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________________ वर्तमान में अहिंसा की उपयोगिता डॉ. श्रेयांसकुमार जैन, बड़ौत अहिंसा ही जैनधर्म की आधारशिला है। द्रव्य द्रष्टि से | भ्रूण हत्या जैसे जघन्य कृत्य का पूर्णरूप से अंत हो जाएगा। सभी शुद्ध जीव तत्त्व एक समान हैं। परन्तु कर्मों के आवरण से | प्रसाधन सामग्री का विवेक : अहिंसा का ही प्रभाव चार गतियों की चौरासी लाख योनियों में परिभ्रमण करते हैं, फिर | होता है कि मानव अपनी साज सज्जा हेतु अहिंसक उपकरणों का भी कोई प्राणी चाहे वह छोटे से छोटा हो या बड़े से बड़ा हो, चाहे | ही प्रयोग करता है, किन्तु अहिंसा से अपरिचित प्राणी क्रूरता पूर्ण वह नाली का कीडा ही क्यों न हो. यह नहीं चाहता कि उसे कोई ढंग से तैयार की गई प्रसाधन सामग्री का उपयोग करते हैं । अहिंसा कष्ट दे। सभी प्राणी कष्टों से भयभीत रहते हैं, अपने प्राणों की रक्षा | की लोक जीवन में व्यावहारिकता का ही परिणाम होता है कि चाहते हैं। अतः यह भी आवश्यक है कि प्रत्येक प्राणी पर दया हिंसक संसाधनों से तैयार की हुई औषधियों/प्रसाधन की सामग्री करनी चाहिए। का उपयोग कम होता है या बिलकुल भी नहीं किया जाता है। अहिंसा का विस्तार अनेक सन्दर्भो में होता है, जिनमें से | अहिंसा सिद्धान्त के प्रचार-प्रसार के फलस्वरूप आज कुछ ऐसी कुछ ज्ञातव्य हैं संस्थाएँ बनी हैं, जो अमेरिका, यूरोप, भारत आदि देशों में पूर्ण आत्महत्या न करना : वर्तमान में मानव अनेक उलझनों | सक्रिय हैं और वे इस बात पर बल दे रहीं हैं- क्रूरता पूर्ण प्रसाधन में उलझकर तनावग्रस्त हो जाता है जिससे वह आत्महत्या जैसे | सामग्री के निर्माण को बन्द किया जाय और कोई भी उनका प्रयोग जघन्य पाप को करने के लिए उद्यत हो जाता है, किन्तु जिसके न करे। हृदय में अहिंसा के बीज होते हैं, वह कितनी भी विपत्तियाँ आयें पर्यावरण विज्ञान का रहस्य : अहिंसा सिद्धान्त को जीवन फिर भी आत्महत्या जैसे निघृण कार्य में प्रवृत्त नहीं होता है। यही | में अपनाने पर ही पर्यावरण विशुद्ध रह सकता है। अनर्थक हिंसा प्रवृत्ति हिंसा की विस्तारक है। | से बचो। यह माना कि हिंसा से बचना सरल नहीं है किन्तु मनुष्य परहत्या न करना : कभी-कभी क्रोधादि के निमित्त से | विवेक से काम ले तो अनर्थक हिंसा से बहुत कुछ बचा जा सकता ऐसे अवसर आ जाते हैं कि मनुष्य विवेक खो देता है और दूसरों | है। जहाँ अनर्थक हिंसा की बात आती है, वहाँ पर्यावरण प्रदूषण को मार डालता है। विवेक खोकर जो दूसरों के प्राणों तक का | की बात भी आ जाती है। यह पर्यावरण की समस्या अनर्थ हिंसा हरण कर लिया जाता है, वह महा पाप है उससे बचना ही आवश्यक | से उपजी समस्या है। अहिंसा के अपनाने से ही अनर्थ हिंसा से मानव बच सकता है। वातावरण को प्रदूषित होने से बचाने कि भ्रूण हत्या न करना : आज विश्व में भ्रूण हत्या अत्यधिक | लिए अहिंसा ही कार्यकारी है, यही इसकी व्यावहारिकता है। तेजी से बढ़ रही है, वह एक गम्भीर स्थिति है, अत्यधिक आधुनिक | आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अहिंसा की उपयोगिता को उक्त उपकरणों के निर्माण ने इस समस्या को विकराल रूप प्रदान कर विविध सन्दर्भो में समझना आवश्यक है। शुद्ध जीवन शैली में दिया है, क्योंकि उनके परीक्षण के द्वारा भ्रूण हत्या का चक्र सा | विश्वास रखने वाला अहिंसा को इस रूप में अपनाए की हिंसा की चल रहा है। अमेरिका में एक फिल्म बनी है, सायलेंट क्रीज। ज्वालाएं अहिंसा की शीतल फुहार से शान्त हो जायें। अहिंसा के इसने तहलका मचा दिया। उसमें यह दिखाया गया है कि भ्रूण द्वारा हिंसा के शमन का क्रम यदि अनवरत चले तो इक्कीसवीं हत्या का क्या परिणाम होता है। तीन माह के भ्रूण/गर्भस्थ शिशु | शताब्दी में श्वांस लेने वाला मनुष्य अहिंसक समाज की संरचना को जब मारा जाता है, तब वह रोता है, चीखता और चिल्लाता है। | करने में सफल होगा। इतना करुणाप्रद दृश्य होता है कि देखते ही मानस में तीव्र बैचेनी विज्ञान ने संहारक अस्त्र-शस्त्रों और युद्ध के उपकरणों पैदा हो जाती है। दृष्टा पूर्णरूप से विचलित हो जाता है। इसके | का आविष्कार करके विश्व में अशान्ति को बढ़ावा दिया है। आधार पर अमेरिकी सरकार ने भ्रूण हत्या पर प्रतिबन्ध लगा अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्रों की होड़ बढ़ती जा रही है, इनके बल दिया, किन्तु भारत में आज भी इस विकृति से लोग अपने को नहीं पर लोगों को आंतकित किया जा रहा है। पुरातन काल से ही बचा पा रहे हैं। इस विकृति का मूल कारण अहिंसा को जीवन | अहिंसा का अवलम्बन लेकर मानव शांति के लिए प्रयत्न कर रहा दर्शन का अंग न बनाना है, जो संस्कृति से जुड़े हुए लोग हैं वे | था किन्तु विज्ञान ने हिंसक संसाधनों के निर्माण के माध्यम से अहिंसा को जीवन का अभिन्न अंग मानकर चलते हैं, जिस कारण | अशान्ति और संघर्ष को बढ़ाने में योगदान किया है। यह वास्तविकता अगस्त 2003 जिनभाषित 5 ducation International Jain Education Interational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524276
Book TitleJinabhashita 2003 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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