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________________ रजि.नं. UP/HIN/29933/24/1/2001-TC डाक पंजीयन क्र.-म.प्र./भोपाल/588/2003 स्वाध्याय करो..... स्वाध्याय करो.... पं. लालचन्द्र जैन राकेश' वॉचो-पूछो, सुनो-सुनाओ, दुहराओ मिल गान करो। शंका-समाधान आदिक से, तुम श्रुत का परिज्ञान करो। प्रतिदिन शास्त्र सभा में आओ, औ' घर पर भी पठन करो। पुरजन, परिजन मिलकर बैठो, कुछ ऐसा संगठन करो॥ रात-दिवस में आधा घण्टे, तो अपने सँग न्याय करो। स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो, तुम प्रतिदिन स्वाध्याय करो॥१॥ स्वाध्याय निरन्तर करने से, कषाय मन्दता आती है। मन-मर्कट बँध जाने से, उसकी चंचलता जाती है। अभ्यास निरन्तर करने से, ज्ञान का सूरज उगता है। सम्यक् श्रद्धा जग जाने से, मिथ्यात्व अँधेरा भगता है। स्वाध्याय हमें सिखलाता है, हेयोपादेयक ज्ञान करो। स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो, तुम प्रतिदिन स्वाध्याय करो॥५॥ जिनवाणी से शोभित घर जो, वह मंदिर है नहीं मकान। स्वाध्याय निरन्तर करने से, अतिशय पुण्यार्जन होता है। जिनवाणी से शून्य महल को, मुनिवर कहते हैं श्मशान॥ फल स्वरूप धीरे-धीरे, शुभराग विसर्जन होता है। जिनवाणी भवरोग महौषध, प्रातः सन्ध्या पान करो। पन्द्रह प्रमाद गल जाने से, व्रत धारण में रुचि होती है। बिन श्रुत केवलज्ञान न होता, जिन-वच में श्रद्धान करो॥ शुद्धि चतुर्विध के कारण, बुद्धि विकार को खोती है। संशय-विभ्रम-मोह विनाशक, माता का सम्मान करो। स्वाध्याय हमें सिखलाता है, देव-शास्त्र-गुरु मान करो। स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो, तुम प्रतिदिन स्वाध्याय करो॥२॥ | स्वध्याय करो, स्वाध्याय करो, तुम प्रतिदिन स्वाध्याय करो॥६॥ स्वाध्याय निरन्तर करने से, मन विषयों से हटता है। स्वाध्याय निरन्तर करने से, जीवन में उन्नति होती है। उदासीनता आती है, संसार हमारा घटता है। दीपक से दीपक जलता है, जलती सुज्ञान की ज्योति है। शुभता की आँधी चलने से, पापों के बादल छटते हैं। सद्ज्ञान वृक्ष फल देता है, मन में सदभाव पनपते हैं। अविपाक निर्जरा के कारण, कर्मों के बन्धन कटते हैं। करुणा की धारा बहती है, पग उच्चादर्श उतरते हैं। स्वाध्याय हमें सिखलाता है, मत पुद्गल से प्यार करो। स्वाध्याय हमें सिखलाता है, कभी नहीं अन्याय करो। स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो, तुम प्रतिदिन स्वाध्याय करो॥३॥ स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो, तुम प्रतिदिन स्वाध्याय करो॥७॥ स्वाध्याय निरन्तर करने से, अन्तस् की आँखें खुलती हैं। स्वाध्याय निरंतर करने से, चिन्तन का रूप निखरता है। रत्नत्रय पर चलने से, शिवपुर की राहें मिलती हैं। गुण दोष विवेचन के कारण, जीवन मणियों से भरता है। हम अपने से जुड़ते हैं, निज में निज दर्शन करते हैं। पल-पल पारायण पालन से, पर्याय सफल हो जायेगी। आत्मा का अनुभव होने से, आनन्द के झरने झरते हैं। मन शान्तसिन्धु हो जायेगा, समता क्षमता आजायेगी। स्वाध्याय हमें सिखलाता है, निज आतम स्नान करो। स्वाध्याय हमें सिखलाता है, तुम ऊर्ध्वगमन रफ्तार करो। स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो, तुम प्रतिदिन स्वाध्याय करो॥४॥ | स्वाध्याय करो, स्वाध्याय करो, तुम प्रतिदिन स्वाध्याय करो॥८॥ नेहरु चौक, गली नं. 4 गंजबासौदा (विदिशा ) म.प्र. Jai स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, जोन-I, महाराणा प्रताप नगर,... भोपाल (मप्र) से मदित एवं सर्वोदय जैन विद्यापीठ 1/205, प्रोफेसर्स कालोनी. आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित।
SR No.524282
Book TitleJinabhashita 2004 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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