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दयोदय तीर्थ में आचार्य श्री विद्यासागर जी के उद्बोधन
14 अगस्त 2004, दयोदय घाट
इसी प्रकार पक्षियों को भी जीवनयापन के लिए दाना-पानी सिद्ध व्यक्ति को मंत्र सिद्ध करने की और दूसरे चरण में आवास की आवश्यकता होती है। आवश्यकता नहीं
दाना-पानी के लालच में वह स्वतंत्र उड़ान भरते हुए सामूहिक जिसका मन सिद्ध है उसे मंत्र सिद्ध करने की
रूप से बंधन को प्राप्त हो जाते हैं, लेकिन एक बुजुर्ग कबूतर आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि उसका प्रत्येक शब्द मंत्र
के अनुभव से संगठित प्रयास कर वह जाल सहित आसमान
में उडान भर लेते हैं और एक चूहे मित्र की मदद से वह का कार्य करता है। और जिसका मन सिद्ध नहीं है, वह मंत्र सिद्ध करता है, तो स्वयं को घातक सिद्ध होता है। स्थिर
जाल से मुक्त हो जाते हैं। इसी प्रकार सभी लोग स्वतंत्रता मन ही मंत्र है और अस्थिर मन स्वच्छंद है। इसलिए सबसे
चाहते हैं। लोग आसमान में उड़ना चाहते हैं, पर बल नहीं
मिलता, लेकिन एक साथ यदि शक्ति का प्रयोग किया जाता पहले मन को शुद्ध बनाना चाहिए, तभी मंत्र कार्यकारी
है, तो निश्चित रूप से सफलता मिलती है। जिस प्रकार सिद्ध होता है।
पक्षियों ने एकजुट संगठित होकर अपने को मुक्त कराया, __ अपराधी क्रूरता के साथ अपराध करता है। इसका
उसी प्रकार अहिंसा के लिए हम सभी को एकजुट होने की अर्थ यह नहीं कि उसे दंड भी क्रूरता के साथ दिया जाये,
आवश्यकता है। स्वतंत्रता का अर्थ एक साथ काम करके बल्कि उसे दंड अपराध को छोड़ दे, इस प्रकार देना चाहिए।
तात्कालिक संकट से मुक्ति पाना है। आप यदि स्वयं का जज कभी क्रोध के साथ निर्णय नहीं देता, बल्कि वह जिस
त्याग और समर्पण नहीं करते, तो आपका त्याग, त्याग के कलम से निर्णय देता है, उस कलम को भी तोड़कर अलग
क्षेत्र में संभव नहीं है। मूक निरीह पशुओं पर आजादी के कर देता है, ताकि उससे दूसरी बार कुछ लिखा न जा सके।
बाद अत्याचार बढ़े हैं। देश में कत्लखानों की संख्या में उन्होंने आगे कहा कि गाड़ी को वेग देना आसान है, लेकिन
वृद्धि हुई है। पहले पशुओं के माध्यम से यह राष्ट्र समृद्ध जब वह वेग में आ जाती है, तब उसे संभालना आसान
बना, लेकिन अब ऐसा वक्त आया कि पशुओं का वध नहीं होता। ठीक उसी प्रकार बरे कर्म करना आसान है.
ज्यादा हो रहा है। पशु मुख से कह नहीं पाते, लेकिन वह लेकिन जब इन कर्मों को भोगना पड़ता है तब बहुत सावधानी
कार्य कर सकते हैं, श्रावकों की तरह। इनके पास योग्यता रखनी पड़ती है।
है, दो हाथ, दो पैर वाला ही श्रावक हो, ऐसा नहीं है। 16 अगस्त 2004, दयोदय घाट
पौराणिक कथाओं में भी इसका वर्णन है। यदि एक जीव धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अपने विचार | की भी आपने प्राण की रक्षा की, तो अहिंसा का लक्ष्य पाने और आचार को भी मजबूत करें ।
में सफलता मिलेगी। हम अपनी पीड़ा के लिए रोते हैं, अहिंसा आत्मा की खुराक है। हमें स्वतंत्र हुए तो वर्षों
लेकिन दूसरे की पीड़ा को देखकर हमारी आँखें सूख जाती हो गए, लेकिन आज भी अहिंसा, जीवदया के क्षेत्र में |
हैं। जबकि हमें स्व के साथ पर का भी ध्यान रखना चाहिए।
वैज्ञानिकों ने शोध में यह साबित किया है कि बूचड़खानों विकास नहीं हो रहे हैं। धरती पर सात्विक जीवन जीने |
में पशुओं की प्रताड़ना-वेदना के कारण ही भूकंप जैसी वालों की संख्या में कमी नहीं है। अहिंसा के लिये सर्वस्व समर्पित कर संगठित प्रयास होने चाहिए। जीवन देने के
प्राकृतिक आपदायें आती हैं। लिए तत्पर रहने की आवश्यकता है। धर्म और संस्कृति की
जीवदया के क्षेत्र में उमाभारती रक्षा के लिए अपने विचार और आचार को भी मजबूत
के कार्य सराहनीय करना होगा। धर्म केवल बातों और विचारों से सार्थक नहीं तिलवाराघाट में आचार्य श्री विद्यासागर जी ने मध्यप्रदेश होता। उसके लिए बातों के साथ विचारों पर भी अमल की मुख्यमंत्री सुश्री उमाभारती के द्वारा जीवदया के क्षेत्र में करना होगा।
किये जा रहे सार्थक प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि पार्थिव शरीर को चलाने के लिए पहले चरण में दाना
देश का यह पहला प्रदेश है, और वह ऐसी पहली मुख्यमंत्री पानी और दूसरे चरण में आवास की आवश्यकता होती है। । हैं जिन्होंने निःशक्त पशुओं को सरंक्षण देने की दिशा में
सितम्बर 2004 जिनभाषित 5
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