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________________ समाचार चैतन्यतीर्थ-उदासीन आश्रम-इसरी बाजार इस प्रकार के क्षेत्र के अतिरिक्त इस विषम काल में खोटे सिद्धक्षेत्र में आयकर करो आत्म कल्याण। संस्कारों को तोड़कर सुसंस्कारित होने के लिये सत्संग की बड़ी नर पर्याय गवाँय दी तो फिर दुर्लभ जान॥ आवश्यकता है। एतदर्थ साधकों के लिए परम सौभाग्य से स्व. जिस भूमि से एक भी मुनि मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं, वह | मूर्धन्य विद्वान् प. प्रवर डॉ. पन्नालाल जो साहित्याचार्य के सुयोग्य भूमि सिद्धक्षेत्र कहलाने लगती है। वहाँ की रज को अपने माथे शिष्य द्वय सिद्धान्तरत्न व न्यायरत्न से विभूषित बाल ब्र. श्री पवन पर लगाकर भव्य जीव अपने आपको धन्य मानते हैं, यहाँ तक | भैया व श्री कमल भैया आश्रम में दिनांक 4.6.2003 को स्वपरहित कि सम्यग्दर्शन को भी प्राप्त कर लेते हैं। श्री धवलाजी महाग्रन्थराज के लिये पधार चुके हैं। इस प्रकार क्षेत्र तथा सत्संग का लाभ की प्रथम पस्तक में आचार्य श्री वीरसेन स्वामी ने सिद्धक्षेत्रों को | उठाकर हम भी अपना भला कर सकते हैं। ब्र. द्वय के नेतृत्व में क्षेत्रमंगल कहा है, अर्थात् मांगलिक क्षेत्र माना है। अत: जहाँ से सामूहिक स्वाध्याय से सभी लाभान्वित हो रहे हैं। श्रुत पंचमी पर्व असंख्यात मुनियों ने अनन्तकाल के लिये कर्मों से छूटकर के महान अवसर पर आश्रम में अपरान्ह 2 बजे सरस्वती पूजा, अनन्तसुख को प्राप्त किया हो ऐसे गिरिराज सम्मेद शिखरजी की धवला-जयधवला-महाधवला आदि ग्रन्थराजों की पूजा बड़े पवित्रता का क्या कहना? भक्तिभाव के साथ सम्पन्न हुयी एवं प्रवचन हुए। ऐसे पवित्र शाश्वत तीर्थराज की तलहटी में बसा हुआ श्री अतः जो भाई-बहन वर्तमान में मुनि-आर्यिका बनने में पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन शान्ति निकेतन उदासीन आश्रम इसरी बाजार, असमर्थ हैं, जिनकी पारिवारिक जिम्मेदारी पूर्ण हो चुकी है तथा जहाँ पर न्यायाचार्य, उदारता की मूर्ति श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी ने जिन्हें इस बहुमूल्य पर्याय का अवशिष्ट जीवन व्यतीत करने के ध्यान अध्ययन किया और अन्त में समाधि पूर्वक इस नश्वर शरीर लिए और अर्थ पुरुषार्थ की आवश्यकता नहीं है- उनके लिए धर्म का विसर्जन किया तथा जहाँ पर सन् 1983 में युग-श्रेष्ठ महाकवि ध्यान पूर्वक जीवन व्यतीत करने के लिए परमपावन सिद्ध क्षेत्र संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी ने दस माह तक सम्मेद शिखरजी के पादमूल में स्थित श्री पार्श्वनाथ दि. जैन शांति दीर्घकालीन साधना कर द्वादश-विधि तप किया और इसी बीच निकेतन उदासीन आश्रम, इसरी बाजार पूर्वी भारत में गौरवपूर्ण पाँच ऐलक महाराजों को अर्थात् सुधासागर जी, स्वभाव सागर | अद्भुत स्थान है । घर परिवार में रहते हुए परिणामों का निर्मल जी, समता सागर जी, समाधि सागर जी, सरल सागर जी को परम । रहना दुष्कर है। अत: आत्म विकास के लिए अब बचा हुआ दैगम्बरी दीक्षा प्रदान की थी तथा जहाँ पर क्षुल्लक श्री जिनेन्द्र वर्णी जीवन धर्मक्षेत्र में व्यतीत करना लाभ दायक है। जी की समाधि कराई थी, जिससे अन्वर्थ संज्ञक "शान्ति निकेतन" अतः उदासीन आश्रम में आजीवन रहने के उद्देश्य से अत्यन्त शान्तिदायक बना है, जहाँ सूरजमुखी साधकों के निवास आगामी 30.11.2003 से 14.12.2003 तक"पंचम आत्म साधना स्थान हैं। प्रातः काल पक्षियों के कलरव सुनाई देते हैं, दायीं ओर शिक्षण शिविर" का आयोजन किया जा रहा है। उपसर्गविजेता विघ्नहर पार्श्वनाथ भगवान् का गगनचुम्बी जिनालय आश्रम में वर्तमान दैनिक चर्या सुशोभित है, बायीं ओर अनादि कालीन अज्ञान तिमिर को हरने | प्रात: 4 बजे से 4.20 बजे तक - सुप्रभात स्तोत्र, आचार्य भक्ति वाला सरस्वती भवन अपनी छटा बिखेर रहा है, सामने ही वर्णी प्रातः 4.20 से 5.30 तक - सामायिक द्वय (गणेश प्रसाद जी वर्णी, जिनेन्द्र जी वर्णी) के समाधि स्थल प्रात: 5.30 से 7.15 तक पूजन प्रतिपल समाधि की याद दिलाते हैं, सामने ही कुएँ का शीतल प्रात: 7.30 से 8.30 तक सामूहिक स्वाध्याय जल 'जलगालन' विधि सिखाता है, पूर्व दिशा में गिरिराज पर | मध्याह्न 12 से 1 बजे तक सामायिक स्थित पार्श्वप्रभु की टोंक सामायिक बेला में अनन्त सिद्धों का मध्याह्न 1 से 2 बजे तक स्वकीय अध्ययन स्मरण कराती है। चारों ओर की हरियाली चौरासी लाख योनियों मध्याह्न 2 से 3.30 तक सामूहिक स्वाध्याय से भयभीत कर मन को शांति की ओर ले जाती है तथा पृष्ठ भाग | मध्याह्न 3.30 से 4.30 तक - स्वकीय अध्ययन में वृक्ष पंक्ति सुशोभित है। ऐसा यह आश्रम वर्षों से भव्यों को | मध्याह्न 5.45 से 6.15 तक देववन्दना, आचार्य भक्ति साधना के लिये बुला रहा है। इतना तो निश्चित है कि द्रव्य-क्षेत्र सांय 6.15 से 7.30 तक - सामायिक काल के अनुसार संसारी प्राणियों के भाव हुआ करते हैं। अतः | सांय 7.30 से 8.30 तक - सामूहिक स्वाध्याय आत्महित के इच्छुक भाईयों को उत्तम क्षेत्र का चुनाव आवश्यक है। इस चुनाव के लिए पूर्वी भारत में उदासीन आश्रम इसरी श्रीमती हीरामणी छाबड़ा 188/1/जी माणिकताल मेन रोड, बाजार सर्वश्रेष्ठ है। कलकत्ता-700054 30 जुलाई 2003 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524275
Book TitleJinabhashita 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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