________________
अर्थात् मैं सभी जीवों को क्षमा करता हूँ, सभी जीव मुझे क्षमा करें। मेरी सभी प्राणियों से मित्रता है, मुझे किसी से वैर नहीं है।
इस प्रकार की भावना रखने वाला प्राणी स्वयं का सबसे बड़ा मित्र है और उसी से विश्व मैत्री की अपेक्षा की जा सकती है। मनुष्य परिस्थितियों को अपने पक्ष में मोड़ सकता है। वह चाहे तो विसंवाद को संवाद में बदल सकता है, किन्तु यह बिना क्षमा के संभव नहीं है। हमें यही क्षमा उपादेय है।
डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन भारती, एल-65, न्यू इंदिरा नगर, बुरहानपुर (म.प्र.)
हम वृद्धों को बोझ न समझें
मनोज जैन "मधुर"
हम वृद्धों को बोझ न समझें वृद्ध हमारी शान हैं। ये समाज का होते गौरव, यही राष्ट्र के प्राण हैं।
इनको तीरथ-तीरथ घूमें। सेवाकर अपनी सेवा के आओ हम बीजांकुर रोपें। भारत की इस परम्परा को मिलकर नवपीढ़ी को सौंपे। करें वंदना उठकर इनकी इनके पुण्य महान हैं।
महाबली से युद्ध लड़ा था, जब तक थीं तन में कुछ सांसें। पक्षीराज ने पथ रोका था, फैला अपनी बूढी पाँखें। बूढ़ी छाती ने झेला था अर्जुन के सर संधानों को। प्रण की खातिर त्याग दिया था, हँसते-हँसते निज प्राणों को। मानसरोवर के हंसों सम, क्षीर-नीर प्रतिमान हैं।
3 हम भी बनकर श्रवण सरीखे, इनके चरणों को चूमें। मन की कांवर में बैठाकर,
चलती फिरती प्रतिमाओं को, घर मन्दिर में चलो सजायें। अवसादों को दूर करें हम, इनके घावों को सहलायें। जीते जी गर बाँट सकें तो, इनकी पीड़ाओं को बाँटें। अन्तर जो पश्चिम से आया, मिलकर उस अन्तर को पाटें। पितरों को भी अर्घ समर्पित करता हिन्दुस्तान है।
सी/एस-13, इन्दिरा कालोनी, बाग उमराव दूल्हा, भोपाल-10
4 सितम्बर 2004 जिनभाषित
-
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org