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________________ श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र रामटेक का इतिहास रामटेक क्षेत्र को प्रसिद्धि कैसे हुई अनेकों उपचारों से भी अच्छी नहीं हुई। इस अवसर पर दयालु अब से लगभग ४०० वर्ष पूर्व नागपुर जिले में भोसले | सेवाभावी मंत्री ने निवेदन किया राजन आपने धर्मकार्य मंदिर वंश का राज्य था। राजा विष्णुमत का पालने वाला था एक दिन | निर्माण रुकवा दिया इसका प्रत्यक्ष फल आपको मिला है। आप राजा मन्त्रियों एवं सैनिकों के साथ राममंदिर के दर्शनार्थ गया। | मंदिर निर्माण कार्य पुनः आरम्भ करा दीजिए। उसके पुण्य से रानी दर्शन के पश्चात राजा भोजन करने हेतु बैठे। राजा व्यवहार कुशल | का असाता कर्म नष्ट होकर रानी अच्छी हो जावेंगी। मंदिर निर्माण थे। उन्होंने मंत्रीजी से कहा कि आप भी भोजन कर लें। मंत्री मौन | आरंभ की आज्ञा होते ही रानी का स्वास्थ्य सुधर गया। रहा किन्तु राजाज्ञा टलने के भयसे मनमें भयभीत रहा। इसी बीच एक बार भगवान की एक छोटी प्रतिमा वेदी से गुम हो राजा ने पुन: मंत्री से वही बात कही। मंत्री ने मनमें विचार किया | गई। पुजारी के द्वारा भगवान से प्रार्थना करने पर यह दो दिन बाद कि राजा से धर्मगुरु बड़े हैं अतः धर्मगुरु का दिया हुआ व्रत दृढ़ता | अपने आप दूसरी वेदी में प्राप्त हुई। से पालन करना चाहिए। मंत्री ने राजा से निवेदन किया। 'मेरे एक बार मध्यान्ह काल में शेर आया तथा भगवान के पितातुल्य राजन् । मुझे यह प्रतिज्ञा है कि वीतराग प्रभु के दर्शन के | दर्शन किए। पश्चात् गायब हो गया। ऐसा कहते हैं कि वह शेर बिना मैं आहार तो क्या जल भी ग्रहण नहीं करता। जैन की यह | नहीं यक्षपाल देव था। यह दृष्य मुनिश्री ऋषभसागरजी ने स्वयं पहचान है कि वह अष्टमूलगूणों का पालन करे। प्रथम मांस, | देखा। द्वितीय मधु, तृतीय मदिरा, चतुर्थ रात्रि भोजन त्याग, पंचम संकल्पी इसी तरह अनेकों चमत्कार हुए हैं तथा गुप्त फल मिलते हिंसादी पांचपापों का त्याग, षष्ट पानी छानकर पीवे, सप्तम | रहते हैं। वीतराग भगवान के दर्शन करे, अष्टम पंचउदुम्बर फलों का त्याग, इसी तरह एक चमत्कार कथा यह भी सुनी जाती है कि इन सब दोषों का त्याग तथा वीतराग प्रभु का दर्शन यही जैन के | राजमंत्री को भगवान के दर्शन न मिलने से चार उपवास हो गए लक्षण हैं। मंत्री की बात सुनकर राजा प्रसन्न हुआ तथा मंत्री से | तथा मंत्री दृढ़ता के साथ प्रतिज्ञा निभाता रहा। एक दिन सोते समय कहा कि आप शीघ्र ही हाथी पर बैठकर कामठी में सुन्दर विशाल | मंत्री ने स्वप्न में देखा कि ऐसी वाणी सुनाई पड़ रही है 'हे मंत्री, जैन मंदिर है सो जावें तथा वहाँ भव्य शांत मुद्रासन प्रतिमाओं का | तुम भूखे क्यों रह रहे हो, इसी जंगल में भगवान शान्तिनाथ की दर्शनकर प्रतिज्ञा पूर्ण करें।' प्रतिमा है, उसे खोजलो।' मंत्री ने जागने के उपरान्त स्वप्न वाणी यह सुनकर मंत्री ने कहा कि २० वे तीर्थंकर श्री | के अनुरुप वन में खोज कराई तो प्रतिमा मिली। मंत्री ने जिनदर्शन मुनिसुव्रतनाथ के समय में भगवान राम, सीता एवं लक्ष्मणजी इस | कर चार उपवास का पारणा किया। प्रतिज्ञा में दृढ़ रहने का यह क्षेत्र में आये एवं ठहरे थे अत: यहाँ कहीं न कहीं जिनमंदिर | प्रत्यक्ष फल देखिये। अवश्य ही होना चाहिए। तुरन्त ही राजाज्ञा से सैनिकों ने जंगल | इसी भाँति अनेकों चमत्कार होते रहते हैं आप भी भक्ति छान मारा वहीं एक ग्वाले से ज्ञात हुआ कि इसी जंगल में एक | करके अपनी बाधाएँ दूर कर सकते हैं। वृक्ष के नीचे एक मूर्ति विराजमान है। वहाँ जाने पर ज्ञात हुआ की यहाँ यह शंका उपस्थित हो सकती है कि चमत्कार तो विशाल मुद्रा शान्तिनाथ भगवान की १५ फुट ऊँची प्रतिमा विराजमान | राग का कार्य है एवं भगवान वीतरागी हैं अतः भगवान चमत्कार थी। भगवान के दर्शन कर मंत्री ने भोजन ग्रहण किया। बाद में | कैसे कर सकते हैं। इसका समाधान यह है कि भगवान तो राजाज्ञा से शान्तिनाथ मंदिर एवं निकटस्थ पहाड़ी पर राममंदिर का | वीतरागी हैं। वे पर द्रव्य का अच्छा बुरा न करते न कर सकते निर्माण कार्य आरम्भ हुआ। लेकिन उनकी शांत मुद्रा युक्त प्रतिमा हमारे परिणामों को निर्मल अतिशय क्षेत्र में हुए चमत्कारों की कथा - करने का वाहय साधन है हमारा भला बुरा हमारे पुण्य पाप कर्मों एक बार मंत्री जैन मंदिर निर्माण करा रहा था उस समय | के अधीन है। कभी-कभी भगवान भी भक्त की मनोकामना पूर्ण किसी अन्य मंत्री ने ईर्ष्यावश राजा से शिकायत कर दी कि यह | करने एवं धर्म प्रभावना करने हेतु धर्मानुरागी शासन देवी देवता भी मंत्री जैन होने के कारण राज खजाने से जैन मंदिर बनवा रहा है | चमत्कार दिखाते हैं । अतः यह सिद्ध हुआ कि भगवान स्वयं कुछ तथा दूसरा अन्य मंदिर ठीक से नहीं बन रहा है। राजा ने बिना | नहीं करते। विचारे ही जैन मंदिर का कार्य रुकवाने का आदेश दे दिया। आज्ञा | क्षेत्र स्थिति दर्शन होते ही आत्म कल्याण का साधन जिनमंदिर का कार्य रुकवा | इस क्षेत्र पर प्रथम तो एक विशाल सुन्दर दरवाजा है मानो दिया गया। दूसरे ही दिन से रानी भयंकर बीमार हो गई तथा । इसमें सुख शांति के मंदिर का प्रवेश द्वार ही हो। विशाल मंदिरों - मार्च 2004 जिनभाषित 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524283
Book TitleJinabhashita 2004 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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