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सम्पादकीय
श्री सोली जे. सोराबजी की एक दुःखद टिप्पणी
'दिगम्बर जैन महासमिति पत्रिका' (1-15 जुलाई 2003) में श्री मिलापचन्द जी जैन इंडिया, जयपुर का एक लेख प्रकाशित हुआ है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि विधिवेत्ता सोली जे. सोराबजी ने 'टाइम्स ऑफ इण्डिया' दिल्ली के 2 मार्च 2003 के अंक में अपने कालम 'आउट ऑफ कोर्ट' में 'प्राइवेसी, न्यूडिटी एण्ड जाज' शीर्षक से दिगम्बर जैन समाज के बारे में एक सर्वथा अनर्गल एवं अनावश्यक टिप्पणी की है। उन्होंने लिखा है
"The urge to bare one's body springs from different compulsions. A certain sect of Jains, Digambars, who move about uncovered in public invoke their right of religious freedom. Litigants who are incensed by an adverse court ruling have protested by baring themselves in the court room as happened in the court of Lord Justice Denning in London. There could not be a more glaring instance of contempt in the face of the Court. The most picturesque protest against the move to attack Iraq occurred in Australia when about 750 women shed their clothes in protest on a hillside near the coastal resort town of Byron Bay. Not to be outdone about 250 men took off their clothes and lay down to spell out the words 'Peace Man' on a rugby field to register their opposition to Washington's stance against Iraq. A joint protest perhaps would have had better effect in Australia. Capital Hill of course would be unmoved by such naked exhibitions."
डंडिया जी द्वारा उद्धृत श्री सोली जे. सोराबजी के ये वचन निश्चय ही दिगम्बर जैन समाज के लिए अत्यन्त दुःखद एवं आश्चर्यजनक हैं। उन्होंने दिगम्बर जैन मुनियों के नग्न विचरण करने की तुलना किसी कोर्ट के फैसले या ईराक पर अमेरिकी हमले का विरोध करने के लिए अपने शरीर का नग्न प्रदर्शन करनेवालों से की है। सोराबजी के कथन का आशय यह है कि जैसे इन लोगों का नग्नदेह-प्रदर्शन राजनीतिक कारणों से प्रेरित होता है, वैसे ही दिगम्बर मुनियों का नग्न विचरण भी राजनीतिक कारण से प्रेरित होता है और वह कारण है संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का मनमाना उपयोग करना। अर्थात् उनका नग्न होना किसी धार्मिक सिद्धान्त पर आश्रित नहीं है, अपितु केवल धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का मनमाना उपयोग करने की इच्छा से प्रसूत है और ऐसा आशय प्रकट कर श्री सोराब जी ने दिगम्बर मुनियों को लगभग विकृत मनोवृत्तिवाला घोषित कर दिया है। भारत के महाधिवक्ता जैसे महान पद पर आसीन व्यक्ति भारतीय संस्कृति और इतिहास से इतना अपरिचित हो, भारतीय धर्मों और दर्शनों के ज्ञान से इतना शून्य हो कि वह दिगम्बर मुनियों के अपरिग्रह एवं वीतरागता के परिणामभूत, मोक्षसाधक नग्नत्व को इतनी हीन दृष्टि से देखे यह अत्यन्त आश्चर्यजनक और पीड़ादायक है। इससे भी अधिक आश्चर्य और पीड़ा की बात यह है कि इतने प्रसिद्ध विधिवेत्ता ने किसी दूसरे धर्म के विषय में उसका मर्म समझे बिना ऐसी गैर-जिम्मेदाराना, अज्ञानतापूर्ण और धार्मिक विद्वेष से प्रेरित टिप्पणी कैसे कर दी !
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मोहन-जो-दड़ो और हड़प्पा के उत्खनन में प्राप्त नग्न जिन-प्रतिमाएँ इस बात के सबूत हैं कि दिगम्बर जैन धर्म कम से कम पाँच हजार वर्ष पुराना है। प्राचीन बौद्धसाहित्य में निर्गठ नातपुत्त (निर्ग्रन्थ ज्ञातिपुत्र अर्थात् नग्नवेशधारी तीर्थंकर महावीर) की चर्चा तथा सम्राट् अशोक के शिलालेखों में निर्ग्रन्थों तथा ऐतिहासिक महाकाव्य 'महाभारत' में नग्नक्षपणक (दिगम्बर जैन साधु) के लेख बतलाते हैं कि दिगम्बर जैन साधु आज से ढाई हजार वर्ष पहले भी विद्यमान थे और अशोक जैसे महान सम्राट् अन्य सम्प्रदायों के साधुओं के साथ दिगम्बर जैन साधुओं का भी सम्मान करते थे और उनकी निर्विघ्न धर्मसाधना की व्यवस्था हेतु पृथक् से अमात्य नियुक्त करते थे। उदयगिरि (विदिशा म.प्र.) ऐलोरा, खजुराहो आदि की गुफाएँ और मंदिर इस बात के जीवन्त प्रमाण हैं कि प्राचीन हिन्दू राजा हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों को समभाव से देखते थे और दिगम्बर साधुओं के विश्राम हेतु भी गुफाओं का निर्माण कराते थे तथा उनके राज्य में दिगम्बर साधुओं को निर्बाध विचरण की स्वतंत्रता थी। इन महान् सम्राटों और राजाओं ने दिगम्बर जैन मुनियों के नग्न रहने को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग नहीं माना। यदि उन्हें यह धार्मिक स्वतन्त्रता का दुरुपयोग प्रतीत होता, तो वे इस पर तुरन्त प्रतिबन्ध लगा देते, क्योंकि वह राजतन्त्र का जमाना था, लोकतंत्र का नहीं।
लोकतांत्रिक राजव्यवस्था तथा उसमें धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का समावेश तो वर्तमान युग की देन है। ऐतिहासिक युग के आरम्भ से सन् 1947 ई. तक तो राजशाही का ही बोलबाला था और इस सम्पूर्ण युग में दिगम्बर जैन साधुओं की परम्परा
• जुलाई 2003 जिनभाषित
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