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संघर्ष करती हुई भारतीय महिलायें वासनाओं से दमित, कुरीतियों | नारी अपने पतन के लिए कम घातक सिद्ध नहीं हुई है। भ्रूण हत्या से अभिशप्त, क्रीतदासत्व से विजड़ित, अत्याचारी मद्यपदंभी पतियों | जैसे जघन्य अपराध के लिए वह कभी भी क्षम्य नहीं है। ऐसे ही से प्रताड़ित, अशिक्षा और अंधविश्वास की शिकार हो कर असह्य | अनेक प्रसंगों में आज उसे पुनः आत्म मंथन की आवश्यकता है। गंदगी और अश्लीलता के बोझ तले दब गयी है। ये समस्यायें | सत्य निष्ठा के साथ आज उसे निर्णय करना होगा कि वह अपनी विभिन्न पहलुओं से उभर कर संमुख आयी हैं। स्वतंत्रता के | प्रकृति में प्रतिष्ठत है या विकृति में विभ्रमित हो रही है अथवा पश्चात् प्रत्याभूति के पश्चात् भी भारतीय महिला की दशा दयनीयता | | जीवन मूल्यों का उदात्तीकरण करती हुई एक अभिनव संस्कृति के जाल से किन्चित ही उबर पायी है।
को जन्म दे रही है। शोषण का गहराता साया हर समय, हर जगह घर-बाहर निष्कर्षतः- भारतीय नारी की वर्तमान में जो मानसिक उसके पीछे ही रहता है। विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सफलताएँ स्थिति है और परिस्थिति है, उसका आंकलन करते हुए स्वयं उसे अर्जित करने के बाबजूद भी भारतीय महिलाओं को शोषण और अपनी स्वस्थ दिशा का निर्माण करना होगा और उन समस्त अत्याचार से मुक्ति नहीं मिल पा रही है। यह कड़वा सच गृह | महत्त्वपूर्ण ही नहीं अपरिहार्य बिन्दुओं को क्रियान्वयन करना होगा मंत्रालय के अतंर्गत काम कर रहे अपराध पंजीकरण ब्यूरो द्वारा जो समकालीन परिवेश में नारी अस्मिता के लिए सोपान सिद्ध उद्घाटित किया गया है, जिस की रिपोर्ट में कहा गया है कि हर | होगें साथ ही साध्य की उपलब्धि में सहायक होंगे। ये उद्देश्यमूलक 47 मिनट में एक महिला बलात्कार की शिकार होती है, जब कि बिन्दु इस प्रकार है:हर 44 मिनट में औसतन एक महिला का अपहरण किया जाता 1. शैक्षिक स्तर को विकसित करना। है। हर तीसरी महिला अपने पति या किसी संबंधी के अत्याचार 2. अपनी पारिवारिक महत्ता का बोध जागृत करना। का सामना कर रही है और हर रोज दहेज संबंधी मामलों में 17 3. समाज में नारीत्व की प्रतिष्ठा को बनाये रखना। महिलाएँ मौत के मुँह में धकेल दी जाती हैं। ये तो सरकारी 4. आर्थिक रूप से स्वावलम्बी बनना। आंकड़े हैं। असलियत तो यह है कि अनेक मामले इज्जत की 5. अपनी निर्णयात्मक क्षमता का विकास करना। खातिर थानों तक पहुँच ही नहीं पाते और पहुँच भी जायें तो भी 6. महिला उत्पीड़न एवं यौन शोषण के विरुद्ध जन आंदोलन क्या भरोसा कि रिपोर्ट लिखवाने गई महिला की इज्जत थाने के | करना एवं कराना। मुंशी के हाथों सुरक्षित रह पाये।
7. नारी के प्रति उपजी उपभोक्तावादी संस्कृति के विरुद्ध आज नारी विरोधी जो हालात बन रहे हैं वे उपभोक्ता | जनमत जागृत करना। संस्कृति की देन है। समकालीन परिवेश में नारी अस्मिता को 8. सामाजिक पुनर्रचना एवं राष्ट्र निर्माण में प्रभावी सहयोग पाश्चात्य एवं आधुनिक उपभोक्तावादी संस्कृति ने कुछ कम प्रभावित | देना। नहीं किया है। यही कारण है कि उस के अंधानुकरण ने आज | 9. नारी के प्रति पुरूष के पारम्परिक दृष्टिकोण में परिवर्तन 'नारी अस्मिता' को विषय से वस्तु बना दिया है। और वह पुरुष | लाना। की 'भोग' सामग्री बनकर ही रह गई है। बाजारवाद के उभार के 10. पैतृक सम्पत्ति में महिलाओं की सम्यक् हिस्सेदारी साथ जिस तरह उसे 'सेक्स सिबल' बना कर पेश किया जा रहा | का बोध जगाना। है और वह स्वयं भी जिस तरह गलत समझौते करके अथवा 11. नारी का नारी के प्रति उद्भूत द्वेषपूर्ण दृष्टिकोण एवं अपने 'देह-बोध' को उभार कर स्वयं को प्रस्तुत कर रही है, यह व्यवहार का आधारभूत परिहार करना। नितांत चिंता का विषय है। यह उपभोक्तावाद हमारे समाज को | अत: इन समस्त बिन्दुओं पर गंभीरतापूर्वक क्रियान्वयन संवेदनशून्य बनाता जा रहा है। आज हमारे यहाँ नारी अस्मिता | करती हुई आज की भारतीय नारी अपनी गरिमामयी अस्मिता को कुचली जा रही है। एक ओर अबोध बालिका, दूसरी ओर बृद्ध | प्रतिष्ठित करती हुई यह सिद्ध कर देगी कि नारी 'अबला' नहीं महिला तक को आज पुरूष अपनी नागफनी वृत्ति का शिकार बना | 'सबला' है। परिणामत: समकालीन परिवेश में नारी अस्मिता की रहा है यहाँ तक कि हमारे समाचार माध्यमों में भी महिलाओं के | यही सार्थकता सिद्ध होगी। सवाल आज भी केन्द्रीय महत्व के न होकर महज उनका रुप ही
अध्यक्षा
उ.प्र. लेखिका मंच, आगरा ज्यादातर सजावटी होता है। एक भंयकर सच यह भी है कि स्वयं
जुलाई 2003 जिनभाषित 25
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