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मानवीय मूल्यों के लिये समर्पित युगश्रेष्ठ संत मुनिश्री प्रमाण सागर जी
सौरभ 'सजग'
मानव शरीर धारण करना एक बात है जबकि मानव जीवन | उनकी लेखनी ने एक ओर जहाँ जीवन की दिव्यता का भव्य को मानवीय गुणों से परिपूर्ण कर जीवन जीना दूसरी बात है। | अंकन किया है वहीं दूसरी ओर उनके जीवन ने जगत् को असीम मानवीय गुणों से परिपूर्ण हो जीवन जीने वाले मानव महापुरुष | करूणा और स्नेह का उपहार प्रदान किया है। आपके विलक्षण कीश्रेणी में आते हैं। अनादिकाल से ही ऐसे जीवंत महापुरुषों की । ज्ञान, अप्रतिम वैराग्य, अभूतपूर्व तप एवं जीवमात्र के प्रति समता एक समृद्ध और अविच्छिन्न परम्परा रही है। इसी परम्परा में संत | का भाव देख कोई भी आपसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहता है। शिरोमणी आचार्य गुरुवर श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के
आपने अपनी साधना के माध्यम से विद्या, बुद्धि, अहिंसा, परम शिष्य मुनि श्री 108 प्रमाण सागर जी महाराज भी स्वपर करूणा, अपरिग्रह, विवेक, क्षमा, तपस्या, सत्य, शुद्धता, संयम, कल्याणरत एक ऐसे ही महापुरुष हैं।
सेवा और अनुभव का संपोषण किया है। आत्म कल्याण और भारत-भू पर शांति सुधारस की वर्षा करने वाले, भौतिक परकल्याण की भावना से ओत-प्रोत आपकी साधना देख लोगों में कोलाहलों से दूर, जगत मोहनी से असंपृक्त, अद्भुत ज्ञान के भी आत्मकल्याण की भावना प्रस्फुटित होती है। आपकी अनवरत सागर, आगम के प्रकाण्ड विद्वान, काव्य प्रतिभा के पयोनिधि, | कठोर साधना श्रद्धालुओं को भाव विहृल कर श्रद्धा, विश्वास और परम तपस्वी संत शिरोमणि आचार्य गुरुवर श्री 108 विद्यासागर आस्था से परिपूर्ण बना देती है जिससे वह स्वयमेव श्रीचरणों में जी महाराज के अनेकों शिष्य रत्नों में मुनि श्री प्रमाण सागर जी समर्पित हो अपने जीवन के रूपान्तरण को उद्घाटित कर देता है। महाराज का अपना एक विशिष्ट स्थान है।
आपके दर्शन प्राप्त कर लोगों में उत्साह का संचार होता आचार्य श्री द्वारा मुनि श्री जैसे अनेक मुनि रत्नों को तैयार | है। संसार की कठिनाई और भयों से अक्रांत मानव आपके दर्शन करने से एक महान् लोकोपकारी कार्य हुआ है। मुनि श्री अपने | मात्र से अपने अन्दर उन सभी से जूझने की शक्ति क्षण भर में गुरु आचार्य श्री की तरह ही किसी एक धर्म के नहीं हैं, बल्कि उत्पन्न कर लेता है। आपके दर्शन पाकर श्रद्धालु महसूस करते हैं विभिन्न धर्मों के हैं। विभिन्न धर्मों के अनुयायियों को उनके कि उनकी सारी समस्याओं का उन्हें मूक समाधान प्राप्त हो गया दर्शन, प्रवचन, सान्निध्य से आनंद की अनुभूति होती है। है। जीवन से निराश लोग आपका थोड़ा सा सान्निध्य पा अपनी
परम पूज्य मुनि श्री 108 प्रमाण सागर जी महाराज वर्तमान | शून्य से शिखर यात्रा को उद्घाटित कर देते हैं। युग के एक युवा दृष्टा, क्रांतिकारी विचारक, आगमविद्, जीवन
आप अपने आत्मानुशासन द्वारा अपने शिष्य रूपी शिशुओं सर्जक, श्रमण संस्कृति के शुभ दर्पण, प्राणी मात्र के हित चिन्तक, | में सत्संस्कार की स्थापना कर उन्हें मुक्त गगन में विचरण योग्य उत्कृष्ट मुनि, तेजस्वी वक्ता, प्रखर चिंतक, जिनधर्म की चहुँओर | बनाते हैं। अपने शिष्यों पर हमेशा उपकारी दृष्टि रख उनके जीवन पताका फहराने वाले, अपने गुरू के प्रति समर्पित श्रेष्ठ संत हैं। | की विकास यात्रा में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, अपने करीब आने मात्र 21 वर्ष की अवस्था में मुनि दीक्षा प्राप्त कर आत्मसाधना में | वाले हर वय के लोगों में धर्म का संचार करते हैं, उन्हें आत्मकल्याण निरत प्रतिभावान निर्ग्रन्थ साधु हैं।
. | हेतु दिशा बोध कराकर विवेकशील जीवन जीने हेतु प्रेरित करते मुनि श्री में समाहित गुणों को पूरी तरह से प्रकट करना | हैं। कभी संभव नहीं है क्योंकि वे गुणों के सागर हैं, उनकी वाणी | आपकी वाणी में अद्भुत आकर्षण, ओज और मधुरता जिनवाणी का प्रतिनिधित्व करती है, उनकी चर्या भगवान् महावीर | है। आपकी ओजस्वी वाणी सरल, सुबोध, स्वच्छ, निर्मल, निश्चल, के युग को जीवित करती है, उनका चिंतन मौलिक है, उनकी | मर्मस्पर्शी, हृदय को छूने वाली है और श्रोता के हृदय पर एक लेखनी अद्वितीय है, उनकी वार्ता अलौकिक है, उनके विचारों में | चिरस्थायी प्रभाव डालती है। आपके प्रवचनों में अपूर्व गाम्भीर्य सर्वहितैषिता है, क्षमा और समता की वे जीवित मूर्ति हैं, निर्मलता | और अद्भुत शक्ति है। अपनी ओजस्वी, दिव्य एवं प्रेरणास्पद और निर्भयता के वे स्वतंत्र झरने हैं।
वाणी द्वारा आप न सिर्फ धर्म और दर्शन के गूढ़ सिद्धांतों को मुनि श्री विलक्षण एवं अद्वितीय प्रतिभाओं के धनी हैं। | श्रोताओं के मन मस्तिष्क में उकेरते हैं, बल्कि उसके अनुरूप
14 जुलाई 2003 जिनभाषित -
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