:"An Appeal to Reason", Peace सँवार सकते हैं। अगर भावना अच्छी हो, अहिंसामय हो News, 14 March 1958, P.6 तो हम कह सकते हैं कि- जिंदगी है चार दिन की, बहुत आचार्य पदारोहण समारोह संपन्न । वजन नियंत्रण में सहायक है हरी मिर्च श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर, जयपुर ___ हरी मिर्च का सीमित मात्रा में सेवन अनेक रोगों से मुक्ति दिलाता है। हरी मिर्च का चरपरापन इसमें मिलने में 28 नवंबर, 2004, अगहन बदि द्वितीया को परम पूज्य वाले कैप्सेकिन नामक तत्व के कारण होता है। मिर्च की संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज का तासीर गरम होती है। यह हल्की, रूखी व चरपरी होती है। आचार्य पदारोहण दिवस बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया यह वायु रोगों को दूर करती है तथा पित्त को बढ़ाती है। गया। जिसमें संस्थान में मानद सेवा में रत श्री प्रकाश चन्द्र हरी मिर्च में विटामिन 'सी' की भरपूर मात्रा पाई जाती है। जी पहाड़िया भीलवाड़ा वालों ने मुनि अवस्था की शुरूआत हरी मिर्च को पीसकर सरसों के तेल में पकाकर यह से आचार्य श्री के संस्मरण से सभा प्रारम्भ की एवं अधिष्ठाता तेल चर्म रोगों पर लगाने से लाभ होता है। पं. श्री रतनलाल जी बैनाड़ा ने आचार्य श्री के व्यक्तित्व पर बिच्छू के काटने पर शीघ्र ही हरी मिर्च का लेप लगाने शताधिक प्रेरक प्रसंग के माध्यम से गुरु के अथाह गुणों का से लाभ होता है। वर्णन किया। गुरु गुणगान सभा में संस्थान के शिक्षक गण, • वायु रोगों में आमवात, कमर दर्द व पार्श्व शूल में हरी ब्र. भरत भैया एवं अधीक्षक ब्र. सुकान्त भैया ने आचार्य श्री मिर्च का लेप करने से आराम मिलता है। से जुड़ी घटनाओं को सुनाकर आचार्य श्री को श्रद्धा सुमन हरी मिर्च का रोजाना सेवन करने से भोजन के प्रति अर्पित किये। अंत में संस्थान के छात्रों ने विविध स्वरचित अरूचि दूर होती है। मोटे व्यक्ति को हरी या लाल मिर्च का सेवन करते कविताओं एवं भजनों से अपनी भावनाओं को प्रगट किया। रहने से वजन नियन्त्रण में मदद मिलती है। पं. मनोज शास्त्री, भगवां 'जिनेन्दु'(साप्ताहिक) अहमदाबाद, 31 अक्टू. 2004 से साभार 20 जनवरी 2005 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524293
Book TitleJinabhashita 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2005
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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