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रात में ही आदिकुमार की वैवाहिक क्रियाएँ सम्पन्न की गयीं।
लगभग तीन वर्ष पूर्व भोपाल में पूज्य मुनिद्वय समतासागर जी एवं प्रमाणसागर जी का चातुर्मास हुआ था। उसमें मुनिद्वय ने अपने प्रभावशाली मार्मिक उपदेशों से श्रावकों को रात्रिकालीन विवाह एवं भोज आदि की कुप्रथाओं को समाप्त करने की प्रेरणा दी थी। भोपाल के समस्त श्रावकों ने उनके उपदेश से प्रभावित होकर रात्रि में विवाह और भोजन करने तथा किसी भी रात्रिकालीन विवाह और भोज में शामिल न होने की प्रतिज्ञा की थी। तब से सागर, जबलपुर आदि नगरों के समान भोपाल में भी दिन को ही बारात, विवाह एवं भोज की क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं । अतः आदिकुमार की बारात-यात्रा और विवाहविधि का नाटक रात्रि में किये जाने से अनेक श्रावकों को क्षोभ हुआ है। उनका कथन है कि आदिकुमार की बारात रात्रि में निकालकर और विवाहविधि रात्रि में सम्पन्न करके जैनेतर लोगों में यह सन्देश पहुँचाया गया है कि जैनतीर्थंकरों के विवाह रात्रि में हुए थे। तथा जैनों की नई पीढ़ी के सामने भी अनुचित दृष्टान्त रखा गया है। अनेक श्रावकों ने मुझसे फोन पर अपना क्षोभ प्रकट किया है। कई श्रावकों ने व्यक्तिगत वार्तालाप में तथा कुछ ने सम्पादक के नाम पत्र लिखकर अपने मन की पीड़ा व्यक्त की है। तीन पत्र मैं 'जिनभाषित' में 'आपके पत्र' स्तम्भ में प्रकाशित कर रहा हूँ।
पोस्टर में तो वरयात्रा का समय प्रात: 6:30 ही छपा था, फिर वह रात्रि को क्यों निकाली गई, इसकी जानकारी पाने के लिए जब मैंने कार्यक्रम के आयोजकों से बात की, तो उन्होंने बतलाया कि "प्रातःकाल के लिए लड़के और स्त्रियाँ तैयार नहीं थी, क्योंकि लड़कों की परीक्षाएँ चल रही थी और स्त्रियाँ उस समय स्नान-पूजन और भोजनादि कार्यों में संलग्न रहती। इसलिए महाराज जी ने शाम की अनुमति दे दी।" मैंने पूछा कि लड़कों और स्त्रियों के कहने से मुनिश्री के द्वारा एक धर्मविरुद्ध कार्य की अनुमति कैसे दी जा सकती है? तब उन्होंने उत्तर दिया कि "महाराज जी का कहना था कि यह तो नाटक है, यथार्थ नहीं। इसलिए रात्रि में बारात निकालने में कोई हर्ज नहीं है।"
किन्तु बारात निकालने का नाटक रात में सड़कों पर करने से दर्शकों को यह समझने का कोई संकेत नहीं मिलता कि जिसकी बारात रात में निकालने का यह नाटक किया जा रहा है, उसकी बारात वास्तव में दिन में निकली थी। इस कारण बारात को रात में निकलते हुए देखकर उनका यह समझ लेना स्वाभाविक है कि बारात वास्तव में रात को ही निकली होगी। और उन्हें दीर्घकाल से बारातों का रात में निकलते हुए देखने का अभ्यास भी है। अत: सड़क-नाटक में दिन में घटित घटना का दिन में ही घटित होने का अनुभव कराने के लिए उसका दिन में ही नाटक किया जाना चाहिए। यदि सड़क-नाटक तीन घंटे का नहीं है, अपितु तीन दिन या अधिक दिन का है, तो उसमें दिन की घटना दिन में और रात की घटना रात में दिखलाने की बहुत सुविधा होती है। ऐसा करने से दर्शकों को यह अपने-आप समझ में आ जायेगा कि कौनसी घटना वास्तव में किस समय घटी थी।
वस्तुतः ऐतिहासिक नाटक में पात्र जरूर नकली होते हैं, किन्तु घटनाएँ और घटनाओं के देश और काल तो वास्तविक ही प्रदर्शित किये जाते हैं । अत: रंगमंच पर ऐसे दृश्य उपस्थित किये जाते हैं, जिनसे घटनाएँ जिस देश और काल में घटित हुई थीं, उसी देश और काल में घटित प्रतीत हों। किसी घटना का रात्रि में घटित होना दिखलाना हो, तो मंच पर किंचित् अँधेरा कर दिया जाता है। इसीप्रकार रात्रि में खेले जाने वाले नाटक में किसी घटना का दिन में घटित होना दर्शाना हो, तो नेपथ्य में सूत्रधार के द्वारा यह आकाशवाणी करायी जाती है कि "इस समय पूर्वाह्न, मध्याह्न या अपराह्न है और अमुक-अमुक पात्र इस समय अमुक-अमुक कार्य करने जा रहा है।" किन्तु यह नाट्यशास्त्रीय प्रयोग रंगमंचीय नाटक में ही किया जा सकता है, सड़कीय नाटक में नहीं। यदि कहा जाय कि रात्रिकालीन सड़क-नाटक में ऐसी घोषणा 'माईक' से की जा सकती है, तो सड़क-नाटक में ऐसा करना अस्वाभाविक हास्यास्पद एवं अनाट्यशास्त्रीय होगा, क्योंकि सड़क-नाटक में किसी घटना का दिन में घटित होने का बोध उसे दिन में प्रदर्शित करके स्वाभाविक रूप से कराया जा सकता है और रात्रि में प्रदर्शित करने से जो असंख्य जीवों की हिंसा हो सकती है, उसका परिहार किया जा सकता है। किन्तु उक्त सड़क-नाटक में माईक से वैसी घोषणा भी नहीं की गयी।
इस प्रकार आदिकुमार की जो बारात यथार्थतः दिन में निकली थी, उसे सड़क-नाटक में रात में निकालने की अनुमति देना नाट्य-निर्देशन सम्बन्धी भयंकर भूल है। इससे जैन-जैनेतरों में यह गलत सन्देश गया है कि जैनतीर्थंकरों के विवाह रात्रि में हुए थे अतः श्रावकों के विवाह यदि रात्रि में होते हैं, तो धर्मसम्मत ही हैं। इसके अतिरिक्त श्री आदिकुमार की बारात का नाटक करनेवाले एक विशाल जुलूस का रात्रि में सड़कों पर नाचते-गाते हुए तीन किलोमीटर की यात्रा करने से विद्युत ट्यूबों की ओर खिंचकर आये हुए कितने जीवों की हिंसा हुई होगी, कितने जीव पैरों के तले कुचले गये होंगे, यह कल्पना कर हृदय काँप जाता है। तथा आदिकुमार के बारातियों का रास्ते में पेप्सी, कोकाकोला, जैसे बाजारू शीतल पेय पीने से आदिकुमार को कितना लज्जित होना पड़ा होगा, यह सोचकर आत्मा रोने लगती है। समाज के अग्रणियों से प्रार्थना है कि वे शान्तमन से विचार करें कि क्या ऐसे कार्य वास्तव में धर्म की प्रभावना करते हैं या इससे उलटा करते हैं?
रतनचन्द्र जैन
4 मार्च 2004 जिनभाषित
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