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प्राकृतिक उपचार
यह एक तीव्र रोग है। प्रकृति प्रदत्त दिव्य वरदान स्वरूप है। शरीर शुद्धिकरण की प्रक्रिया में सहयोग देने के लिए यह मित्र की तरह हमें सजग व सावधान करने के लिए आता है। वास्तव में शरीर में सीमा से अधिक संचित विकार को प्रबल जीवकी शक्ति द्वारा तेजी से निकाल बाहर करने की प्रक्रिया ही इस रोग में होती है। अतः जुकाम होने पर किसी अन्य चिकित्सा एवं औषधि द्वारा शरीर के स्वभाविक स्वच्छ एवं स्वस्थ होने के रास्ते में रोड़े न अटकाये, प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा शरीर की स्वाभाविक प्रक्रिया के साथ सहयोग कर सही स्वास्थ्य प्रदान करे।
लक्षण :- सिरदर्द, नाक बहना, कभी-कभी पूरे शरीर में दर्द का बना रहना, धीमा-धीमा बुखार, खाँसी, टॉसल बढ़ना, सांस लेने में कठिनाई, गुस्सा आना, खाने में अरूची आदि ।
कारण:- मौसम परिर्वतन, शरीर में जीवनी शक्ति की कमी, वातानुकूलित कमरों से अचानक गर्मी के वातावरण में आना, पसीने की स्थिति में ठंडे पेय, पेप्सी, कोक अथवा आईसक्रीम का सेवन, कब्ज का रहना, बेमेल भोजन, धूल अथवा परागकणों से इलर्जी, गठिया, यक्ष्मा, सिफलिश आदिरोग, विषम परिस्थितियाँ, जीवाणुओं का संक्रमण ।
प्राकृतिक उपचार दोनों समय हल्के ठंडे पानी से 1520 मिनिट कटि स्नान लेकर आधा घंटा धीरे-धीरे टहलना । प्रतिदिन गर्म पानी का ऐनिमा, तेल से प्रतिदिन मालिश, पेट की गरम, ठंडी सेंक, मालिश के बाद ठंडी लपेट, धूप स्नान, एक घंटा प्रतिदिन एक दिन के अन्तराल पर गर्म पाद स्नान, एक दिन के अंतराल पर रीढ़ पर गर्म ठंडा सेंक, एक दिन के अंतराल पर वाष्प स्नान । प्रतिदिन नाक में घी की दो बूँदे डालें। पहले कुछ दिन जल नेती फिर सूत्र नेती करें। यूकेलिप्टस अथवा तुलसी के पत्ते डालकर प्रात: और सायं रोजाना 10 मिनिट इलाज के दौरान भाप लें। एक सप्ताह तक रोज सुबह कुंजल और उसके बाद गर्म पानी के गरारे । योगासन एवं प्राणायामः पादहस्तासन, ताडासन, जानुशिरासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन, पश्चिमोत्तानासन, पवनमुक्तासन, शलभासन, भुजंगासन, विपरीतकरणी, मत्स्यासन, वक्षस्थल शक्ति विकासक क्रिया, पक्षीआसन, नौकासन, भस्त्रिका, सूर्य भेदी प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम ।
भोजन तालिका : सुविधानुसार निम्न तालिका से भोजन लें।
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सर्दी जुकाम
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डॉ. बन्दना जैन
गर्म पानी तथा नीबू रस, एक-एक कप प्रत्येक घंटे बाद लेते रहें, तीन दिन में जुखाम ठीक हो जाता है। आहार के तीन भाग रहेंगे
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इलाज के पहले भाग में रसाहार में रहना है, इससे शरीर को पर्याप्त शक्ति मिल जाती है और पाचन क्रिया में न्यूनतम शक्ति खर्च होती है । रसाहार से रक्त में आवश्यक विटामिन एवं अन्य लवण प्राप्त हो जाते हैं। हर तीन घंटे बाद दिन में चार बार जूस लें दो बार ऋतु के जो ताजे फल एवं सलाद हो सकते हैं उनका मिला-जुला जूस दें- जैसे गाजर, टमाटर, पालक, धनिया (थोडा), शलजम आदि का रस, इसमें अल्प मात्रा में अदरक व नीबू डालें, दो बार यह ग्रीन जूस दें, एक बार नीबू अमृता (गुड़) दें तथा एक बार किसी भी मौसम का जूस दें इस प्रकार दिन में चार बार हो जाता है।
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इलाज के दूसरे भाग में :- इस बार जूस, तीन घंटे बाद मौसम के फल, सलाद लेना है, इसके तीन घंटे बाद जूस फिर शाम को सलाद व फल ले सकते हैं, इस प्रक्रिया को पाँच दिन करें । इलाज के आखिरी या तीसरे भाग में सर्वप्रथम एक बार ग्रीन जूस (सलाद का) तथा दिन के भोजन में बिना नमक का सूप लें, ध्यान रहे इस सूप को छाने नहीं, साथ ही उबली तरकारी लें। बगैर घी की एक दो रोटी लें एवं मात्रा प्रतिदिन बढ़ाते रहें। बिना नमक की हरी सब्जी, सलाद व अंकुरित अन्न भी लें, सलाद में खीरा, टमाटर, गाजर, बंद गोभी आदि लें।
1. भोजन के चार घंटे बाद जूस लें ।
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सायंकाल दिन के भोजन की मात्रा थोड़ा बदल कर लें। इलाज खत्म करने के एक दिन पहले से थोड़ा नमक डालकर भोजन दें एवं नमक की मात्रा धीरे-धीरे सामान्य पर लायें ।
3. इलाज के प्रत्येक भाग को तीन से पाँच दिन तक चलायें ।
परहेज गरिष्ठ भोजन, ठंडा तला भुना बाजारी भोजन, मिर्च मसाले, नमक, चीनी, मांस, मछली, अंडा, आईसक्रीम अथवा मैदे से बने पदार्थ ।
उपरोक्त प्राकृतिक चिकित्सा का उपचार योग किसी अच्छे प्राकृतिक चिकित्सालय जाकर लेना चाहिए। रसोपवास व उपवास भी किसी अच्छे प्राकृतिक चिकित्सक के मार्ग दर्शन में ही करना चाहिए।
भाग्योदय तीर्थ, सागर
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• जुलाई 2003 जिनभाषित
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