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________________ जिज्ञासा-समाधान पं. रतनलाल बैनाड़ा जिज्ञासा - क्या तिर्यंचों में पृथक विक्रिया पाई जाती है? | अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है। इसी प्रकार जब तक आवली उत्पन्न समाधान - तिर्यंचों में पृथक्त्व विक्रिया नहीं पाई जाती। नहीं होती तब तक शेष रहे एक उच्छ्वास में से भी एक-एक विक्रिया दो प्रकार की होती है- एकत्व विक्रिया तथा पृथक्त्व | समय कम करते जाना चाहिए. ऐसा करते हुए जो आवली उत्पन्न विक्रिया। अपने शरीर को ही विभिन्न आकार रूप परिणमा लेना होती है, उसे भी अन्तर्मुहूर्त कहते हैं।" एकत्व विक्रिया है जबकि अपने शरीर से भिन्न अन्य शरीर आदि श्री धवला पुस्तक-3, पृष्ठ 69 में इस प्रकार और भी कहा की रचना करना पृथक्त्व विक्रिया है। तिर्यंचों में पृथक्त्व विक्रिया नहीं पाई जाती। जैसा कि श्री सामीप्यार्थे वर्तमानान्तः शब्दग्रहणात्। मुहूर्तस्यान्तः राजवार्तिक में अध्याय-2, सूत्र 47 की टीका में इस प्रकार कहा | अन्तर्मुहूर्तः । है। अर्थ - जो मुहूर्त के समीप हो उसे अन्तर्मुहूर्त कहते हैं। तिरश्चां मयूरादीनां कुमारादिभावं प्रतिविशिष्टैक- | इस अन्तर्मुहूर्त का अभिप्राय मुहूर्त से अधिक भी हो सकता है त्वविक्रिया न पृथक्त्व विक्रिया। (अर्थात् 48 मिनिट के कुछ अधिक को भी अन्तर्मुहूर्त कहा जा टिप्पण- यो वृद्धो मयूरः स कुमारत्वेन विकरोतीत्यादि सकता है।) योज्यम्। जिज्ञासा -जब तक उपदेश नहीं मिलेगा तब तक जीवादि अर्थ - तिर्यंचों में मयूरादिकों की कुमारादि भाव रूप | तत्त्वों का ज्ञान, श्रद्धान कैसे होगा। अत: निसर्गज सम्यग्दर्शन सिद्ध एकत्व विक्रिया होती है, पृथक्त्व विक्रिया नहीं होती है। नहीं होता? टिप्पण - जो वृद्ध मयूर है वह कुमार रूप से विक्रिया समाधान - उपरोक्त प्रश्न के उत्तर में श्री राजवार्तिक कार करता है, ऐसा लगा लेना चाहिए। ने अध्याय -1 सूत्र 3 की टीका में वार्तिक 5 व6 में बहुत सुन्दर भावार्थ - तिर्यंचों में एकत्व विक्रिया ही होती है पृथक्त्व निरूपण किया है जिसका हिन्दी अर्थ इस प्रकार है - दोनों ही नहीं। जैसे कोई वृद्ध मयूर, कुमार अवस्था रूप मयूर की ही | | सम्यग्दर्शनों में (निसर्गज एवं अधिगमज सम्यग्दर्शन में ) अंतरंग विक्रिया करे। इससे ऐसा भी ध्वनित होता है कि वह वृद्ध मयूर, कारण तो दर्शन मोह का उपशम, क्षय या क्षयोपशम समान है, कुमार मयूर जैसी एकत्व विक्रिया तो कर सकता है, परन्तु स्वयं इसके होने पर जो सम्यग्दर्शन बाह्य उपदेश के बिना प्रकट होता है हाथी आदि अन्य पशु-पक्षियों रूप विक्रिया नहीं कर सकता।। वह निसर्गज कहलाता है। और जो परोपदेश पूर्वक जीवादिक के जिज्ञासा- अन्तर्मुहूर्त की क्या परिभाषा है ? ज्ञान में निमित्त होता है, वह अधिगमज कहलाता है, यही इन दोनों समाधान- श्री धवला पुस्तक-3, पृष्ठ 67 पर अन्तर्मुहूर्त में अन्तर है। जैसे लोक में भी शेर, भेड़िया, चीता आदि में क्रूरता, के संबंध में कहा है कि 48 मिनिट से कम और एक आवली से | शूरता, आहार आदि की प्राप्ति परोपदेश के बिना स्वभाव से ही अधिक को अन्तर्मुहूर्त मानना चाहिए। उद्धरण इस प्रकार है- देखी जाती है। यह सब कर्मोदय रूप निमित्त से होने के कारण "एक आवली को ग्रहण करके असंख्यात समयों में से एक | सर्वथा आकस्मिक नहीं है फिर भी परोपदेश की अपेक्षा न होने से आवली होती है, इसलिए उस आवली के असंख्यात समय कर नैसर्गिक कहलाती है। उसी प्रकार परोपदेश निरपेक्ष सम्यग्दर्शन में लेने चाहिए। यहाँ मुहूर्त में से एक समय निकाल लेने पर शेष भी निसर्गता स्वीकार की गई है। काल के प्रमाण को भिन्न मुहूर्त कहते हैं। उस भिन्न मुहूर्त में से श्री श्लोकवार्तिक में इस प्रकार कहा है- निकट सिद्धि एक समय और निकाल लेने पर शेष काल का प्रमाण अन्तर्मुहूर्त | वाले भव्य जीव के दर्शनमोहनीय कर्म का उपशम आदिक अन्तरंग होता है। इस प्रकार उत्तरोत्तर एक-एक समय कम करते हुए हेतुओं के विद्यमान रहने पर और परोपदेश को छोड़कर शेष, उच्छ्वास के उत्पन्न होने तक एक-एक समय निकालते जाना। ऋद्धि दर्शन, जिनबिम्ब दर्शन, वेदना आदि बहिरंग कारणों से पैदा चाहिए। वह सब एक-एक समय कम किया हुआ काल भी | हुए तत्वार्थ ज्ञान से उत्पन्न हुआ तत्वार्थ श्रद्धान निसर्गज समझना 26 जुलाई 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524275
Book TitleJinabhashita 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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