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________________ है, शस्त्रास्त्र होंगे तो मनुष्य उन्हें चलाने और प्रयोग करने का | सहज सुखद हो जायेगा। भौतिक उन्नति के साथ आत्मोन्नति भी प्रयत्न करेगा ही, जैसा भारत में ही पोखरन में परमाणु परीक्षण | संभव होगी। विज्ञान से प्राणियों की सुरक्षा संभव नहीं किन्तु किया गया, तो समस्त विश्व में हलचल पैदा हो गयी। पोखरन में अहिंसा प्राणियों में वात्सल्य उत्पन्न करने वाली है, अत: पारस्परिक हुए परमाणु परीक्षण के विरोध में पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण | सौहार्द की वृद्धि भी इसके द्वारा होती है, जिससे एक दूसरा परस्पर कर अपनी वृत्ति का परिचय दिया। भारतीय मानस में अहिंसा में भक्षक न बनकर एक दूसरे का रक्षक बनेगा। इसी कारण विश्व विद्यमान होने के कारण यद्यपि हिंसक उपकरण भी मार काट के | के समस्त प्राणियों की सुरक्षा हो सकती है। अहिंसा के माध्यम से लिए प्रायः प्रयोग नहीं किये जाते हैं तथापि क्रूर प्रकृति वाले लोगों मनुष्य स्वयं जीवित रहकर दूसरों को जीवित रहने में सहयोग कर के द्वारा तो शस्त्रास्त्रों का प्रयोग अपनी अहंपुष्टि और स्वार्थपूर्ति के | सकता है। अहिंसा का प्रेम, करुणा, दया एवं सेवा के रूप में लिए किया ही जाता है। अत: विज्ञान प्रदत्त हिंसक उपकरण प्रयोग किये जाने से आनन्द प्राप्त होता है। हृदय में प्रसन्नता की संघर्ष के निमित्त होते ही होते हैं। अनुभूति होती है। बैर-विरोध, द्वेष-घृणा का समापन होता है। विज्ञान का महत्त्व अहिंसा के साथ ही है क्योंकि अहिंसा | इसका सहारा लेकर स्थायी रूप से सुख-शांति और जीवन की के साथ विज्ञान की शक्ति जुड़ जायेगी तो सम्पूर्ण संसार स्वर्ग | सुरक्षा प्राप्त की जा सकती है। चतुर्विध आराधना का पर्व : चातुर्मास ब्र. संदीप 'सरल' श्रमण जैन परम्परा में अनादिकाल से वर्षायोग / चातुर्मास । प्राप्त करते हुए स्व को प्राप्त करना ज्ञानाराधना कहलाती है। की परम्परा अनवरत रूप से चली आ रही है। चातुर्मास का | चातुर्मास के दौरान साधु, त्यागी, व्रतियों का सानिध्य प्राप्त होते प्रमुख उद्देश्य अहिंसा धर्म का पालन करना है। पूर्ण अहिंसा | ही ज्ञान की गंगा बहने लगती है। अत: हमारा परम कर्तव्य धर्म के पालन करने वाले साधक गण वर्षावास के अर्न्तगत एक | बनता है कि हम उसका पूरा-पूरा लाभ उठाएँ। अपने मंदिर में स्थान पर रहकर चार प्रकार की आराधना करते हुए स्व-पर | स्थित ग्रन्थों का संरक्षण-संवर्द्धन करना यह भी ज्ञानाराधना है। कल्याण में संलग्न रहते हुए कल्याणेच्छुक श्रावक जनों को भी | (स)चारित्राराधना - पाँच महाव्रत, पाँच समिति और कल्याण का रास्ता प्रशस्त किया करते हैं। . तीन गुप्तियों को तेरह प्रकार का चारित्र बतलाया है, इस प्रकार । . धन्य हैं वे नगर के गौरवशाली पुण्यशाली श्रावकजन | के चारित्र को प्राप्त करने की भावना से चारित्रारूढ़ साधकों की जहाँ पर इस चातुर्मास पर्व में गुरूओं का पावन सामीप्य प्राप्त | सेवा करना चारित्राराधना है। श्रावक भी अपने यथायोग्य नियमों हुआ है। चातुर्मास के इस पावन अवसर पर अनेक प्रकार के का पालन करते हुए चारित्राराधना के क्षेत्र में आगे बढ़ता है। आयोजन-विधान, संगोष्टियाँ, पुस्तक प्रकाशन, सम्मान समारोह आज का युवावर्ग नैतिकता, सदाचार, श्रावकाचार से काफी आदि महत्वपूर्ण कार्य प्रारम्भ होंगे। गिर गया है। अत: संतों का कर्त्तव्य बनता है कि बाह्य आडम्बर चातुर्मास के चार चरण पूर्ण प्रदर्शनकारी खर्चीले आयोजनों की अपेक्षा युवावर्ग को (अ) दर्शनाराधना - दर्शन अर्थात् सम्यग्दर्शन के | सदाचार से जोड़ा जाए तो चातुर्मास की सबसे बड़ी सफलता विषयभूत देव-शास्त्र-गुरु की उपासना जीवादि सात तत्वों का स्वरूप समझते हुए उस पर अटूट श्रद्धान करना। हम धर्म के (द) तपाराधना - इच्छाओं का निरोध करना, माध्यम से रागी द्वषी देवताओं की उपासना करते हुए अपनी | अनशनादि बारह प्रकार के तप करना तपाराधना कहलाती है। विराधना तो नहीं कर रहे हैं। दर्शन गुण से युक्त सम्यग्दृष्टि की इस पर्व पर साधक भी निस्पृह भाव से आत्म कल्याण की इच्छा भी यथायोग्य अनुशंसा करना दर्शन आराधना है। से शक्ति के अनुसार व्रत-उपवास आदि कर तपाराधना में संलग्न (ब) ज्ञानाराधना - स्वाध्याय के माध्यम से ज्ञान को | रहते हैं। 6 अगस्त 2003 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524276
Book TitleJinabhashita 2003 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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